अतिविषा (Indian Attes )
प्रचलित नाम- अतिविषा ।
उपयोगी अंग- मूल, कंद (नवीन सफेद कंद 1 इंच लम्बा तथा 1/2 इंच मोटा), बिना कीड़ा लगा।
परिचय- एक छोटा क्षुप जो लगभग 3 से 4 फीट ऊँचा होता है। इसका काण्ड गोल, जिस पर दो प्रकार के पत्ते होते हैं। केंद मूल के निकट के पत्ते पंचपत्री एवं गोल, जबकि कांड के आगे की तरफ के पत्ते छोटे एवं दंतुर, फूल नीले या हरे नीलवर्णी होते हैं।
स्वाद – तिक्त ।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
दीपन, ग्राही, कृमिघ्न, वमनशामक, तृषा शामक, तीक्ष्ण, त्रिदोष शामक, उष्ण, वीर्य, तीखे पौष्टिक, पाचक ।
इसके कंद का उपयोग सभी प्रकार के बुखारों में खांसी, यकृत रोगों, कृमिरोग, अर्श, प्रतिश्याय, अतिसार, विषघ्न, वमन में, बल्य, विषम बुखार में, कुपचन, शोथ में, शूल में इसका उपयोग लाभकारी है।
छोटे बालकों के रोगों में यह एक उत्तम औषधि है। बच्चों की खांसी, श्वास रोग, बुखार एवं वमन में इसके कंद का चूर्ण, ऋतु शरीर का बंधारण, आयु एवं रोग का विचार योग्य मात्रा में शहद मिलाकर सेवन कराना चाहिए। छोटे बच्चों के ज्वर तथा वमन में अतिविषा एवं नागरमोथा का चूर्ण शहद में मिलाकर सेवन करना चाहिए। पित्तातिसार में अतिविष इंद्रयव तथा कटुकी की छाल का चूर्ण चावल के धोवन में शहद मिलाकर सेवन से लाभ होता है।
सांस रोग तथा खांसी में अतिविषा का तीन से चार माशा लेकर इसे शहद में मिलाकर रात्रि को तीन से चार बार चाटने से श्वास रोग एवं खाँसी ठीक हो जाते हैं। संग्रहणी, सभी प्रकार के बुखारों, अरुचि तथा अग्निमांद्यता में अतिविषा, नागरमोथा, लोध्र, पहाड़ी मूल, वाला (खस) के सेवन से ऊपर दर्शाये गये सभी रोग सही होकर धातु में बढ़ोत्तरी होती है। तृषा में अतिविषा एवं बच का क्वाथ पिलाना चाहिए। बालकों के आमातिसार में अतिविष, शुण्ठी तथा नागरमोथा का क्वाथ पिलाना चाहिए। बालकों के सभी तरह के पेट रोग में अतिविषा के चूर्ण को शहद या गुड़ में मिलाकर सेवन कराना चाहिए। संग्रहणी में अतिविषा, शुण्ठी एवं गिलोय का क्वाथ बनाकर पिलाने से फायदा होता है। कृमिरोग में अतिविषा तथा विडंग का क्वाथ बनाकर सेवन करने से सभी कृमियां बाहर निकल जाती हैं
मात्रा- चूर्ण आधा से दो माशा (अतिसार में)। चूर्ण दो से चार रत्ती (बल्य तथा पौष्टिक) ।
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