अलसी (Linseed)
प्रचलित नाम- अलसी, तीसी, अलसी ।
उपयोगी अंग- तिल
परिचय- अलसी के पौधे बागों तथा खेतों में खरपतवार के रूप में भी बोये जाते हैं तथा इसकी खेती भी की जाती है। इसका पौधा दो से चार फुट तक ऊंचा, जड़ चार से आठ इंच तक लम्बी, पत्ते एक से तीन इंच लम्बे, फूल नीले वर्ण के गोल, आधा से एक इंच व्यास के होते हैं। इसके बीज तथा बीजों का तेल औषधि के रूप में प्रयोग किए जाते हैं।
स्वाद- अलसी रस में मधुर, पाक में कटु (चरपरी), पित्तनाशक, वीर्यनाशक, वात तथा कफ वर्धक व खांसी नष्ट करने वाली है। इसके बीज चिकनाई व मृदुता उत्पादक, बलवर्धक, शूल शामक और मूत्रल इसका तेल विरेचक (दस्तावर) तथा व्रण पूरक होता है।
ताबा-पीतल के मेल से बनी फूल की थाली में अलसी तथा अरंडी के बीज को घिसकर पपोटों पर लगाने से नींद जल्दी आती है।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
अलसी की पुल्टिस का उपयोग गले एवं छाती के दर्द, सूजन तथा निमोनिया और पसलियों के दर्द में होता है। इसके साथ यह चोट, मोच, जोड़ों की सूजन, शरीर में कहीं गांठ अथवा फोड़ा उठने पर लगाने से जल्दी लाभ पहुंचाती है। एंटी फ्लोजेस्टिन नामक इसका प्लास्टर डॉक्टर भी प्रयोग में लेते हैं। चरक संहिता में इसे जीवाणु नाशक बताया गया है। यह श्वास नलियों और फेफड़ों में जमे कफ को निकालकर दमा तथा खांसी में आराम देती है।
इसकी बड़ी मात्रा विरेचक और छोटी मात्रा गुर्दों को उत्तेजना प्रदान कर मूत्र निष्कासक है। यह पथरी, मूत्र शर्करा और पीड़ा से मूत्र आने पर गुणकारी है। से अलसी के तेल का धुआं सूंघने से नाक में एकत्रित कफ निकल आता है और पुराने जुकाम में फायदा होता है। यह धुआं हिस्टीरिया रोग में भी गुण दर्शाता है। अलसी के काढ़े से एनिमा देकर मलाशय की शुद्धि भी की जाती है। उदर रोगों में इसका तेल पिलाया जाता है।
भुनी अलसी पोदीने के साथ शहद में मिलाकर चटाने से कफयुक्त खासी समाप्त होती है।
1. अलसी के तेल और चूने के जल का इमल्सन, आग से जलने के घाव पर लगाने से, जख्म बिगड़ता नहीं और जल्दी भरता है।
2. पथरी, सुजाक एवं पेशाब की जलन में अलसी पीसकर पीने से रोग में फायदा होता है।
3. अलसी के कोल्हू से दबाकर निकाले गए (कोल्ड प्रोसेस्ड) तेल को फ्रिज में एयरटाइट बोतल में रखें। स्नायु रोगों, कमर तथा घुटनों के दर्द में यह तेल पंद्रह मि.ली. मात्रा में सुबह-शाम पीने से काफी फायदा मिलेगा ।
4. बवासीर, भगंदर, फिशर आदि रोगों में अलसी का तेल पीने से व्यक्ति का पेट साफ होकर मल चिकना और ढीला निकलता है। इससे इन रोगों की वेदना शांत रहती है।
5. अलसी के बीजों का मिक्सी में बनाया गया दरदरा चूर्ण पंद्रह ग्राम, मुलेठी पांच ग्राम, मिश्री बीस ग्राम, आधे नींबू के रस को उबलते हुए तीन सौ ग्राम जल में डालकर बर्तन को ढक दें। तीन घंटे बाद छानकर पिएं। इससे गले व सांस की नली का कफ पिघल कर बाहर निकल जाएगा। मूत्र भी खुलकर आने लगेगा।
6. इसकी पुल्टिस हल्की गर्म कर फोड़ा, गांठ, गठिया, संधिवात, सूजन आदि में फायदा पहुंचाती है।
7. अलसी हृदय सम्बंधी रोगों के संकट को कम करता है। 8. अलसी उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करता है।
9. अलसी त्वचा को स्वस्थ रखता है तथा सूखापन दूर कर एग्जिमा आदि से बचाता है।
10. अलसी केशों व नाखून की बढ़ोत्तरी कर उन्हें स्वस्थ व चमकदार बनाता है
11. इसका रोजाना सेवन रजोनिवृत्ति सम्बंधी परेशानियों से राहत प्रदान करता है। मासिक धर्म के समय ऐंठन को कम कर गर्भाशय को स्वस्थ रखता है।
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