अकलबेर (Datisca Canalina)
प्रचलित नाम- अकलबेर।
उपलब्ध स्थान- यह वनस्पति पूरे भारतवर्ष और चीन देश में उत्पन्न होती है। इसका पौधा काले धतूरे पौधे के ही समान होता है। सिर्फ इसके फूल श्वेत रंग के होते हैं।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
आयुर्वेदिक मत से इसके बीज पागल कुत्ते के काटने पर उपयोगी रहते हैं। कान पीब बहने की बीमारी में भी ये लाभकारी होते हैं। इसके बीज, जड़ें और पत्ते उन्माद रोग में उपयोगी हैं। इस वनस्पति की जड़ को दूध के साथ उबालते हैं।
1. जिस बुखार के साथ में जुकाम रहता हो या जिस ज्वर में मस्तिष्क के भीतर कुछ खराबी हो, उसमें यह वनस्पति उपयोगी है। अतिसार, रक्तातिसार और चर्म रोग में भी यह लाभदायक है। इसके पत्तों को कुचल कर अथवा इसके बीजों को पीसकर तेल के साथ मिलाकर आमवात की सूजन, फोड़े, गठान तथा अर्बुद पर लगाने के काम में लेते हैं।
2. धतूरे के पत्तों को पीसकर और उनका लेप बनाकर प्रदाह के स्थान पर लगाते हैं। इसके फल अथवा इसके रस में अफीम तथा तिल के तेल को मिलाकर एक लेप तैयार किया जाता है, जो कि कृमियों को खत्म करने के काम में लाया जाता है। यह परजीवी कीटाणुओं को भी समाप्त करता है।
3. इसके गर्म किये हुए पत्ते नेत्रों पर बांधे जायें तो आंखों की बीमारियों को लाभ पहुंचाते हैं। ये सिरदर्द, अण्डवृद्धि और फोड़ों में भी उपयोगी हैं।
4. प्रदाहयुक्त जगह पर इसके पत्तों को अफीम मिलाकर लगाया जाता है। इसके पत्ते, जड़ और बीज, तीनों औषधि के काम में लाए जाते हैं। ये पागलपन में उपयोगी माने जाते हैं। प्रतिश्याय और दिमाग की बीमारी वाले ज्वर में, रक्तातिसार में लाभकारी हैं। चर्म रोगों में भी ये उपयोगी है।
5. छाती के प्रदाह में हल्दी तथा धतूरे के फल से तैयार किया हुआ लेप कांफी जल्दी लाभ पहुंचाता है। इसकी जड़ को दूध में उबालकर, उस दूध को धोये हुए घी और दूसरी औषधियों के साथ पागलपन को दूर करने के लिये उपयोग में लिया जाता है।
6. इसके बीज श्लीपद की बीमारी में उपयोगी होते हैं। टांग की पीड़ा में भी ये बहुत लाभकारी हैं। इन बीजों को सुबह-सवेरे में ठंडे पानी व चावल के साथ एक रत्ती की मात्रा में देना चाहिए। इसकी खुराक को धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए।
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