अरण्ड ककड़ी (Garica Papaya)
प्रचलित नाम- अरंड खरबूजा, पपैया, अरंड ककड़ी, पपीता।
उपलब्ध स्थान- यह भारतवर्ष में चारों ओर पाया जाता है। यह एक जाना-पहचाना पौधा है।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
आयुर्वेद – इसका पका हुआ फ सुस्वादु, मीठा, कफकारी, हृदय के लिए लाभदायक, उन्माद को हरने वाला, कामोद्दीपक, अंतड़ियों को संकोचन करने वाला, स्निग्ध तथा पित्तनाशक है।
यूनानी- इसका पका हुआ फल अग्निदीपक, भूख बढ़ाने वाला, पाचक, पेट के अफारे को दूर करने वाला तथा मूत्रनिस्सारक है। यह पेट की जलन तथा तिल्ली को दूर करता है।
अरण्ड ककड़ी की बेल व ककड़ी चमत्कारिक जी मूत्राशय की बीमारियों को मिटा देता है। खासकर पथरी रोग में काफी लाभ पहुंचाता है। शरीर के मोटापे को मिटाता है। कफ के साथ खून जाने की बीमारी को भी दूर करता है।
खूनी बवासीर में तथा पेशाब की नलियों के जख्मों को दूर करने में यह लाभदायक है।
दाद इत्यादि चर्मरोगों में यह काफी लाभ पहुंचाता है। इसके कच्चे फल का दूध कृमिरोग को समाप्त करने वाला माना जाता है। इसके बीज भी कृमिनाशक होते हैं और इनका उपयोग ऋतुस्राव को नियमित करने के लिये भी होता है। ऐसा माना जाता है कि इन बीजों में गर्भपात करने की शक्ति भी होती है। इसलिये गर्भवती औरतों को औषधि-रूप में इन्हें नहीं पिलाना चाहिए।
1. इसके कच्चे फल का दूध 3 माशे, शक्कर 3 माशे, दोनों को मिलाकर उसके तीन भाग कर लें, ये खुराक सवेरे, दोपहर तथा शाम के समय देने से कुछ दिनों में बढ़ी हुई तिल्ली में आराम मिलता है। इसी तरह इसके सूखे फल को चूर्ण में नमक मिलाकर देने से भी काफी लाभ होता है।
2. पेट के कीड़े मारने के लिये इसका फल सवा माशे से पौने चार माशे तक दूध के साथ ग्रहण करना चाहिए। इसका प्रभाव आंतों के लम्बे-गोल व चपटे कीड़ों पर ज्यादा होता है।
3. इसके कच्चे फल की फंकी लेने से प्राचीन अतिसार मिठता है।
4. इसके दूध का लेप करने से गांठ भी ठीक हो जाती है।
5. इसका दूध लगाने से उपदंश के जख्म, सफेद चट्टे तथा चमड़ी के दूसरे रोग मिट जाते हैं।
6. इसके कच्चे फल का शाक खिलाने से स्तनों के भीतर दूध की वृद्धि होती है।
7. अजवायन 15 तोला, सांभर नमक 1-1 तोला, इन सब औषधियों को खट्टे नींबू तथा अदरख के रस में एक महीने तक पड़ा रहने देना चाहिए। उसके पश्चात् इस औषधि की तीन माशे मात्रा में एक रत्ती अरण्ड ककड़ी का सत अथवा पेपीन डालकर खिलाने से गम्भीर मन्दाग्नि भी दूर होती है।
अरण्ड ककड़ी चर्मरोगों पर कारगर औषधि होती है। चर्मरोगों पर इसका दूध ज्यादा गुणकारी है। दाद, खाज, खुजली या दूसरे प्रकार के चर्मरोगों में इसका दूध दूषित अंग पर लगाने से कुछ दिनों में रोग जाता रहता है।
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