अरीठा (Spindus Trikoliatus)
प्रचलित नाम- अरीठा, रीठा।
उपलब्ध स्थान- यह भारतवर्ष में चारों तरफ प्राप्त होता है।
परिचय- इसके पत्ते गूलर के पत्तों से बड़े होते हैं। इसकी छाल भूरी होती है। इसके फल गुच्छों के रूप में आते हैं। इसके बीजों की गिरी पहले कुछ मीठी तथा पीछे कड़वी लगती है।
यह वस्त्र धोने, सिर धोने तथा साबुन के स्थान पर काम में लाया जाता है। इसकी दूसरी जंगली जाति के बीजों से तेल निकलता है, वह औषधि के काम में लाया जाता है। इसकी झाड़ में गोंद भी लगता है।
अरीठा केशों को बढ़ाने वाली उत्तम औषधि के रूप में महिलाओं द्वारा आजमाई जाती है। अरीठा, आंवला, शिकाकाई मिलकर त्रिफला कहलाते हैं। इन्हें समान मात्रा में कूटकर केशों में लगाकर केश धोते हैं।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
1. अरीठे के फल की गिरी को जल में घिसकर उसकी दो-चार बूंदें नाक में टपकाने से और सलाई के द्वारा थोड़ा-सा नेत्र में आंजने से मिर्गी, हिस्टीरिया तथा किसी भी तरह से पैदा हुई बेहोशी तुरन्त दूर हो जाती है। नेत्र में आंजने से यदि जलन हो तो गाय का घी या मक्खन आंजने से शान्ति मिल जाती है।
2. अरीठे के फल को एक-दो काली मिर्च के साथ जल में घिसकर नाक में टपकाने से आधाशीशी का रोग फौरन दूर होता है।
3. प्रसव के बाद वायु का कोप होने से स्त्रियों का दिमाग शून्य हो जाता है, नेत्रों के आगे अन्धकार छा जाता है, दांतों की बत्तीसी भिड़ जाती है और वायु की तरंगें आने लगती हैं। ऐसे मुश्किल समय में अरीठे का जल घिसकर फेन पैदा कर नेत्र में आंजने से तत्काल वायु का कोप दूर होकर जादू के समान प्रभाव दिखलाई देता है।
4. अरीठे का मगज, नकछिकनी, कायफल, नौसादर, श्वेत मिर्च, अपामार्ग के बीज और बायविडंग–ये समान मात्रा में लेकर कूट-पीस, छानकर चूर्ण करके रख लेना चाहिए, जब आवश्यकता पड़े, तब उसमें से थोड़ा-सा लेकर उसमें सीप का चूना, अच्छी प्रकार से मिलाकर सुंघाने से सर्दी, आधा शीशी, हिस्टीरिया तथा मस्तक में खून का चढ़ जाना आदि रोग दूर होते हैं।
5. सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, सर्प की कांचली की राख, हींगलू, साबुन, हींग, मैन्सिल, रायन के बीज और नीलाथोथा, ये सब बराबर भाग में लेकर इनको लहसुन के रस खरल करके फिर तुलसी के रस में खरल करना चाहिए। उसके पश्चात् गोलियां बनाकर रख लेनी चाहिए। इस गोली को अरीठे के फेन में घिसकर आंख में लगाने से (भूत, प्रेत, डायन आदि के दोष), हिस्टीरिया, मूर्छा, अनन्तवायु इत्यादि रोग फौरन दूर होते हैं।
6. अरीठे के मगज, अंकोल के जड़ की छाल, समुद्रफल के बीज, विष्णुकांता के बीज तथा कड़वी तोरई के बीज, ये सब समान मात्रा लेकर तुलसी के रस में खरल कर दो-दो रत्ती की गोलियां बना लेनी चाहिए। रोगी की शक्ति का विचार करके एक से चार गोलियां तक गर्म जल के साथ देने से उल्टी और मल होकर महाभयंकर सन्निपात दूर हो जाता है। इसके अलावा इसी औषधि से सर्पदंश, पागल कुत्ते का विष, सखिया, अफीम, बच्छनाग आदि विषों का विकार भी वमन होकर नष्ट हो जाते हैं।
7. अरीठे के एक फल की गिरी लेकर उसको बारीक पीसकर तीन भाग करके गुड़ में मिलाकर उसकी तीन गोलियां बना लेनी चाहिए। पांच-पांच मिनट में एक-एक गोली ठंडे जल के साथ देने से तथा इसी के फल को घिसकर नेत्र में आंजने से, डंक पर लगाने से जहर उतरता है। इसी प्रकार यदि इसके फल के चूर्ण को तम्बाकू की भांति पिया जाये तो भी विष समाप्त होता है।
8. अरीठे के फल में से बीज निकालकर बाकी भाग को लोहे की कढ़ाही में डालकर आग पर पकाने से जब वह जलकर कोयला हो जाये, तब उसे उतार कर उतना ही पपड़िया कत्था मिलाकर, अच्छी प्रकार से पीसकर कपड़छन कर लेना चाहिए। इस औषधि में से एक रत्ती औषधि लेकर मक्खन अथवा मलाई के साथ रोजाना सवेरे-शाम लेना चाहिए। इस तरह सात दिन तक करना जरूरी है। जब तक औषधि चले, तब तक नमक और खटाई नहीं खानी चाहिए। इसके सेवन से कब्जियत, बवासीर की खुजली, बवासीर में रक्त का बहना वगैरह तुरन्त आराम होता है। जंगली जड़ी-बूटी रूप में बोला जाता है कि इसका असर महात्मा की ओर से प्रसादरूप में मिला हुआ है और इसमें सौ में से नब्बे बीमारों को लाभ होता है; किन्तु छः महीने के पश्चात् फिर रोग शुरू होने का भय रहता है; इसलिये यदि हर छठे माह यह प्रयोग कर लिया जाये तो हमेशा के लिये आराम हो जाता है
9. अरीठे के फलों के मगज को पीसकर उनकी बत्ती बनाकर औरतों की जननेन्द्रिय में रखने से मासिक धर्म की रुकावट खत्म हो जाती है। प्रसव के समय भी यह बत्ती रखने से बिना किसी देरी के प्रसव होता है।
इसे भी पढ़ें…
- अकरकरा (Pellitory Root) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
- अतिबला (Horndeameaved Sida) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
- चिरचिरा (Roughchafftree) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
- अमरूद (Guava) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
- अफीम (Opium) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
- अनन्नास (Pineapple) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
- अनन्त मूल (Indian Sarsaprila) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
- आर्द्रक शुण्ठी (Ginger Root) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
- अतिविषा (Indian Attes ) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
- अडूसा (Atotonda Vasica) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
- अर्जुन (Terminelia Arjun) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
- अपराजिता (Megrin) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
- अजमोदिका (Bishops Weed Seed) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
- अकलबेर (Indian Shot) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
- अरंडी (caster oil) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
- अखरोट (Walnut) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
- आलू (Potato) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
- आलूबुखारा (Bokhara) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
- अम्लवेत (Common Soral) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
- अरहर (Pigeonpea) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
- अरबी (Greatleaved Caldeium) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
- अलसी (Linseed) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
- आस (Myrtus Commnuis) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
- ओखराढ्य (Molluga Hirta) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
- अमरबेल (Cuseutriflexa) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
- अनार (Pomegranate) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण