कोसुम (Schleichera Triguta)
प्रचलित नाम- कोसुभ, कुसुम
उपलब्ध स्थान- यह बिहार, बंगाल, नेपाल, श्रीलंका, बर्मा, आसाम आदि में पाया जाता है।
परिचय- यह बड़े आकार का एक पेड़ होता है। इसको जंगली आम भी कहते हैं। इसका पेड़ मध्यम ऊंचाई का होता है। इसकी छाल मोटी, नरम, हल्के बादामी रंग की और फिसलनी होती हैं। इसके पत्ते 20 से 40 सेन्टीमीटर तक लंबे होते हैं। इसके फूल कुछ हरापन लिए हुए पीले होते हैं । इसके फल जायफल की तरह होते हैं। इन फलों में 1 से 3 तक बीज होते हैं। इसके फल का गूदा सफेद, खट्टा, रोचक और खाने योग्य होता है। इसके बीजों का तेल निकाला जाता है। बंगाल में इसके बीजों को ‘पक’ कहा जाता है।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
आयुर्वेद – आयुर्वेदिक मतानुसार कोसुम का छिलका चर्मरोग, प्रदाह, व्रण और कफ में लाभकारी होता है। इसका कच्चा फल तीखा व खट्टा, गरम तथा कठिनता से पचने वाला होता है। यह फल पित्तकारक, वातनाशक तथा आंतों को सिकोड़ने वाला होता है। इसका पका फल मीठा, खट्टा, आसानी से पचने वाला, आंतों को सिकोड़ने वाला व रुचिकर तथा भूख को बढ़ाने वाला होता है। इसके बीज स्निग्ध, सुस्वादु तथा क्षुधावर्धक होते हैं। ये पौष्टिक और पित्तनाशक होता है। इसका तेल कड़वा, तीखा और मीठा होता है। यह पौष्टिक, अग्निवर्द्धक, कृमिनाशक तथा विरेचक होता है। यह चर्मरोग में फायदा पहुंचाता है और जख्म को भरता है।
1. कोसुम के बीजों का तेल गंज में अत्यधिक फायदा पहुंचाता है। इसके लगाने से गंज मिटकर केश उगने लग जाते हैं। नीलगिरी निवासी इसके तेल को शरीर पर मलते हैं। इसके असर से त्वचा में चिकनाहट आती है।
2. महाराष्ट्र, मालाबार और कुर्ग में इसे खुजली तथा अन्य चर्म रोग मिटाने के लिए प्रयोग में लाते हैं। यह इलाज जंगली जातियों में अधिक प्रचलित है। इसके बीजों को पीसकर जानवरों के जख्मों पर लगाते हैं और भीतर के कृमियों को नाश करने के काम में भी लेते हैं। कोसुम में विषाणुओं का नाश करने का प्राकृतिक गुण होता है; अतः यह न केवल घाव के रोगाणुओं का नाश करता है, बल्कि घाव को जल्दी भी भरता है।
3. कोसुम का छिलका संकोचक होता है। इसे तेल में मिलाकर खुजली की बीमारी पर लगाते हैं। संभालु जाति (एक आदिवासी जाति) के मनुष्य इसको पीठ तथा कटि की पीड़ा दूर करने के लिए प्रयोग में लेते हैं।
4. इसका तेल खुजली तथा मुंहासे के ऊपर लगाया जाता है। इससे खुजली और मुंहासे मिट जाते हैं।
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