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अनन्त मूल (Indian Sarsaprila) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण

अनन्त मूल (Indian Sarsaprila) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
अनन्त मूल (Indian Sarsaprila) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण

अनन्त मूल (Indian Sarsaprila)

प्रचलित नाम- अनन्त मूल, कपूरी, सारिवा।

उपयोग अंग- मूल ।

परिचय- चिरस्थायी आरोहणशील फैलने वाली एक पतली लता, पर्व फूली हुई। पत्र भिन्न वर्णी अभिमुखी लेकिन दूर-दूर, जो ऊपर से चिकने गहरे हरे रंग के, लेकिन नीचे की सतह हल्के रंग की, नोकदार रहते हैं। पुष्प छोटे, बाहर से हरित वर्णी, जबकि अन्दर बैंगनी रंग, जो पत्र के कोण में गुच्छों में आते हैं।

स्वाद- तीखा ।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण

कीटाणुनाशक, फफूंदीनाशक, विषाणुघ्न, बल्य, मूत्रल, रक्तशोधन शोथहर।

अस्थिभग्न, कैंसर, बुखार, चर्मरोग, रक्त शोधन, कुष्ठरोग, जीर्ण, आमवात, प्रदर, अतिसार, प्रमेह, श्वासरोग, तथा कास में लाभकारी। ताजे मूल का क्वाथ उत्तम रक्त शोधक होता है। नेत्राभिष्यंद में इसका दुग्ध नेत्रों में डालते हैं। इसके मूल को पीसकर व्रण पर इसका लेप करने से फायदा होता है।

बालकों की दुर्बलता एवं पाण्डुरोग में इसके मूल तथा वायविडंग को पीसकर चूर्ण बना लेते हैं, इसका सेवन अल्पमात्रा में करने से फायदा होता है।  अर्श में एक मृत्पात्र सारिवा मूल के चूर्ण के साथ दूध से दही जमाकर, उसका खट्टा अथवा अम्ल बना खिलाने से अर्श का नाश हो जाता है। व्रण शोधन के लिये इसके पत्रों का क्वाथ पीने से फायदा होता है।

श्वासरोग (दमा) में- अनन्त के क्वाथ से सिद्ध घी के सेवन करने से फायदा होता है।

आंखों के रोग में, अनन्त के क्वाथ से नेत्र से सेचन करना चाहिए, इससे नेत्र फलीक्षत नाश हो जाती है।

वात रोगों में – अनन्त और अडूसा पत्र का दूध के साथ रोजाना सेवन करने से सभी वातजन्य रोगों में फायदा होता है। पीपल की छाल, कंट विहीन कल्हार और सारिवा मूल, इन तीनों का चाय की तरह फांट बनाकर सेवन करने से पामा, कण्डु, फोड़े-फुन्सी, तथा उष्ठता के विकारों में फायदा होता है। अश्मरी में अनन्त का चूर्ण गाय के दूध के साथ सेवन करने से फायदा होता है। अनन्त केले के पत्र में रखकर, सेंककर, उसके साथ जीरा, मिश्री, घी मिलाकर गर्भाशय तथा मूत्राशय के रोगों में सेवन से फायदा होता है।

कमजोरी, संधिवात, फिरंग, त्वचा दोष में इसके मूल अत्यन्त उपयोगी साबित हुए हैं। अनन्त वनौषधि एवं संग्राही तथा रक्तपित्त प्रशामक है, रक्तदोष की वजह से कुपचन, अजीर्णता, संग्रहणी तथा पाण्डुरोग जैसे रोग होने पर इस वनौषधि के मूल का सेवन बहुत लाभकारी, अनन्त के सेवन से पाचन क्रिया बढ़ती है।

 जठराग्नि प्रदीप्त होती है, रक्तदोष तथा पित्तदोष का नाश हो जाता है। इन रोगों में अनन्त का चूर्ण सुबह एवं शाम 1/4-1/4 तोला दूध के साथ नियमित सेवन करना चाहिए। इसके अलावा इसके प्रयोग से प्रवाहिका का भी नाश होता है।

अनन्त स्तन्य शोधक होने की वजह से दुग्ध को बढ़ाकर शुद्ध करता है। इसलिए जिन स्त्रियों के बच्चे कमजोर तथा बीमार रहते हों, उन महिलाओं को अनन्त का चूर्ण सुबह एवं शाम 1/4-1/4 तोला सेवन कराना चाहिए।

मात्रा- चूर्ण-तीन से छः ग्राम। फांट-5-10 तोला ।

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