कपूर तुलसी (Common Sweet Basil)
प्रचलित नाम- कपूर तुलसी, बर्बर, सबजा, मरुबक।
उपयोगी अंग- पंचांग, मूल, पत्र तथा बीज।
परिचय-यह एक वर्षायु अतिशाखीत सुगंधित क्षुप होता है। यह लगभग 1-3 फुट ऊँचा, कांड होता है। इसकी चौपहल शाखाएँ हरी या (भीतर से पोले) पीले रंग की रहती हैं। पुष्प चक्र बैंगनी अथवा हरित वर्णी होते हैं, जो शाखाओं के अंत में लगते हैं।
स्वाद- तीखा, कडुवा।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
वातानुलोमक, मूत्रक, उत्तेजक, प्रशामक, स्वेदजनन, कृमिघ्न, सुगंधित और कफघ्न है। इसके पंचांग सूजाक, प्रवाहिका, जीर्ण, अतिसार, उदररोगों और कृमिघ्न, कीटाणुघ्न, फफूंदीनाशक में प्रयुक्त होते हैं। इसका प्रयोग वृक अश्मरी, कास और कुपचन और प्रमेह तथा मूत्रकृच्छ्र में भी लाभदायक है। इसके सुगंधित तेल को जल में डालने से यह पानी पर तैरता है तथा कण स्वरूप में परिवर्तित होकर जम जाता है, जो बेसिक कैम्फर होता है। कान के दर्द में स्वरस का प्रयोग लाभकारी है। सोजाक में बीज के फांट के सेवन से फायदा होता है। नवीन नेत्र प्रकोप में इसके पत्रों का रस शहद में मिलाकर आँख में अंजन करने से दुखने वाली एवं लाल हुई आँख अच्छी हो जाती है। खूब ठंड लगकर ज्वर आने में इसके पत्ते शरीर पर मसलने-घिसने से गरमी आती है। बिच्छू विष में इसके बीजों को बकरी के दूध की अनेक भावनायें देकर उसका दंश स्थान पर लेप करने से बिच्छू का विष समाप्त होता है। आधाशीशी (अर्घावभेदक) शिरःशूल में इसके बीज के सेवन तथा लेप से लाभ होता है। वीर्यस्राव में इसके पत्रों का क्वाथ हितकारी होता है। संधिवात एवं पक्षाघात में इसके साथ अन्य सुगंधित द्रव्य मिलाकर इसका नस्य उपयोगी होता है। कास में पत्तों का स्वरस मधु के साथ सेवन से लाभ होता है। सर्पजहर में इसके पत्तों का स्वरस थोड़ी-थोड़ी देर के बाद तीन-चार बार पिलाना चाहिए। दाह में इसके बीज जल में भिगोकर रखने पर फूल जाते हैं। इसके पश्चात् इसमें गाय का दूध तथा मिश्री मिलाकर पिलाना चाहिए। पीनस रोग में इसके पत्तों का स्वरस एक तोला तथा कपूर एक माशा एकत्रित कर घोंट कर रोजाना प्रातः, शाम इसकी पाँच-पाँच बूंद नासिका छिद्रों में डालने से नाक में से पानी तथा रक्त बहना बंद हो जाता है। कृमि में इसके पत्तों का स्वरस तथा पुदीने का स्वरस एकत्रित कर पिलाने से कृमि नष्ट हो जाती है। उदरशूल में इसका स्वरस, मिश्री मिलाकर पिलाने से सही हो जाता है। अग्निदग्ध व्रण में इसके पत्रों के स्वरस का लेप करने से दग्धता में आराम मिलता है। व्रण ठीक हो जाते हैं।
मात्रा- स्वरस आधा अथवा एक चम्मच बीज आधा तोला, दूध तथा शर्करा के साथ फांट बनाकर दें।
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