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काई (Valiseneria Spiralis) के फायदे एंव औषधीय गुण

काई (Valiseneria Spiralis) के फायदे एंव औषधीय गुण
काई (Valiseneria Spiralis) के फायदे एंव औषधीय गुण

काई (Valiseneria Spiralis)

प्रचलित नाम- काई, शैवाल।

उपलब्ध स्थान- यह जमे हुए जल, गड्ढों एवं तालाबों में हरी गर्द के समान सतह पर पैदा होकर फैली रहती है।

विवरण- यह इतनी महीन वनस्पति होती है कि पानी हरा गंदला लगता है। यह समुद्र में भी उत्पन्न होती है।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण

यूनानी मत से सर्द तथा तर है। समुद्र में उत्पन्न होने वाली काई गर्म और खुश्क होती है। शरीर के किसी अंग से यदि खून बहता हो तो इसका लेप लगाने से या जौ के आटे के साथ इसको मिलाकर चिपका WWAY देने से रक्त बन्द हो जाता है। गरमी की वजह से होने वाली सूजन में और बच्चों की अंडवृद्धि में भी यह बहुत लाभकारी है। आयुर्वेद के मत से काई ठंडी, हजम होने में हल्की और चिकनी रहती है। यह प्यास, बुखार की खुश्की और गर्मी के घाव को मिटाती है। गर्मी के दिनों में अपनी ठण्डी तासीर की वजह से यह त्वचा की गर्मी में खास प्रभावकारी होती है। पर त्वचा में लेप करने के लिए साफ-सुथरे स्थान को ही प्रयोग करें। नदी, तालाब या गड्ढे के किनारे की काई धूल-मिट्टी के विषाणुओं से युक्त हो सकती है।

1. काई का चूर्ण 3 माशे प्रतिदिन काफी दिनों तक लेने से स्त्री को सन्तान होना बन्द हो जाता है । इस प्रकार और अधिक संतान न चाहने वाली स्त्री के लिए यह परिवार नियोजन का कार्य करती है। सूखी काई के चूर्ण को लेने से बच्चों के हरे-पीले दस्त आना बन्द हो जाते हैं।

2. काई को एक मिट्टी के ठीकरे में भर अग्नि पर चढ़ाकर भस्म कर लें। उस भस्म में समान मात्रा में मिश्री मिलाकर चूर्ण कर लें। इस चूर्ण को 4 माशे की मात्रा में रोजाना लेने से वीर्य का पतलापन और प्रमेह मिट जाता है। यह अधिक सहवास से आयी नपुंसकता के लिए कारगर इलाज है।

3. काई को निचोड़कर उसका जल मूत्रेन्द्रिय के छेद में टपकाने से सुजाक का जख्म भर जाता है।

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