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अगर (Aquilaria Agallocha) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण

अगर (Aquilaria Agallocha) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
अगर (Aquilaria Agallocha) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण

अगर (Aquilaria Agallocha)

प्रचलित नाम- अगर ।

उपलब्ध स्थान- अगर के वृक्ष सिलहट, मणिपुर, मलयालम, स्त्रावार आदि के वनों में प्राप्त होते हैं। यह मूल्यवान वृक्ष है और इसकी राल से सुगंध निकलती है, जिसका प्रयोग अगरबत्ती बनाने इत्यादि में किया जाता है।

परिचय- यह साठ से सौ फीट ऊंचा एक सघन वृक्ष है। हमेशा हरा-भरा रहता है। इसकी लकड़ी नरम होती है। आयुर्वेद में इन्हें कृष्ण गुरु, दाहा गुरु, स्वाहा गुरु तथा मंगला गुरु भी कहते हैं। कृष्णा गुरु सिलहट के वनों में पाया जाता है और यही उत्तम औषधि समझी जाती है। यह जल में डूब जाती है। चबाने में मुलायम तथा कड़वी लगती है। जलाने पर सुगन्ध देती है।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण

आयुर्वेद – कड़वा गर्म, लेप में शीतल, पित्तनाशक, सुगन्धित है। यूनानी में रुक्ष ।

कान्तिवर्द्धक, कफनाशक, कुष्ठ एवं खुजली को समाप्त करने वाली, प्यास का शमन करने वाली, शरीर की रंगत को साफ करने वाली, बालों की बढ़ोत्तरी करने वाली, हूपिंग कफ (कुकर खांसी) में लाभ पहुंचाने वाली, विरेचनदायक, मुंह की दुर्गन्ध हटाने वाली, अफारा दूर करने वाली एवं त्वचा को निरोग करने वाली औषधि है। इसका उपयोग सुगन्धित अगरबत्तियों को बनाने में और इत्र बनाने में भी होता है।

कुछ लोगों का मानना है कि इसकी लकड़ी या छाल को काली के सामने रखकर उसकी पूजा करने के पश्चात् पीसकर शरीर पर लगाने से दिव्य कान्ति प्राप्त होती है। काली की ही आराधना करके इसका चोआ पान में लगाकर खाने से अति कामोद्दीपन होता है।

इसका प्रयोग बाजीकरण में भी किया जाता है। हृदय रोग तथा मंदाग्नि में इसकी लकड़ी का (घिसकर) शहद में मिलाकर पिलाने से आशातीत लाभ पहुंचता है।

प्रतिनिधि- यदि अगर ना मिले तो उपरोक्त रोगों में अगर की जगह पर इनका उपयोग कर सकते हैं उपदालचीनी, बालछड़, देवदारु ।

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