खरजाल (Salvadora Persica)
नाम- बड़ापिलु, छोटापिलु, खरजाल, पिलु।
उपलब्ध स्थान- यह वृक्ष हिन्दुस्तान के सूखे हुए भागों में बलूचिस्तान और श्रीलंका में उत्पन्न होता है। यह पश्चिमी एशिया के शुष्क भागों में तथा इजिप्ट और अबीसीनिया में उत्पन्न होता है।
परिचय- यह एक बहुशाखी हरी झाड़ी है, इसकी डालियाँ श्वेत होती हैं। इसका प्रकाण्ड खुरदरा होता है। इसकी बहुत सी शाखाएँ होती हैं। ये चमकीली और सफेद होती है। इसके पत्ते दलदार होते हैं। ये 3.8 से 6.3 सेण्टीमीटर तक लम्बे और 3.2 से० 3.5 से० मी० तक चौड़े होते हैं। ये अण्डाकार और बरछी के आकार के होते हैं। इसके फूल हरे-पीले रंग के होते हैं। इसका फल गोल और फिसलना होता है। यह पकने पर लाल हो जाता है। पका हुआ फल औषधीय तौर पर खूब उपयोग किया जाता है। यह फल मीठा होने की वजह से कार्बोहाइड्रेट गुण रखता है, इसलिए बलवर्द्धक होता है।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
आयुर्वेद- इसका फल मीठा, कामोद्दीपक, विषनाशक, अग्निवर्धक तथा क्षुधोत्तेजक होता है। यह पित्त में उपयोगी होता है। इसका तेल पाचक और वातनाशक होता है। यह भूख को बढ़ाता है। कब्ज को खत्म करना है। कब्ज मिटाकर पेट के रोगों को खत्म करता है।
यूनानी- इसके पत्ते कड़वे, आंतों को सिकोड़ने वाले, यकृत को पुष्ट करने वाले, कृमिनाशक और पीड़ा को दूर करने वाले होते हैं। ये पीनस तथा अन्य नाक की पीड़ा में उपयोगी हैं।
बवासीर, खाज, धवल रोग और प्रदाह में ये लाभकारी हैं। ये दांतों को मजबूत करते हैं। इसका फल मधुर, कामोद्दीपक, मूत्रल और कृमिनाशक होता है। यह पेट का अफारा उतारने वाला होता है तथा पित्त में उपयोगी है। इसके बीज स्वाद में कडुवे और तीक्ष्ण होते हैं। ये विरेचक तथा यकृत को पुष्ट करने वाले होते हैं। पके फल का बीज निकाल कूटकर औषधि में उपयोग करते हैं।
1. इसके पत्ते सनाय के पत्तों की तरह रेचक होते हैं। इसके बीजों का तेल राई के तेल की तरह काम करता है। संधिवात में इसकी मालिश करने से फायदा होता है। इसकी छाल का काढ़ा पसीना लाने वाला और किंचित् मूत्रजनक है। बीज को तेल में पकाकर जोड़ों के दर्द में मालिश करते हैं।
2. इसकी जड़ की छाल का काढ़ा बुखार की बेहोशी और बड़बड़ाहट में लाभ पहुँचाता है। यह औषधि गर्भवती स्त्री को कभी नहीं देनी चाहिए।
3. इसकी डालियाँ व पत्ते तीक्ष्ण होते हैं। ये पंजाब में सभी प्रकार के विषों का निवारण करने के प्रयोग में लिए जाते हैं। इसके पत्तों का रस स्कर्वी रोग में दिया जाता है।
4. इसका फल सर्पदंश में प्रयोग करते हैं। इसे ताजी और सूखी दोनों ही स्थिति में काम में लेते हैं। सुखा लेने पर इसे सुहागे के साथ मिलाकर अधिक मात्रा में देते हैं।
5. इसकी जड़ का छिलका बहुत ज्यादा कसैला और तेज होता है। यदि इसे पीसकर चर्म पर लगाया जाए तो छाले सही हो जाते हैं।
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