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इमली के फायदे एवं औषधीय गुण | Tamarind benefits and medicinal properties in Hindi

इमली के फायदे एवं औषधीय गुण | Tamarind benefits and medicinal properties in Hindi
इमली के फायदे एवं औषधीय गुण | Tamarind benefits and medicinal properties in Hindi

इमली (Tamarind)

प्रचलित नाम- इमली, आम्लीका ।

उपयोगी अंग- पत्ते, कांड की छाल, फल, बीज तथा फूल।

परिचय- एक सदा हरित बृहद् वृक्ष होता है, जिसकी छाल फटी हुई होती है। वृक्ष 20 25 फूट ऊंचा, पत्ते संयुक्त पक्षाकार, पत्रिका 10-20 जोड़ी, चिकनी और कुंठिताग्र होती है। फूल पीतरक्तवर्णी होते हैं। इसकी फली टेढ़ी-मेढ़ी एवं भूरे रंग की होती है।

स्वाद- आम्लरस ।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण

अतिरेचक, उत्तेजक, दाहशामक, ग्राही, रुचिकर इसका परिपक्व फल जठर उत्तेजक, रक्तदोष में लाभदायक, कृमिघ्न, वातघ्र, पाचक, यकृतबल्य होता है। पत्र का प्रयोग रक्तार्श तथा मूत्रकृच्छ्र में उपयोगी है। कांड की छाल ज्वरहर है। व्रण शोध में पत्तों को पीसकर इसका कल्क बांधने से फायदा होता है। प्रमेह में इसके बीज का प्रयोग लाभदायक है। उदरशूल तथा मंदाग्नि में इसके फलों की शुष्क त्वचा की राख का सेवन करने से फायदा होता है। सोजाक में इसके कांड के छाल की राख का सेवन लाभदायक है। अर्श में इमली का शाक, दही, अनार के रस तथा घी में बनाया हुआ एवं इसमें धनिया-सोंठ डालकर सेवन से फायदा होता है। अरुचि में इमली का पानी बनाकर इसमें गुड़, दालचीनी, छोटी इलायची, कालीमिर्च मिलाकर स्वादिष्ट पेय तैयार हो जाता है; इस रस को मुख में भरकर कुछ देर रखने के बाद कुल्ला करने से भोजन में रुचि उत्पन्न होती है। शीतला में इमली के पत्तों का रस एवं हल्दी का ठंडा पेय बनाकर पीने से फायदा होता है। अस्थिभंग में इसके फल का कल्क तिल के तेल के साथ मिलाकर अस्थिभंग स्थान पर लगाने से फायदा होता है।

वात व्याधि में इसके पत्तों को ताड़ी के रस के साथ पीसकर अच्छी प्रकार घोंटकर थोड़ा गरम कर, वेदना युक्त स्थान पर लगाने से फायदा होता है। शोध में इसके पत्तों के कल्क का सेक शोथयुक्त भाग पर बार-बार करने से फायदा होता है।

कानदर्द में इसके फल के रस में तिल का तेल मिलाकर अच्छी प्रकार उबाल कर पका लेना चाहिए, इसको कान में डालने से वेदना सही हो जाती है।

प्रदर सोमरोग में- इमली के बीज को पानी में भिगोकर एक रात तक रखने के पश्चात् बीज के अंदर के मृदु भाग को दूध में पीसकर पीने से फायदा होता है। दादर (दद्रु में) इसके पत्तों का रस लगाने से खुजली कम होती है।

सर्प विष में- इसके पत्तों का रस 16 तोला तथा सैन्धव लवण दो तोला मिलाकर पीने से सांप का जहर उतर जाता है।

नाड़ी व्रण में इसके बीज को पानी में घिस कर इसका लेप करने से फायदा होता है।

मात्रा – फल-4 से 30 माशा।

बीज का चूर्ण- 1 से 3 माशा।

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