थूहर (Milk Hedge)
प्रचलित नाम- थूहर।
उपयोगी अंग- मूल, कांड तथा पत्र |
परिचय- अतिशाखित, मांसल, 10-15 फीट ऊँचा क्षुप होता है। इसकी शाखाएं चक्रों में और कंटकी एवं मांसल होती है। उत्पन्न कंटकी, शाखाओं के अंत में चारों तथा गुच्छेकार पत्ते होते हैं फूल छोटे-छोटे हरापन लिए पीले पड़ जाते हैं। इसके किसी भी अंग को तोड़ने से दुग्ध रस निकलता है।
स्वाद- तीखा ।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
अतिरेचन, कफ निःसारक, अमाशय, उत्तेजक, मूत्रल, उद्वेष्टनिरोधी ।
आंत्रशूल आध्मान, उन्माद, चर्मरोगों में, अर्श, शोथ, मूत्राशय, अश्मरी, पाण्डुरोग, व्रण के कारण होने वाले शोथ में, बुखार, प्लीहावृद्धि में लाभदायक ।
क्षीर का प्रयोग चर्मरोगों में, जलोदर तथा अर्श में लाभदायक है। क्षीर उदररोग में लाभकारी (काली मिर्च को क्षीर में भिगोकर और सुखाकर) इसका दुग्धरस, कर्णशूल और त्वचा पर होने वाले फोड़े-फुन्सियों पर लगाने से फायदा होता है। इसमें फोड़े-फुन्सियों का घाव बढ़ाने वाले जीवाणुओं के प्रभाव को रोकने की क्षमता होती है। तमक श्वास में पत्तों का स्वरस या कांड का रस शहद के साथ देने से फायदा होता है। इसमें फोड़े-फंसियों का जख्म बढ़ाने वाले जीवाणुओं के असर को रोकने की क्षमता होती है। व्रण में क्षीर को घी के साथ मिलाकर लगाने से फायदा। सेहुड़ का दुध एक अच्छा रेचक तथा वामक है।
इसका प्रयोग कैप्स्यूल में भरकर करना चाहिए।
जलोदर जैसे रोग में जब शौच कठोर हो गया हो तथा रेचन न होता हो, ऐसे समय में इसके दूध प्रयोग (10 बूंद) शरबत में मिलकर सेवन करने से रेचन होता है। एक पापड़ पर इसके दुग्ध की ३-४ लाइन कर, इसको आग पर सेंककर सेवन कराने से 3-4 बार शौच हो जाता है।
जलोदर में सेहुड़ के पत्तों का बिना नमक के साग बनाकर सेवन कराना चाहिए। सेहुड़ के दूध की लींडी पीपर के चूर्ण की 21 भावनाएँ देकर, इस प्रीपरी का प्रयोग करने से जलंदर सही होकर जठराग्नि प्रदीप्त होती है तथा रेचन अच्छा होता है। पैरों की एड़ियाँ फट गयीं हो तो सेंहुड़ का चार तोला दूध एक तोला तिल का तेल तथा थोड़ा सा सैन्धव मिलाकर गरम कर समग्र दूध जलकर सिर्फ तेल रह जाए, तो इसको फटे हुए हिस्सों में भर देने से फायदा होता है। पैर के तलुओं में सर्दी के मौसम में अक्सर एडियों में बिवाई हो जाती है। बिवाई में इसे भरने से जल्दी लाभ होता है।
मात्रा- मूल का चूर्ण आधे से एक ग्राम । कांड का स्वरस 5-10 मि.ली. । क्षीर 125 ये 250 मि. ग्रा. ।
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