कटेरी बड़ी (Solanum Indicom)
प्रचलित नाम- बड़ी कटेरी, कटेरी बड़ी ।
उपलब्ध स्थान- यह भारतवर्ष के हर क्षेत्र में प्राप्त होती है।
परिचय- कटेरी बड़ी का पौधा गज भर का लम्बा होता है। इसके पत्ते बैंगन की तरह होते हैं, इसलिए इसकी बैंगन कटेरी भी कहते हैं। इसका फल आंवले के समान होता है। कच्ची स्थिति में इस पर काले और हरे धब्बे रहते हैं। पकने पर यह बहुत पीली पड़ जाती है। इसका जायका कड़वा होता है। इसकी शाखाओं और हरे पत्तों पर भी बड़े तेज कांटे होते हैं। फल तोड़ते समय ध्यान रखें कि कांटों से त्वचा को बचाकर फल तोड़ें। कांटा चुभ जाने पर जख्म के पक जाने का अंदेशा रहता है।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
आयुर्वेद- बड़ी कटेरी मलरोधक, हृदय के लिए हितकारी, पाचक, कफ-वात नाशक, कड़वी और मुख की अरुचि को समाप्त करने वाली होती है। यह कुष्ठ, बुखार, श्वांस, शूल, खांसी और मंदाग्नि को दूर करने वाली है। इसके फल कड़वे तीखे, हल्के और कुष्ठ, कृमि, कफ तथा वात नाशक हैं। इसकी सफेद जाति जिसको सफेद वृहतिका कहते हैं, अंजन के योग से अनेक प्रकार के नेत्र रोगों को नाश करने वाली होती है।
यूनानी – यह गरम तथा खुश्क होती है, मगर बलवर्धक और भूख खोलने वाली होती है। किन्तु अधिक सेवन से यह कब्ज उत्पन्न करती है। भूख बढ़ाती है, कफ और खून के विकार को दूर कर देती है। पेट और मलद्वार के कीड़ों को समाप्त करती है। खांसी, दमा, सीने के दर्द और कुष्ठ रोग में भी यह लाभकारी है। पेट के दर्द, गुड़गुड़ाहट और वायुगोला में भी यह फायदा देती है। इसकी धूनी बवासीर के लिए लाभदायक है।
1. ताजा जड़ की छाल साढ़े तीन तोला लेकर गाय के दूध में पकाकर पिलाई जाए तो कुछ ही दिनों में मर्दोनगी फिर से हासिल हो जाती है। खटाई और वादी वस्तुओं से बिल्कुल परहेज करना चाहिए।
2. कटेरी बड़ी के फल को काटकर उसके टुकड़ों में नमक मिलाकर खाने से कफ निकलकर पुरानी से पुरानी खांसी समाप्त हो जाती है।
3. इसकी जड़ का शीरा पीने से दमें की तकलीफ थोड़े ही दिनों में जाती रहती है।
4. जिन स्त्रियों का गर्भ हमेशा गिर जाया करता है या जिनके पेट में बच्चा मर जाया करता है, उनको पीपल और कटेरी बड़ी की जड़ को पीसकर भैंस के दूध के साथ देने से फायदा होता है। जड़ को पीसकर, उसके रस को छानकर एक-दो चम्मच पिलाना चाहिए। दो-तीन बार सेवन करें। गर्भ स्तम्भन होता है।
5. सुजाक के रोग में इसकी जड़ का साढ़े बारह तोला काढ़ा दिन में दो बार पिलाने से फायदा होता है।
6. इसकी जड़ आंतरिक प्रयोग में लिए जाने पर तीव्र उत्तेजना उत्पन्न करती है। दांत के दर्द में यह वनस्पति लगाने और धूनी देने के प्रयोग में ली जाती है। प्रसूति के काम में भी बाह्य उपचार की तरह इसका उपयोग होता है। यह औषधि मूत्र निस्सारक भी है, अतः मूत्राघात-सम्बन्धी रोगों में और कफ से सम्बन्ध रखने वाली खांसी, दमा इत्यादि बीमारियों में यह काफी उपयोगी है।
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