कब्ज (Constipation)
कब्ज से जितने बुद्धिवादी ग्रस्त हैं, उतने अन्य रोगों से नहीं। कब्ज का अर्थ है-समय पर मल-त्याग न होना, मल त्याग कम होना, मल में गाँठें निकलना, लगातार पेट साफ न होना, नित्य टट्टी नहीं जाना, भोजन पचने के बाद उत्पन्न मल पूर्ण रूप से साफ न होना, टट्टी जाने के बाद पेट हल्का एवं साफ होने का अनुभव न होना आदि।
कब्ज कैसे होता है?
बार-बार भिन्न-भिन्न समय खाये गये भोजन से अलग-अलग समय पर तैयार होने वाला मल एक बार शौच जाने पर पूर्ण रूप से नहीं निकलता। कुछ मल लेकिन निकल जाने के बाद, बचा हुआ मल आँतों में इकट्ठा होता रहता है। इस तरह पेट में हमेशा मल ( भरा रहता है। जब कोई उपवास, व्रत करता है तब नया मल तो पेट में नहीं बनता, स्वाभाविक मल-त्याग या एनिमा लेने पर बहुत मल निकलता है।
कब्ज से पैदा होने वाले रोग
कब्ज रहने से पेट में जमा हुआ मल आँतों की गर्मी एवं नमी के कारण सड़ता है, गन्दी वायु उत्पन्न होती है। एकत्रित मल के गन्दे रस को आँतों द्वारा सोखने एवं रक्त में मिश्रण होने से रक्त अशुद्ध होता है। इससे शरीर में गन्दगी, वायु एवं रोग के कीटाणु पैदा होते हैं तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के रोग हो जाते हैं। जिस प्रकार रास्ते में पड़े मल के पास से जाने से बदबू के कारण सिर भारी हो जाता है, साँस लेना कठिन होता है, उसी प्रकार आँतों में पड़ा मल अपनी सड़न और बदबू से शरीर की प्रफुल्लता, उत्साह को समाप्त कर देता है। मन में ग्लानि, आलस्य भाव, मुँह से पानी और दुर्गन्ध आना, बुखार-सा प्रतीत होना, अरुचि, सिर दर्द आदि अनेक लक्षण प्रकट होते हैं। लगातार कब्ज रहने से बवासीर और गृध्रसीवात (Sciatica) उत्पन्न होते हैं।
कब्ज के कारण
1. खान-पान की गड़बड़ियाँ- कहीं जीमन होता है, पार्टी में चटपटा, स्वादिष्ट भोजन होता है, लोग अधिक खाते हैं, अधिक खाना अच्छा लगता है। जितना खायें उतनी ही भूख और जितना सोयें उतनी ही नींद अधिक आती है। खाते समय भोजन तो पार्टियों में दूसरों का होता है, लेकिन पेट तो अपना है। पेट का ध्यान न रखकर चटपटी, मैदा की बनी चीजें बिना भूख खाना, स्वाद में अधिक खाना, भोजन के बाद ठंडे पेय पीना, जल्दी-जल्दी बिना चबाये खाना, समय पर न खाना कब्ज पैदा करता है। भोजन पर संयम रखना चाहिए। भोजन अपनी इच्छा करें, कपड़े दूसरों की इच्छानुसार पहनें।
2. शौच रोकने की आदत-मल-त्याग का वेग होते ही टट्टी चले जाना चाहिए। शिशु को माताएँ टट्टी करने हेतु सी-सी-सी आवाज करती हैं और बच्चा टट्टी करने लगता है। यह वेग बनाने की विधि है। प्रात: तो प्रायः मल-त्याग कर लेते हैं लेकिन इसके बाद कार्य की व्यस्तता, मनोरंजन में लीन होने से मल त्याग की इच्छा रोक लेते हैं। वेग रोकते ही फिर टट्टी नहीं आती। इससे कब्ज बनती और पुरानी हो जाती है। पेट में वायु भरने से पेट फूलने लगता है।
3. शारीरिक श्रम का अभाव- धनवान एवं बुद्धिजीवी प्राय: शारीरिक श्रम नहीं करते। इससे कब्ज रहती है।
4. विश्राम की कमी- अधिक भाग दौड़ में व्यस्त रहने से भीतरी अंगों को बराबर काम करने का अवसर नहीं मिलता। इससे कब्ज होती है। जो व्यक्ति विश्राम नहीं करते, नींद के बाद जब वे मल त्याग करते हैं तो काफी मात्रा में मल-त्याग करते हैं। समय पर भरपूर सोना पुष्टि देता है। रूप को सुन्दर करता है, बल बढ़ाता है, जठराग्नि को तेज करता है, आलस्य दूर करता है और धातुओं को सम करता है।
5. मानसिक तनाव (Tension) – चिन्ता, अशुभ विचार, वासनामय विचारों में लिप्त रहना, निरन्तर सोचते रहने से भीतरी अंगों में तनाव बना रहता है। इससे कब्ज होती है। मानसिक तनाव, निराशा (डिप्रेशन) की चिकित्सा में दी जाने वाली एलोपैथिक दवाइयाँ कब्ज करती हैं। इस पर भी ध्यान देना है।
6. आँतों की दुर्बलता- कब्ज दूर करने के लिए बार-बार जुलाब, रेचक, दस्तावर औषधियाँ, चूर्ण लेने से आँतें अपना स्वाभाविक कार्य करना बन्द कर देती हैं। आँतों में ढीलापन, दुर्बलता, शिथिलता, खुश्की पैदा होती है। दस्तावर औषधियाँ गर्म और उत्तेजना पैदा करने वाली होती हैं। उनके सेवन से बवासीर, स्वप्न दोष आदि बीमारियाँ हो जाती हैं।
7. टट्टी जाने में शीघ्रता- एक बार बैठते ही टट्टी आ जाती है, फिर आने में देर लगती । कुछ देर रुकने, प्रयत्न करने, पेट के बायें हिस्से को हाथों से दबाने से टट्टी फिर आने लगती है। है। अतः टट्टी करते समय शीघ्रता नहीं करनी चाहिए।
8. पानी की कमी–पानी कम पीने से कब्ज होती है। प्यास लगने पर तो सब ही पानी पीते हैं, लेकिन प्रातः शौच से पहले, रात्रि में चार बजे, दोपहर के भोजन के एक घण्टा पहले व दो घण्टे बाद, रात को सोते समय पानी पीयें।
9. स्थान की स्वच्छता–कुत्ता भी स्थान साफ करके टट्टी करता है। यदि टटूटी जाने का स्थान गन्दा है, बदबू आती है तो टटूटी पूर्ण रूप से बाहर नहीं आती। मल साफ स्थान पर सरलता से आता है।
10. मादक द्रव्यों का सेवन–तम्बाकू, बीड़ी, चाय, अफीम, शराब आदि नशीली चीजों के सेवन से शरीर का स्नायु शिथिल हो जाता है जो कब्ज करता है। खाये हुए अन्न का पाक नहीं होता।
11. एलोपैथिक दवाइयों के दुष्प्रभाव-अंग्रेजी दवाइयाँ उच्च रक्त चाप, हृदय रोगों में निरन्तर कैल्शियम चेनल ब्लोकर समूह की दवाइयाँ–निफेडिपीन, एमलोडेपिन आदि; दर्द, खाँसी की चिकित्सा में अफीम या सम्बन्धित दवाइयाँ (कोडिन आदि); रक्त की कमी में आयरन दिया जाता है। ये कब्ज करती हैं। चिकित्सक से इन दवाइयों के दुष्प्रभावों के लिए कब्ज-रोगी को पूछना चाहिये।
कब्ज दूर कैसे करें?
कब्ज स्वयं कोई रोग नहीं है, बल्कि दैनिक दिनचर्या की अव्यवस्था के फलस्वरूप मल का बन्ध है अर्थात् मल पूरा नहीं निकलता। इसकी चिकित्सा के लिए कभी भी दस्तावर नहीं लेनी चाहिए। मन से कब्ज रहने का भाव ही सर्वप्रथम निकाल देना चाहिए। जो कारण कब्ज रहने के बताये गये हैं, उन सबको दूर करना चाहिए। कच्चे फल, सब्जियाँ अधिक खानी चाहिए। जितनी बार खाना खायें उतनी बार शौच की इच्छा न होने पर भी शौच जायें। नित्य ऐसा करने पर शौच आने लगेगा। जिन लोगों को शारीरिक श्रम करने का अवसर नहीं मिलता उन्हें व्यायाम, भ्रमण करना चाहिए। प्रातः सूर्योदय से पहले उठें। भोजन के बाद कुछ समय मनोरंजन, आराम करना चाहिए। पेट भर कर भोजन करना चाहिए। भोजन प्रसन्न मुद्रा में करना चाहिए। नित्य ठीक समय पर मल त्याग की आदत डालनी चाहिए। सप्ताह में एक दिन फलाहार, रसाहार पर रहना चाहिए, इससे आँतों को आराम मिलता है। बुद्धिजीवी जब तक निष्पक्ष, न्यायसंगत विचारधारा नहीं रखेंगे, यह रोग उनका पीछा नहीं छोड़ेगा।
चिकित्सा में सर्वप्रथम भोजन है। भोजन को सुधार कर सब रोगों को दूर कर सकते हैं। भोजन ही महाभेषज है। गीता में कहा है— ‘पथ्यकारक अन्न सेवन करने पर रोग नहीं होते।’ खाने में ऐसी चीजें लें, जिनसे पेट स्वयं ही साफ हो जाये। छिलके सहित दालें, अंकुरित अन्न, अधिक मात्रा में उबली हुई सब्जियाँ, हरे पत्तों वाली सब्जियाँ, सलाद आदि भोजन में नियमित खानी चाहिए। पानी अधिकाधिक पीयें। पालक का कच्चा रस, पेठे का रस, बेल का शर्बत, नारंगी, मौसमी, नीबू, आम, पपीता, अमरूद भोजन में लें। यह भोजन कब्ज दूर करता है। भोजन में अधिक फाइबर (रेशा) वाली चीजें लेनी चाहिए। दलिया, मोटा पिसा हुआ आटा, विशेषकर गेहूँ का आटा अच्छा है। मैदा से बनी चीजें कम-से-कम खानी चाहिएँ। फलों का खाना, विशेषकर पपीता लाभकारी है। फलों को खाने से फाइबर मिलता है, रस में नहीं मिलता। भ्रमण और नियमित व्यायाम उपयोगी हैं।
चूर्ण, जुलाब- कब्ज दूर करने के लिए निरन्तर लम्बे समय तक चूर्ण, जुलाब लेने से आँतों का स्नायुतंत्र कमजोर हो जाता है, जिससे आँतों की गतिशीलता कम हो जाती है, जिससे मल बाहर नहीं निकलता। रोगी प्राय: कहते हैं, ‘पहले चूर्ण से दस्त आ जाता था, अब यह चूर्ण प्रभाव नहीं करता, मल नहीं निकालता, जोर लगाने से भी नहीं निकलता, अपनी अँगुलियों से निकालना पड़ता है।’ यह चूर्ण, जुलाब का दुष्प्रभाव है। कब्ज दूर करने हेतु चूर्ण, जुलाब नहीं लेना चाहिए।
हरड़- (1) स्वस्थ रहने के लिए “स्वस्थ को हरड़ तथा बीमार को लंघन” करना चाहिए। नित्य रात को सोते समय एक चम्मच हरड़ सर्दियों में गर्म पानी से और गर्मी में सामान्य पानी से फँकी लेते रहने से कब्ज दूर हो जाती है। हरड़ दस्तावर औषध नहीं है। यह भोजन का ही अंश है। हरड़ एक रसायन है जिसके सेवन से दस्त साफ आता है तथा चर्म रोग नहीं होते। गर्मी में होने वाली अलाइयाँ भी नहीं होतीं। हरड़ की फँकी निर्भय होकर लें और कब्ज से मुक्त रहें।
(2) एक हरड़ (मुरब्बे वाली) रात को खाकर एवं गर्म दूध पीने से दस्त साफ आता है।
तेल- प्रातः व रात को सोते समय नित्य सरसों के तेल की मालिश पेट पर करें ।
गाजर- 250 ग्राम कच्ची गाजर अच्छी तरह चबा-चबा कर नित्य प्रातः भूखे पेट खायें। इससे कब्ज दूर होगी, भूख अच्छी लगेगी।
नीबू – (1) नीबू का रस गर्म पानी के साथ रात्रि में लेने दस्त खुलकर आता है।
(2) नीबू का रस और शक्कर प्रत्येक 12 ग्राम एक गिलास पानी में मिलाकर रात को पीने से कुछ ही दिनों में पुरानी कब्ज दूर हो जाती है।
नारंगी-सुबह नाश्ते में नारंगी का रस कई दिन तक पीते रहने से मल प्राकृतिक रूप से आने लगता है। यह पाचन शक्ति बढ़ाती है।
मेथी—मेथी के पत्तों की सब्जी खाने से कब्ज दूर होती है। दो चम्मच दाना मेथी, सुबह शाम खाने के बाद फँकी लें। इससे पेट ठीक रहेगा, कभी भी कब्ज नहीं होगी, भूख बढ़ेगी।
गेहूँ-गेहूँ के पौधे का रस लेने से कब्ज नहीं रहती।
सौंफ-सोते समय आधा चम्मच पिसी हुई सौंफ की फँकी गर्म पानी से लें, कब्ज नहीं रहती।
अदरक–एक कप पानी में चम्मच भर अदरक कूटकर डालें। 5 मिनट तक उबाल कर छान लें और पी लीजिए। कब्ज आसानी से ठीक हो जाएगा। दालचीनी, सोंठ, इलायची जरा-सी मिलाकर खाते रहने से लाभ होता है।
ईसबगोल की भूसी
यह कब्ज में बहुत लाभदयक है। इसकी दो चम्मच (चाय वाले) से आरम्भ कर 4 चम्मच तक गर्म दूध या गर्म पानी से फँकी लेनी चाहिए। कभी-कभी ईसबगोल की भूसी लेने से पेट फूल जाता है। ऐसा बड़ी आँतों में ईसबगोल पर बैक्टीरिया के प्रभाव से पैदा होने वाली गैस से होता है। ऐसे लोग ईसबगोल की मात्रा कम लें या नहीं लें। ईसबगोल आँतों में पानी सोखती है, जिससे मल की मात्रा बढ़ती है और मल की मात्रा बढ़ने से आँतों की गतिशीलता भी बढ़ती है जिससे मल ठीक से बाहर निकल आता है। ईसबगोल लेने के बाद दो तीन बार पानी पीना चाहिए। इससे ईसबगोल अच्छी तरह फूल जाता है। इसलिए ईसबगोल रात्रि को सोते समय नहीं लेना चाहिए, खाने के तुरन्त बाद लेना चाहिये ।
टमाटर-टमाटर कब्ज दूर करने के लिए अचूक दवा का काम करता है। यह आमाशय व आँतों में जमा मूल, पदार्थ निकालने में और अंगों को चेतनता प्रदान करने में बड़ी मदद देता है। शरीर के अन्दरूनी अवयवों को स्फूर्ति देता है।
आँवला- रात को एक चम्मच पिसा हुआ आँवला, गर्म पानी या गर्म दूध से लेने से प्रातः दस्त साफ आता है, कब्ज नहीं रहती है। आँतें तथा पेट साफ होता है।
भोजन में मिर्च-मसालों का सेवन कम-से-कम किया जाए एवं उठते ही मधुर रस अर्थात् गुलकन्द, आँवले का मुरब्बा या मुनक्का लिया जाए तो उदर रोगों से बचा जा सकता है। गरिष्ठ भोजन एवं मिर्च-मसालों के अत्यधिक सेवन से अम्लता (एसिडिटी), गैस बनना और कब्ज जैसे उदर-विकार उत्पन्न होते हैं।
पानी ज्यादा पीना चाहिए एवं प्रातः उठते ही मधुर रस का सेवन करना चाहिए। ज्यादा देर भूखे रहने से भी पेट में गैस बनती है। गैस की समस्या से निजात पाने के लिए चुटकी भर नमक के साथ एक चम्मच अजवायन पिसी हुई मिलाकर पानी से फँकी लेनी चाहिए। इसी तरह रात को सोते समय सौंफ, सनाय एवं मुलैठी को बराबर मात्रा में पीस कर दो चम्मच नित्य उपयोग किया जाए तो पेट साफ हो जाता है और कब्ज की समस्या से राहत मिलती है।
पालक–कच्चे पालक का रस प्रातः पीते रहने से कब्ज कुछ ही दिनों में ठीक हो जाती है। पालक और बथुआ की सब्जी खाने से भी कब्ज दूर होती है।
करेले- करेले का मूल अरिष्ट जो होम्योपैथी में मोमरडिका कैरण्टिया Q नाम से मिलता है, की 5 से 10 बूँद नित्य चार बार देने से कब्ज दूर हो जाती है। करेले की कम तेल-मसाले की सब्जी सप्ताह भर खाने से मन्दाग्नि, उदर रोग, कब्ज, आफरा आना सभी रोग नष्ट होते हैं।
शलगम-शलगम को कच्चा खाने से दस्त साफ आता है।
सेब-भूखे पेट सेब खाने से कब्ज दूर होती है। खाना खाने के बाद सेब खाने से कब्ज होती है। सेब का छिलका दस्तावर होता है। कब्ज वालों को सेब छिलके सहित खानी चाहिए व दस्त वालों को बिना छिलके के।
मुनक्का – (1) कब्ज में मुनक्का गर्म दूध में उबाल कर लेने से लाभ होता है।
(2) 20 ग्राम किशमिश, तीन मुनक्का और एक अंजीर को शाम के वक्त एक पाव पानी में भिगो दें। सुबह उठ कर सबको मसल कर उसमें थोड़ा पानी मिलाकर छान लें। बाद में इसमें एक नीबू का रस निचोड़ें और दो चम्मच शहद मिलायें तथा सबको धीरे-धीरे पी जायें। कुछ ही दिनों में कोष्ठबद्धता दूर हो जायेगी।
अमरूद — अमरूद खाने से आँतों में तरावट आती है और कब्ज दूर होती है। इसे खाना खाने से पहले ही खाना चाहिए, क्योंकि खाना खाने के बाद खाने से कब्ज करता है। कब्ज वालों को नाश्ते में अमरूद लेना चाहिए। पुरानी कब्ज के रोगियों को सुबह व शाम अमरूद खाना चाहिए। इससे दस्त साफ आयेगा।
पपीता–कब्ज में पका हुआ पपीता खाना लाभप्रद है। कब्ज की शिकायत होने पर रात में सोने से पूर्व पपीता खाएँ। दूसरे दिन पेट साफ हो जाएगा।
छुआरा – प्रातः 2 छुआरे पानी में भिगो दें। रात को इन्हें चबा-चबा कर खायें। भोजन कम करें। रात को 2 छुआरे दूध में उबालकर भी ले सकते हैं। इससे कब्ज दूर होगी।
प्याज-एक कच्चा प्याज नित्य भोजन के साथ खाने से कब्ज ठीक हो जाती है।
मूली–मूली पर नमक, काली मिर्च डालकर खाना खाते समय नित्य दो माह तक खायें। इससे कब्ज दूर हो जायेगी।
लहसुन – नित्य खायी जाने वाली साग-सब्जी में लहसुन डालकर पकायें। इस प्रकार नित्य लहसुन खाने से कब्ज नहीं रहती।
इमली-इमली का गूदा पानी के साथ उबालकर शक्कर मिलाकर लेने से पेट का आफरा व कब्ज में फायदा होता है।
दूध- गर्म दूध के साथ दो चम्मच गुलाब का गुलकन्द या ईसबगोल की भूसी रात को लेने से टट्टी खुलकर आती है।
घी-तीन दिन घी में काली मिर्च मिलाकर पीयें। इससे आतं मुलायम होकर मल फूल जाता है। फिर गर्म दूध में घी मिलाकर पीने से दस्त नरम, ढीला व साफ आता है।
सरसों का तेल–सरसों के तेल की पेट पर मालिश करने से कब्ज दूर होती है।
अंजीर-कब्ज स्थायी रूप से रहने वाली हो तो अंजीर खाने से दूर हो जाती है। पका हुआ अंजीर खायें या 5 सूखे अंजीर दूध में उबाल कर रात को सोते समय खायें।
फूल गोभी- रात को सोते समय इसका आधा गिलास रस पीने से लाभ होता है।
करम कल्ला (पत्ता गोभी)-करम कल्ले के पत्ते नित्य खाने से पुराना कब्ज दूर होता है। शरीर में व्याप्त विजातीय दोषपूर्ण पदार्थ बाहर निकल जाते हैं।
खरबूजा-पका हुआ खरबूजा खाने से कब्ज दूर होता है।
बथुआ—यह आमाशय को ताकत देता है। कब्ज दूर करता है। कब्ज वालों को बथुए का साग नित्य खाना चाहए। कुछ सप्ताह नित्य बथुए की सब्जी खाने से सदा रहने वाला कब्ज दूर हो जाता है। इससे शरीर में ताकत व स्फूर्ति आती है।
चौलाई–कब्ज में चौलाई की सब्जी खाना लाभदायक है।
मूँग-चावल और मूँग की दाल की खिचड़ी खाने से कब्ज दूर होता है। दो भाग मूँग की दाल तथा एक भाग चावल की खिचड़ी बनायें। नमक डाल सकते हैं, फिर घी डाल कर खायें। इससे कब्ज दूर होगा और दस्त साफ आयेगा।
मसूर की दाल—इसकी दाल खाने से कब्ज में लाभ होता है।
छाछ-छाछ से कब्ज दूर होता है। इसमें अजवाइन मिलाकर पीयें।
नीम-नीम के फूल सुखाकर पीस कर रख लें। यह चूर्ण चुटकी भर नित्य रात को गर्म पानी से फँकी लें। इससे कब्ज में लाभ होता है।
तरबूज–कुछ दिन नित्य तरबूज खाने से कब्ज दूर होती है।
पानी- (1) एक गिलास गरम-गरम पानी जितना गर्म पिया जा सके, खाना खाने के बाद लगातार पीते रहने से कब्ज दूर होता है।
(2) जिन्हें कब्ज रहे, उन्हें भोजन के साथ घूँट-घूँट पानी पीते रहना चाहिए। प्रात: उठते ही एक गिलास पानी पीयें।
(3) कब्ज होने पर गीली पट्टी को पेडू पर रखने से आँतों में सजगता आती है और भूख खुलकर लगती है।
एनीमा–जिनका मल सूख गया है, आँतों में गाँठें (सुदे) पड़ गई हैं, जिनका मल कठिनाई से निकलता है, वे गुनगुने पानी का एनिमा कभी-कभी लगायें।
बथुआ— बथुआ उबाल कर उसका पानी छान कर स्वादानुसार चीनी मिलाकर एक गिलास सुबह-शाम दो बार पीने से कब्ज दूर होती है। तिल – 62 ग्राम तिल कूटकर व मीठा, विशेषकर समान मात्रा में गुड़ मिलाकर खाने से कब्ज दूर होती है। तिल, चावल और मूँग की दाल की खिचड़ी भी कब्ज दूर करती है।
एरण्ड का तेल–सोते समय दो चम्मच एरण्ड का तेल पीने से कब्ज दूर होती है। इसे दूध में मिलाकर भी पी सकते हैं।
शहद—यह प्राकृतिक हल्का दस्तावर है। प्रातः व रात को सोने से पहले 50 ग्राम शहद ताजा पानी या दूध मिलाकर पीयें।
मिट्टी-पेट पर गीला कपड़ा बिछायें। उस पर गीली मिट्टी का लेप करें। इस पर फिर कपड़ा बाँधे। रात भर इस तरह पेट पर गीली मिट्टी की पट्टी रखने से कब्ज दूर होगी, मल बँधा हुआ साफ आयेगा।
चौलाई, मसूर की दाल, तरबूज, सूखे मेवे, छाछ आदि का सेवन भी कब्ज दूर करता है। न भोज्य पदार्थों का अधिकाधिक प्रयोग करने से कब्ज ठीक हो जाती है। इस प्रकार के भोजन के द्वारा चिकित्सा सरल और लाभदायक है।
कब्ज दूर करने के लिए औषधियाँ नहीं लेनी चाहिए। यदि कहीं औषधि आवश्यक हो तो सोम्योपैथिक चिकित्सा विशेष लाभदायक है।