जड़ी-बूटी

अजमोद (Roxburghianum) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण

अजमोद (Roxburghianum) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
अजमोद (Roxburghianum) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण

अजमोद (Roxburghianum)

प्रचलित नाम- अजमोद।

परिचय-अजमोद के पौधे एक से तीन फुट तक लम्बे होते हैं। इसके पत्ते अनेक भागों में विभक्त होते हैं। प्रत्येक भाग अनीदार, कंगूरेदार और कटे हुए किनारे वाले होते हैं।

यह जाति अजवायन का ही एक भेद है। इसके झाड़ भी अजवायन के झाड़ की तरह होते हैं। इसके बीज शीतकाल के शुरू में बोये जाते हैं। इसकी शाखाओं पर बड़े-बड़े छत्ते लगते हैं। उन छत्तों से श्वेत रंग के छोटे-छोटे पुष्प लगते हैं।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण

आयुर्वेद – अजमोद कड़वी, चरपरी, अग्निदीपक, गर्म, उष्णीय, दाहकार, हृदय को हितकारी, वीर्यवर्धक, कफ, वात रोगों को दूर करने वाली, आंतों को सिकोड़ने वाली और वायुनलियों के प्रदाह, कुक्कुरखांसी, जलोदर, गुदाशय की पीड़ा, कृमि, वमन, हिचकी इत्यादि रोगों में फायदा पहुंचाने वाली है।

यह पाचन क्रिया से होने वाली बीमारियों में अत्यंत लाभदायक औषधि है। शरीर के भीतरी अंगों की सभी बीमारियों पर इसका प्रयोग अपना असर डालता है।

यूनानी चिकित्सा के मतानुसार यह गर्म तथा रुक्ष है। यह गर्भवती तथा दूध पिलाने वाली नारियों और मिर्गी के रोगियों के लिये हानिकारक है।

इसके बीज गर्म और तीव्र होते हैं। यह रेचक, पेट के अफारे को दूर करने वाली, क्षुधा को तेज करने वाली, कृमिनाशक और कामोद्दीपक है। यह गर्भस्रावक औषधि है, इसलिए गर्भवती औरतों के लिए हानिकारक है। यह आमाशय में गर्मी और उसमें एक प्रकार की भाप उत्पन्न करती है। यह भाप जब मस्तक में पहुंचती है, तब घनीभूत होकर वायु बन जाती है और इसी से मिर्गी रोग को उत्तेजना प्राप्त होती है, इसलिए मिर्गी रोग वालों के लिए यह हानिकारक है। यकृत, प्लीहा और हृदय को यह काफी लाभ पहुंचाती है। रजःरोध (नष्टार्तव) मूत्र सम्बन्धी बीमारियां, बुखार, गठिया और सीने के दर्द में भी लाभदायक है। पथरी के रोग में भी यह फायदा पहुंचाती है। यह पथरी के टुकड़े-टुकड़े कर मूत्रावरोध की पीड़ा को समाप्त कर देती है।

इसकी जड़ इसके बीजों की अपेक्षा बलवान, कफ-सम्बन्धी रोगों और जलोदर में फायदा पहुंचाने वाली तथा फेफड़े के लिए हानिकारक है। इसके अलावा यह रसादिक विकारों को दूर करने वाली, मूत्राशय तथा सर्वांगीण सूजन में फायदा पहुंचाने वाली है।

1. काले नमक के साथ अजमोद की फंकी देने से पेट का दर्द दूर हो जाता है तथा इसके चूर्ण की गुड़ के साथ गोली बनाकर देने से पेट का अफारा मिट जाता है।

2. पसली के दर्द तथा हर अंग में बादी की पीड़ा मिटाने के लिए अजमोद को गर्म कर बिस्तरे पर बिछा देना चाहिए तथा उस पर रोगी को सुलाकर हल्का वस्त्र ओढ़ा देना चाहिए।

3. अजमोद को पान में रखकर उसका रस चूसने से सूखी खांसी में फायदा होता है।

4. जिनको भोजन करने के बाद हिचकी आती हो, उनको भोजन के पश्चात अजमोद के दाने मुख में डालकर रस चूसने से लाभ होता है।

5. अजमोद और नमक को एक पोटली में बांधकर गर्म कर, पेट पर सेंक करने से मूत्राशय की बादी मिट जाती है।

6. अजमोद को जलाकर उसकी धूनी देने से दांतों की पीड़ा मिट जाती है।

7. अजमोद को तेल में औटाकर मालिश करने से बादी के दर्द खत्म हो जाते हैं।

8. अजमोद तथा लौंग के सिरे (टोपी) को पीसकर शहद के साथ चाटने से वमन बंद होती है।

9. बच्चों की गुदा में पड़ने वाले श्वेत कृमि (चुन्ने) अजमोद की धूनी देने से समाप्त हो जाते हैं।

10. तीन माशे अजमोद का चूर्ण, एक तोले मूली के पत्तों के रस के साथ पिलाते रहने से पथरी गल कर निकल जाती है।

11. अजमोद, मोचरस, धाय के फूल और अदरख-इन चारों चीजों को कूटकर इनका चूर्ण बनाकर बोतल में भर लेना चाहिए। इस चूर्ण को तीन माशे से छः माशे तक गाय के दूध की दही के साथ देने से प्रवाही अतिसार बंद हो जाता है।

12. अजमोद, पीपर, रासना, गिलोय, सूंठ, असगन्ध, शतावरी तथा सौंफ-इन सभी को समान भाग लेकर चूर्ण कर लेना चाहिए। इस चूर्ण को गाय के घी के साथ देने से सब जगह के वात विकार नष्ट होते हैं।

13. अजमोद, पीपर, वायविडंग, बड़ी सौंफ, नागरमोथा, काली मिर्च, सेन्धा नमक एक-एक तोला, हरड़ 5 तोला, सूंठ 19 तोला, वृद्धदारु (विधायरा ) 10 तोला, भारंगी की जड़ 6 तोला। इन सब औषधियों को लेकर चूर्ण करके सभी वजन से दुगना गुड़ लेकर झड़बेर के बराबर गोली बना लें। इन गोलियों को गर्म जल के साथ लेने से सब प्रकार की वात व्याधि दूर होती है।

14. अजमोद 12 तोला, चित्रक 11 तोला, हरड़ 10 तोला, वायविडंग 9 तोला, 3 तोला वच 2 तोला हींग प्राचीन गुड़ 2 सेर। इन सब औषधियों को कूट, छान, मिलाकर आधी-आधी छटांक के लड्डू बना लें। इन लड्डुओं में से सुबह शाम एक-एक लड्डू गर्म पानी के साथ लेने से सब प्रकार के वात रोग, गोले के रोग, प्रमेह तथा हृदय रोग, शूल, कुष्ठ, गलग्रह, श्वांस, संग्रहणी, पाण्डुरोग, अग्निमांद्य, अरुचि इत्यादि समाप्त होते हैं।

इसे भी पढ़ें…

About the author

admin

Leave a Comment