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अमरबेल (Cuseutriflexa) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण

अमरबेल (Cuseutriflexa) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
अमरबेल (Cuseutriflexa) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण

अमरबेल (Cuseutriflexa)

प्रचलित नाम- अमरबल्लारी, आकाश बेल, स्वर्ण लता।

उपलब्ध स्थान- अमरबेल एक तरह की लता है, जो बबूल, कीकर तथा बेर पर एक पीले जाल के रूप में लिपटी होती है। इसको आकाशबेल, अमरबेल, अमरबल्लरी भी कहते हैं। अकसर यह खेतों में भी मिलती है।

परिचय- यह पौधा एकशाकीय परजीवी होता है, जिसमें पत्तियों और पणहरित का पूरी तरह अभाव होता है। इसलिए इसका रंग पीतमिश्रित सुनहरा अथवा हल्का लाल होता है। इसका तना अमरबेल व उसके फूल लंबा, पतला, शाखायुक्त और चिकना होता है। तने से अनेक मजबूत पतली-पतली और मांसल शाखाएँ निकलती हैं, जो आश्रयी पौधे (होस्ट) को अपने बोझ से झुका देती हैं।

इसके पुष्प छोटे, सफेद या गुलाबी, घंटाकार, अवृत्त या संवृत्त और हल्की सुगंध से युक्त होते हैं।

यह काफी विनाशकारी लता है, जो अपने पोषक पौधे को धीरे-धीरे समाप्त कर देती है। इसमें पुष्पागमन वसंत में और फलागमन गर्मी के मौसम में होता है। इसकी लता और बीजं का उपयोग औषधि के रूप में होता है। इसके रस में कस्कुटीन (Cuscutien) नामक ऐल्केलायड, अमरबेलीन तथा पीताभ हरे. रंग का तेल पाया जाता है।

इसका स्वाद तिक्त तथा कषाय होता है। इसका रस रक्तशोधक, कटु, पौष्टिक तथा पित्त कफ को समाप्त करने वाला होता है। फोड़े-फुंसियों और खुजली पर भी इसका प्रयोग किया जा सकता है।

पंजाब में दाइयाँ अकसर इसका क्वाथ गर्भपात कराने के लिए देती हैं। आश्रयी पेड़ के अनुसार इसके गुणों में भी परिवर्तन आ जाता है।

रंग – अमरबेल का रंग पीला रहता है।

स्वाद – इसका स्वाद चरपरा तथा कषैला होता है। अमरबेल (आकाश बेल) डोरे की तरह पेड़ों पर फैलती है। इनमें जड़ नहीं होती तथा रंग पीला तथा पुष्प सफेद होते हैं।

स्वभाव – अमरबेल गर्म तथा रूखी प्रकृति की है। इस लता के सभी भागों का उपयोग औषधि के रूप में किया जा सकता है।

मात्रा (खुराक) – अमरबेल को लगभग 20 ग्राम की मात्रा में उपयोग कर सकते हैं।

गुण- आकाश बेल ग्राही, कड़वी, नेत्रों के रोगों का नाश करने वाली, आंखों की जलन को दूर करने वाली तथा पित्त, कफ और आमवात को समाप्त करने वाली होती है। यह वीर्य को बढ़ाने वाली रसायन और शक्तिकारक है।

वानस्पतिक नाम व गुण – अमरबेल का वानस्पतिक नाम कस्कूटा रिफ्लेक्सा है। पूरे पौधे का काढ़ा जख्म धोने के लिए बेहतर है और यह टिंक्चर की तरह कार्य करता है। इसे इसके बीजों और पूरे पौधे को कुचलकर आर्थराइटिस के रोगी के दर्द वाले हिस्सों पर पट्टी लगाकर बाँध दिया जाए तो काफी लाभ होता है।

गंजेपन को दूर करने के लिए अगर आम के पेड़ पर लगी अमरबेल को पानी में उबाल लिया जाए और उस जल से स्नान किया जाए तो बाल पुनः उगने लगते हैं। डाँग के आदिवासी अमरबेल को कूटकर उसे तिल के तेल में 20 मिनट तक उबालते हैं और इस तेल को कम केश या गंजे सर पर लगाने की सलाह देते हैं।

अमरबेल को कुचलकर इसमें शहद और घी मिलाकर पुराने घावों पर लगाया जाए तो जख्म जल्दी भरने लगता है। आधुनिक अध्ययनों से मालूम होता है कि इस पौधे का अर्क पेट के कैंसर से लड़ने में सहायता कर सकता है।

आमवात की दवा- आमवात से शरीर में तकलीफ हो तो इसको कुचलकर बफारा देने से पसीना आकर लाभ पहुंचता है।

अमरबेल पर पत्ते – काफी बारीक तथा नहीं के बराबर होते हैं। इस पर सर्दी में कर्णफूल की तरह गुच्छों में सफेद फूल लगते हैं। बीज राई के समान हल्के पीले रंग के होते हैं। अमरबेल बसन्त ऋतु (जनवरी-फरवरी) और गर्मी (मई-जून) में बहुत बढ़ती हैं और ठण्ड में सूख जाती है। जिस पेड़ का यह सहारा लेती है, उसे सुखाने में कोई कसर शेष नहीं रखती है।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण

अमरबेल में कई ऐसे दिव्य गुण देखे जाते हैं जिनसे रोगों का सरलता से घरेलू उपचार किया जा सकता है। ग्रामीण अंचलों में आसानी से पाए जाने वाले इस पौधे की कई विशेषताएं होती हैं, साथ ही कई रोगों के उपचार में भी इसका उपयोग किया जाता है।

किस प्रकार पहचानें? अमरबेल बिना जड़ का पीले रंग का परजीवी पौधा होता है। यह पेड़ों के ऊपर अपने आप उग आता है। बिना जड़ का यह पौधा, परजीवी पर ऊपर की तरफ चढ़ता है। इसमें गुच्छों में सफेद फूल लगे होते हैं।

  1. किसी भी तरह की खुजली हो, अमरबेल पीसकर उस पर लेप करने से खुजली समाप्त हो जाती है।
  2. पेट फूलने तथा अफारा होने पर इसके बीज जल में उबालकर पीस लें। इसका गाढ़ा लेप पेट पर लगाने से अफारा तथा उदर की पीड़ा खत्म होती है।
  3. रक्त की खराबी होने पर कोमल ताजी फलियों के साथ तुलसी की चार-पांच पत्तियां चबा-चबाकर चूसने से फायदा होता है।
  4. इसके पत्तों का रस पीने से मूत्र संबंधी सभी विकार दूर होते हैं।
  5. अमरबेल के पुष्पों का गुलकंद बनाकर खाने से याददाश्त में वृद्धि होती है।
  6. अमरबेल को जल में उबालकर उससे सूजन वाली जगह की सिकाई करें; कुछ दिनों तक इसका इस्तेमाल करने पर सूजन कम हो जाती है।
  7. इसके पत्तों के रस में सादा नमक मिलाकर दांतों पर मलने से दांत चमकीले हो जाते हैं।
  8. अमरबेल की टहनी का दूध चेहरे पर लगाने से आश्चर्यजनक निखार आता है।
  9. इसके उपयोग से माहवारी नियमित होती है।
  10. अमरबेल के चूर्ण को सोंठ तथा घी में मिलाकर लेप करने से पुराना जख्म भरता है। इसके बीजों को पीसकर पुराने जख्म पर लेप करें, इससे घाव ठीक हो जाता है।

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