जड़ी-बूटी

अंजुवार (Polygonum Aviculara Pviveparum) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण

अंजुवार (Polygonum Aviculara Pviveparum) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
अंजुवार (Polygonum Aviculara Pviveparum) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण

अंजुवार (Polygonum Aviculara Pviveparum)

प्रचलित नाम- मचूटी, निसोमली,  इंद्राणी, बीजवंद ।

उपलब्ध स्थान – यह हिमालय पर्वत की चोटियों पर, कश्मीर से कुमाऊं तक, छः हजार से बारह हजार फीट की ऊंचाई तक पाया जाता हैं।

परिचय- इसका पौधा छोटी जाति का होता है। इसकी शाखायें चारों तरफ फैली हुई रहती हैं। यह पौधा नर्म पत्ते वाला, फैला हुआ और पुष्पदार होता है। इसके पत्ते बरछी के आकार से मिलते हुए होते हैं। इसके फूल लाल रंग के धब्बेदार तथा छोटे किंचित तिकोने होते हैं।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण

यूनानी- यह ठण्डा और रुक्ष है, इस पौधे की जड़ रक्तस्राव को रोकने वाली, संकोचक, बुखार को नष्ट करने वाली, विरेचक और मूत्रल है। पेट की जलन और मूत्राशय की पीड़ा में यह लाभ पहुंचाती है। हाथीपांव (श्लीपद) और विसर्प रोग में भी यह लाभदायक होती है। फेफड़े और वक्षस्थल के रक्तस्राव में यह औषधि विशेष तौर पर उपयोगी है।

गुण- इसकी जड़ सूजन में फायदा पहुंचाने वाली और संकोचक है। इसका क्याथ सोमरोग तथा प्रदर रोग में लाभ पहुंचाता है।

इसके क्वाथ से कुल्ले करने से मसूड़े की सूजन तथा गले की बीमारी में लाभ पहुंचता है। इस वनस्पति का ठण्डा काढ़ा रक्तातिसार में फायदा पहुंचाता है। मलाया देश में यह सुजाक की बीमारी में काम में लिया जाता है।

इसकी जड़ का क्वाथ ढाई तोले से पांच तोले तक की मात्रा में मलेरिया ज्वर, प्राधीन अतिसार, पथरी, कुक्कुर खांसी (हुपिंग कफ) इत्यादि रोगों में लाभकारी होता है।

अंजुवार की जड़ को करीब 30 मिनट तक पानी में उबालें, जब पानी जलकर आधा रह जाए, तब उतार कर ठण्डा कर छानकर रख लें। अब यह क्वाथ रूप में औषधि बन जाती है। इस औषधि की दो चम्मच मात्रा सुबह-शाम खांसी, बुखार में प्रयोग करें।

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