अर्जुन (Terminelia Arjun)
प्रचलित नाम- अर्जुन (कहु), ककुंभ ।
उपयोगी अंग- छाल, पत्र तथा फल।
परिचय- एक वृहद् पेड़ जिसकी छाल श्वेतवर्णी, इसके पत्ते सरल अभिमुखी या एकांतर तथा अल्प खुरदरे होते हैं। फूल मंजरियों में जो पत्र कोण में होते हैं, फल सपक्ष होते हैं 1
स्वाद – कषाय ।
मूत्रल, ग्राही, शीतल, हृदयबल्य, उद्वेष्टक, व्रणरोपण।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
हृदय और यकृत रोगों में, हृदय रुधिर वाहिका तंत्र में विशेषतः प्रभावी, रक्त स्तंभन, यक्ष्मा, कास, रक्तदोष, प्रमेह, ज्वर तथा व्रण में लाभदायक। व्रण, अस्थिभग्न शोथ में इसकी छाल के बाहरी एवं अभ्यंतर प्रयोग से फायदा होता है। हृदय रोगों पर-इसके कांड की छाल को दूध में क्षीर पाक विधि के द्वारा पकाकर सेवन से लाभ होता है।
रक्तपित्त में- इसकी छाल के सेवन से रक्त वाहिनियों का संकोचन होता है तथा इसके चूसने की वजह से रक्त जम जाता है। अर्जुन हृदय रोग के लिये एक उत्कृष्ट औषधि है। यह हृद्य, हृदयबल्य तथा हृदयोत्तेजक है। इसके अलावा यह हृदय की तेज गति की धड़कन को शान्त करती है। हृदय को आराम प्रदान करती है। रक्त यदि कम हो गया हो, तो उसको नियंत्रित करता है। हृदय रोग के मुताबिक इसका सेवन सदैव किया जा सकता है, क्योंकि यह एक निर्दोष औषधि है।
अर्जुन का क्वाथ, अर्जुन की छाल का आधा पीसा हुआ 20 ग्राम चूर्ण, दो ग्लास जल (500 मि.ली.) धीमी अग्नि पर खुला रखकर उबाल लें ( 150 मि.ली. शेष रहे, तब तक), इसे छानने के बाद इसमें मधु मिलाकर सेवन किया जाता है। इस बचे हुए भाग को फिर इतना ही पानी मिलाकर उपर्युक्त विधि के अनुसार तैयार कर सेवन करें।
अर्जुन छाल का चूर्ण- एक चम्मच चूर्ण , दूध, गुड़ अथवा जल के साथ सुबह-शाम सेवन से रोग में फायदा होता है।
व्रण में इसकी छाल का काढ़ा बनाकर व्रण को धोने से या चूर्ण को कटे हुए हिस्से में भरकर पट्टी बाँधने से जख्म ठीक हो जाता है।
रक्तदोष व कुष्ठरोग- चर्मरोग में इसकी छाल का चूर्ण सवेरे एवं रात के समय एक चम्मच जल के साथ सेवन से, इसकी छाल को पानी में घिसकर इसका लेप करने से, इसकी छाल को जल में उबाल कर इसे पानी से धोने से फायदा होता है।
चर्म कील में- इसकी छाल को में घिसकर कील पर लेप करने से फायदा होता है। रक्तार्श में इसकी छाल के क्वाथ का सेवन फायदेमन्द है।
नेत्रशोथ- आंख में सूजन आने पर इसकी छाल को जल या दूध में पीसकर लेप करने से फायदा होता है। कम रक्तचाप वाले रोगियों के लिए यह औषधि ज्यादा लाभकारी है। इसलिए जिन रोगियों का रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) तीव्र रहता है, उनको इस औषधि का उपयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि इन औषधि के सेवन से रक्तचाप में वृद्धि होती है। बारीक रक्त वाहिनियों में संकोचन की वजह से रक्ताभिसरण का दवाव पड़ता है। यह हृदय पोषक अवश्य है तथा हृदय का आराम, सही कॉल, सही प्रकार से नियंत्रित रखती है। यदि धड़कन गति ज्यादा है, तो इसके सेवन से कम हो जाती है। रक्तानिसरण में जितना महत्त्व दिल का है, उतना ही छोटी-छोटी सूक्ष्म रक्तवाहिनियों का भी है। अगर रक्तवाहिनियों का संकोचन सही नहीं होता या इनमें शिथिलता आ गई हो तो दिल भी अपना काम ठीक नहीं कर सकता। अर्जुन के छाल का प्रभाव में ज्यादा होता है, इसलिए रक्तपित्त तथा जीर्ण ज्वर में रक्त दूषित होता है, तब इसका उपयोग अधिक लाभदायी है।
अर्जुन की छाल में 43 प्रतिशत चूना (कैल्शियम) का हिस्सा है एवं 16 प्रतिशत टैनिन रहता है। चूने की उपस्थिति की वजह से रक्तस्राव तुरंत बंद करता है। इसी प्रकार अस्थिभंग में हड्डी तुरंत ही जुड़ जाती है, इसलिए अर्जुन की छाल का क्वाथ रोजाना पिलाना चाहिए।
जिन लोगों के मूत्र में रक्त या वीर्य निकलता हो, उनको अर्जुन की छाल का सेवन अवश्य करना चाहिए। यह औषधि वीर्यवर्धक टॉनिक है। दीर्घायु की कामना रखने वाले सभी लोगों के लिए तथा जिसको भी हृदय कमजोर होने का डर हो, उनको अर्जुन चूर्ण घी के साथ अथवा दूध के साथ या गुड़ के साथ सेवन करना चाहिए। आज के इस युग में हृदय रोग की सबसे श्रेष्ठ औषधि ‘डीजीटेलिस’ मानी जाती है, किन्तु अर्जुन क्वाथ डीजीटेलिस से भी अधिक लाभकारी है। जबकि डीजीटेलिस का शरीर पर विपरीत असर पड़ सकता है; किन्तु अर्जुन के सेवन से ऐसा कुछ नहीं होता। युवाओं के वीर्यवृद्धि में यह उत्तम औषधि है।
मात्रा- छाल का चूर्ण 1-3 माशा ।
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