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काठगूलर (Ficus Hispida) के फायदे एंव औषधीय गुण

काठगूलर (Ficus Hispida) के फायदे एंव औषधीय गुण
काठगूलर (Ficus Hispida) के फायदे एंव औषधीय गुण

काठगूलर (Ficus Hispida)

प्रचलित नाम- कटूमर, गोबला, काठगूलर ।

उपलब्ध स्थान- यह सारे भारतवर्ष में पैदा होती है।

विवरण- यह गूलर की जाति का एक पेड़ होता है, पर इसके पत्ते गूलर के पत्तों से बड़े होते हैं। इसके पत्तों को छूने से हाथ में खुजली होने लग जाती है। इस औषधि के पौधे दो से तीन हाथ तक ऊंचे होते हैं। इसके पत्तों की लम्बाई 1 फुट तथा चौड़ाई आधे से पौन फुट तक रहती है। इसके फल अंजीर या गूलर के फल की भांति होते हैं और ये झाड़ में से फूटते हैं।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण

आयुर्वेद- आयुर्वेदिक मत से यह शीतल, कड़वी तथा कसैली होती है। यह संकोचन और रक्तातिसार में फायदा पहुँचाती है।

चर्मरोग तथा रक्तपित, कफ, श्वेतकुष्ठ, पांडुरोग, बवासीर, कामला और सूजन में काठगूलर फायदेमंद है। काठगूलर का फल मीठा, सुस्वादु, ठण्डा, तृप्तिकारक, कामोद्दीपक, पचने में मधुर, वातकारक और ग्राही होता है। यह माता के स्तनों में दूध उत्पन्न करता है।

यूनानी- काठगूलर के पत्तों को पीसकर लगाने से सफेद दाग, स्याह दाग, दाद, मस्से आदि दूर हो जाते हैं। सिर के गंजेपन में कच्चे फलों को पीसकर नमक एवं सिरके के साथ लगाने से फायदा होता है। त्वचा के हर प्रकार के दाग या चर्मरोग में इसके पत्तों को पीसकर उसका लेप लगाएं तथा कुछ देर पश्चात् उसे धो दें। पत्तों के अर्क की 4-6 बूंदें दो-तीन बार सेवन करें खून में शुद्धता आएगी।

1. काठगूलर की जड़ को पीसकर कपड़छन करके, इसी के पंचांग के रस में तीन भावनाएं देकर, सुखाकर चूर्ण बना लेना चाहिए। इसे मधु और घी के साथ चटाने से रक्तपित्त में फायदा होता है और शरीर के किसी भी अंग से बहने वाला खून रुक जाता है।

2. इसके आसव के साथ तीन माशे कुटकी का चूर्ण, दिन में दो बार देने से पाण्डु रोग और कामला मिट जाता है।

3. काठगूलर का काढ़ा या आसव एक मास तक पीने से खाज-खुजली, फोड़े-फुन्सी, दाद, खून की गरमी आदि सभी त्वचा के रोग मिटते है।

4. इसके क्वाथ और आसव के सेवन से पेशाब के सभी रोग-सुजाक, जलन, वीर्यस्राव तथा पित्त प्रमेह मिट जाते हैं, मूत्रनली साफ होती है।

5. काठगूलर की ऊपर लिखी हुई गोलियों के सेवन करने से हर प्रकार की खांसी, छाती का दर्द, छाती की जलन मिट जाती है। हर्रे के चूर्ण के साथ इन गोलियों का सेवन करने से बैठा हुआ गला खुल जाता है। इसके आसव का मंडूर भस्म के साथ सेवन करने से क्षय रोग में भी फायदा होता है।

6. काठगूलर की ऊपर बताई हुई गोलियों के सेवन करने से गर्भिणी को होने वाली उबकाई तथा उलटियाँ मिट जाती हैं।

7. न भरने वाले जख्म और व्रणों में इसकी जड़ का चूर्ण दबाने से और इसके क्वाथ से उनको धोने से जख्म भर जाते हैं।

8. इसकी छाल के चूर्ण को 5 माशे से 2 माशे तक की मात्रा में दिन में तीन-चार बार देने से बारी-बारी से आने वाला बुखार मिट जाता है।

9. इसके फलों की पुल्टिस बनाकर बंद गांठ पर बांधने से फायदा होता है।

10. इसके फलों को खाने से गर्भपात का होना बन्द हो जाता है। फलों का सेवन रक्त शुद्ध और प्रजनन अंगों को दृढ़ता प्रदान करता है।

11. इसके फलों के चूर्ण में बराबर शक्कर तथा शहद मिलाकर मोदक बाँधकर खिलाने से प्रदर रोग मिट जाता है।

12. इसकी जड़ तथा धतूरे के बीजों को चावलों के जल के साथ पीसकर पिलाने से कुत्ते का विष उतर जाता है।

13. इसके पके हुए फलों के बीजों का चूर्ण चार माशे की मात्रा में गरम जल के साथ देने से वमन हो जाती है।

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