धमासा (Fegonia Arabica)
प्रचलित नाम- धमासा, हिंगुगा ।
उपयोगी अंग- तना, फूल ।
परिचय- यह कांटेदार झाड़ीनुमा छोटा क्षुप होता है जो खेतों में उत्पन्न होता है। यह सिंध, पंजाब और राजपूताने में काफी होता है। इस क्षुप की बहुत डालियां होती हैं। इसके पत्ते 1 इंच से डेढ़ इंच लंबे सनाय के पत्तों के तरह होते हैं। फूल फीके गुलाबी रंग के, फल छोटे और पांच फांक वाले रहते हैं। बाजार में इसके बारीक-बारीक टुकड़े मिलते हैं।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
आयुर्वेद – आयुर्वेदिक मत से धमासा चरपरा, कड़वा, मीठा, रक्तशोधक, शीतल, गरम तथा विसर्प, विषम ज्वर, तृषा, वमन, प्रमेह, गुल्म, मोह, रुधिर विकार, वात, पित्त, कफ, कोढ़ तथा ज्वर को दूर करता है।
यूनानी – यह गरम और खुश्क है। यह दाद, मुख के छाले, खांसी, ज्वर और दमे में लाभदायक होता है। खून, पित्त और कफ हैं की खराबी को दूर करता है। प्यास को दूर करता है। वमन को रोकता है, फोड़े-फुन्सी और कोढ़ को मिटा देता है। जलोदर में लाभदायक होता है, मेदे और जिगर को शक्ति देता है। मुनक्का के साथ इसका काढ़ा बनाकर देने से ज्वर युक्त अतिसार में फायदा होता है। शरीर के किसी भी अंग से होने वाले रक्तस्राव को रोक देता है।
इसको दूध में पकाकर लेप करने से कारबंकल की सूजन उतर जाती है। सुजाक तथा पेशाब की जलन में भी यह लाभदायक होता है।
ज्वर के भीतर धमासे की फांट बनाकर देने से शरीर की जलन कम हो जाती है। सिंध और अफगानिस्तान में यह वनस्पति सदैव ज्वर में दी जाती है। सर्दी के बुखार, गले की सूजन, श्वासनलिका की सूजन इत्यादि रोगों में इस वनस्पति का अच्छा प्रयोग होता है। इससे गले की खरखरी मिटकर कफ छूटने लगता है। गले की सूजन में इसकी फांट को थोड़ा-थोड़ा पिलाने से फायदा होता है। इसको चिलम में रखकर इसका धूम्रपान करने से दमे का दौरा बैठ जाता है। धमासे के काढ़े से कुल्ले करने से मुख के छाले मिट जाते हैं। धमासा में रोगाणुओं को खत्म करने का उपयोगी गुण होता है। इससे मुख के छाले खत्म होते हैं। इसके रस को गन्ने के रस के साथ उबालकर उसका अवलेह बनाकर प्रयोग करने से गले और फुफ्फुस के रोगों में फायदा होता है। कांटों से या दूसरे कारणों से उत्पन्न हुई विद्रधि को पकाने में यह वनस्पति काफी लाभदायक है।
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