अरण्य तम्बाकू (Verbascum Thapsus)
प्रचलित नाम- अरण्य तम्बाकू, वन तम्बाकू
उपलब्ध स्थान- यह भारतवर्ष में चारों तरफ पाये जाते हैं।
परिचय- इसका पौधा तम्बाकू के पौधे की तरह होता है। यह भूरे और पीले रंग के कोमल रुएं से आच्छादित रहता है। इसके पुष्प पीले रंग के और पत्ते बर्धी के आकार के होते हैं। औषधि प्रयोग के लिए इसके पुष्पदल ही इकट्ठे किये जाते हैं। इसके पत्ते पांच खंड युक्त रहते हैं। इसके ऊपर का भाग चिकना और नीचे रुएंदार होता है। इसका स्वाद लुआबी तथा कुछ-कुछ कड़वा होता है। इसके फूल के भीतर पुष्करमूल के समान गंध आती है। इसकी फलियां कुछ लम्बी तथा गोल होती हैं। इसके बीज छोटे और अत्यन्त कठोर होते हैं।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
आयुर्वेद- यह औषधि गर्म तथा रुक्ष है। इसके पत्ते वेदना को करने वाले, आक्षेप को मिटाने वाले, पेशाब लाने वाले, स्निग्धता उत्पन्न करने वाले, लुआबदार और नींद लाने वाले होते हैं। छाती के दर्द, आमवात, संधिवात, आमातिसार तथा कफ के रोगों में यह औषधि उपयोगी समझी जाती है।
1. इसके ताजा पत्तों को शराब के साथ मिलाकर एक तरह का टिंचर तैयार किया जाता है, जो मस्तक के दर्द में उपयोगी होता है। इसका तेल जीवाणुनाशक और कान के दर्द में फायदा पहुंचाने वाला है। कान के अंदर की जलन और कान की सूजन के प्राचीन रोगों को मिटाने के लिये इसका उपयोग किया जाता है।
2. वैधक में इसकी जड़ का काढ़ा आक्षेप, सिरदर्द तथा मस्तक के दर्द को दूर करने के प्रयोग में लाया जाता है। इसके सूखे पत्ते यदि चिलम और हुक्के में पिये जायें तो वे खांसी, सांस और क्षय रोग में लाभ पहुंचाते हैं।
3. यह यक्ष्मा के रोग की उत्तम औषधि है। यह खांसी को कम करने वाली, आंतों की शक्ति को बढ़ाने वाली और रात्रिस्वेद को रोकने वाली होती है। इसके ढाई तोले पत्तों को ढाई पाव दूध में उबालकर दिन में दो बार देने से श्वास रुकने की पीड़ा दूर होती है। श्वास रोगी की श्वास क्रिया उचित रूप से कार्य करने लगती है। श्वास की तकलीफ से मुक्ति दिलाने वाली यह अत्यंत गुणकारी औषधि है। व्याकुलता से करवट बदलने वाला आराम की नींद सो जाता है।
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