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असगंध (Rape Seed Plant) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण

असगंध (Rape Seed Plant) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
असगंध (Rape Seed Plant) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण

असगंध (Rape Seed Plant)

प्रचलित नाम- असगंध, अश्वगंधा।

उपयोगी अंग- पंचांग, मूल (विशेष) पत्र, फल तथा बीज ।

परिचय- यह वनौषधि एक छोटा उपगुल्म होता है, जिसकी ऊँचाई लगभग 3-4 फीट होती है। पत्ते सरल, कुंठिताग्र तल भाग की तरफ संकुचित तथा ताराकार रोमों से आच्छादित होते हैं। फूल गुच्छ में, जो पत्ते के कोण में होते हैं। यह पीतवर्णी अथवा हल्के रंग के एक साथ लगभग 6 की तादाद में होते हैं। फल गोल मटर के दाने के समान, जो बाहरी हिस्से में ढंका रहता है।

स्वाद- तीखा ।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण

विपर्याय, वाजीकरण, रसायन, मूत्रल, निद्राजनक, अतिरेचक, बल्य, शोथहर, शूलहर, फंफूदीघ्न, कीटाणुघ्न ।

इसकी जड़ का प्रयोग- ज्वर में, शूलयुक्त सूजन में, व्रण, फोड़े में, नाड़ी तंत्र, आमाशयिक क्रियाओं में, श्वित्ररोग, क्षय और सुखण्डीरोग में लाभदायक है।

इसके मूल का चूर्ण- आधा से एक तोला घी में गर्म कर दूध चीनी मिलाकर सेवन करने से क्षय, बालशोथ, सुखण्डी रोग में लाभदायक है। इसकी मूल उत्तम पौष्टिक एवं बच्चों के सुखण्ड के रोग में अतिलाभदायक है। इसके सेवन से सफेद प्रदर तथा कटिशूल (स्त्रियों के) में फायदा होता है। आमवात में जंगली असगंध के पत्ते ताजे बांधने से लाभ होता है। अशक्ति में इसका चूर्ण दूध के साथ एक-एक चम्मच सुबह-शाम सेवन से लाभ होता है। इसका सेवन एक मास तक किया जाना चाहिए। यक्ष्मा में (क्षय) तीन ग्राम अश्वगंधा का चूर्ण एक ग्राम लींडीपीपर चूर्ण, तथा तीन ग्राम मिश्री का चूर्ण-सबको मिलाकर प्रतिदिन प्रातः सायं या रात के समय शहद के साथ सेवन से लाभ होता है।

नपुंसकता (शुक्रदौर्बल्य) में- अश्वगंधा का चूर्ण एक-एक चम्मच दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है। प्रत्येक शरद ऋतु में लम्बे समय तक इसका सेवन करने से पुरुषत्व तथा वृद्धावस्था तक यौवन बना रहता है। अश्वगंधा का बारीक चूर्ण सेंधा नमक + मक्खन में मिलाकर रोजाना दो बार लिंग पर मालिश करने से फायदा होता है। आमवात संधिशोथ में अश्वगंधा पंचांग को पीसकर इसका रस निकाल कर दो-दो चम्मच सुबह एवं सायं मधु के साथ सेवन से फायदा होता है।

कटिशूल- प्रसूति बाद कमजोरी के कारण, कमर में दर्द होने में अश्वगंधा का चूर्ण घी, मिश्री अथवा सोंठ का काढ़ा बनाकर पीने से फायदा होता है। हृदयशूल में वात के कारण हृदयरोग में गर्म पानी के साथ अश्वगंधा का चूर्ण लेते रहने से फायदा होता है। रक्त प्रदर एवं सफेद प्रदर में अश्वगंधा का चूर्ण इसमें समान मात्रा में मिश्री का चूर्ण मिलाकर प्रातः एवं रात्रि समय एक-एक चम्मच दूध में मिलाकर सेवन से लाभ होता है।

कृमिरोग में- अश्वगंधा चूर्ण समान मात्रा में गिलोय का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ सेवन से लाभ होता है।

दृष्टि दौर्बल्य में- दो ग्राम अश्वगंधा का चूर्ण दो ग्राम आंवला के चूर्ण तथा एक ग्राम मधुयष्टी का चूर्ण मिलाकर सुबह एवं शाम एक-एक चम्मच जल के साथ सेवन करने से लाभ होता है ।

मात्रा- मूल का चूर्ण-3 से 6 ग्राम ।

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