रत्ती (Jaquirity)
प्रचलित नाम- रत्ती / गुंजा
उपयोगी अंग- मूल, पत्र तथा बीज ।
परिचय- यह बहुवर्षयु चक्रारोही लता है। इसके संयुक्त पक्षकरा पत्ते, फल सफेद या गुलाबी रंग के बीज चमकीले सिंदूर वर्ण या सफेद रंग के काले दाग के साथ।
स्वाद- तीखा ।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
अतिरेचक, वामक, बल्य, बाजीकर, उद्वेष्टहर । वातिक, जांङ्गमविष, गर्भ निरोधक, जंतुघ्न, गर्भपात कराने में सक्षम, कृमिघ्न, शूलहर, कुष्ठघ्न और पेशी विश्रामक, इसके पत्र- मुलेठी की प्रकार मधुर तथा कफ । शामक, व्रण रोपण होते हैं।
किसी भी प्रकार के फोड़े पर इसके पत्तों को पीसकर लेप करने से फोड़ा पककर सही हो जाता है।
(1) इसके पत्तों को मिश्री के साथ चूसने के स्वरभंग में लाभदायक होता है।
(2) वीर्य विकार में दो माशे मूल को दूध में पकाकर भोजन के पहले रात में देने से फायदा होता है।
(3) सफेद कुष्ठ में पत्र स्वरस चित्रक मूल में मिलाकर प्रयोग किया जाता है।
(4) गंजापन दूर करने के लिए रत्ती का चूर्ण पानी में मिलाकर इसका लेप सिर पर बार-बार करने से केश आ जाते हैं
कण्डु एवं कुष्ठ रोगों में भृंगराज के रस में गुंजा का चूर्ण मिलाकर तेल सिद्ध करना चाहिए। इस तेल के लेप से फायदा होता है। गण्डमाल में गुंजाफल (500 ग्राम), गुंजामूल (500 ग्राम) के क्वाथ से सिद्ध किया हुआ तेल के नस्य तथा अभ्यंग से इस रोग का नाश हो जाता है। गृध्रसी में सायटिका नाड़ी पर गुंजाकल्क का लेप करना चाहिए इससे वेदना समाप्त होती है। नेत्र के तिमिर रोग में, शिरो रोगों में गुंजामूल स्वरस का नस्य देना चाहिए। इससे सभी तरह के शिरो रोगों दूर हो जाते हैं। कैसा भी सिर दर्द हो, गुंजा के पत्तों को पीस कर मस्तक पर लेप करने से ठण्डक मिलने से सिर का दर्द जाता रहता है।
दंतकृमि में गुंजा के ताजे मूल का प्रयोग दातून की प्रकार करने से दंत मूल के कृमि समाप्त हो जाते हैं। वाजीकारणार्थ गुंजा फलों को दूध में पकाकर शुष्क कर लेना चाहिए, फिर उसका चूर्ण बनाकर रोजाना प्रातः- शाम दूध के साथ सेवन करने से मनुष्य सशक्त होकर अच्छी प्रकार संभोग कर सकता है।
औषधोपयोगी कार्य में गुंजा (श्वेत) के बीजों का ही प्रयोग करना चाहिए। कंठ शोध में-गुंजा के हरे पत्ते कंकोल के साथ चबाने से, इसका रस गले से नीचे उतारने पर स्वरभेद एवं कंठ शोध में फायदा होता है। भाकृच्छ्र एवं रक्तपित्त में सफेद गुंजा के पत्र, जीवन्ती के मूल, श्वेत जीरक तथा सिता के साथ मिलाकर चूर्ण बनाकर इसका सेवन करने से फायदा होता है।
विष प्रभाव-बिना शोधन के बीज का प्रयोग वामक तथा विरेचक होता है। शोधन-इसके बीज गाय के दूध में एक पहर उबालकर छिलके निकालकर गर्म जल से धोकर प्रयोग करना चाहिए। मात्रा में-मूल/पत्र चूर्ण-1-5 ग्राम, बीज चूर्ण-60-180 मिली ग्राम ।
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