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अस्थिसंहार (Vitis Quadrangularis) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण

अस्थिसंहार (Vitis Quadrangularis) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
अस्थिसंहार (Vitis Quadrangularis) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण

अस्थिसंहार (Vitis Quadrangularis)

प्रचलित नाम- अस्थिसंहार, हाड़जोड़, हरजोरा।

उपलब्ध स्थान- यह सम्पूर्ण भारतवर्ष में पायी जाती है।

विवरण- इसकी बेल थूहर जाति की होती है। इसकी शाखाएं और डालियां चौकोर होती हैं। फूल गुलाबी, प्याजी तथा सफेद होते हैं। इस बेल में चार-छः अंगुल पर गांठें होती हैं। इसमें छोटे मटर के समान लाल रंग के फल लगते हैं। उसमें एक बीज होता है। इसकी डालियां प्राचीन होने पर खट्टी पड़ जाती हैं।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण

आयुर्वेद- यह औषधि वात, कफनाशक, टूटी हुई हड्डी को जोड़ने वाली, गरम, कृमिनाशक, पाचक, अग्निवर्द्धक, पौष्टिक, नेत्र रोग नाशक, स्वादिष्ट, कामोद्दीपक तथा पित्तकारक होती है। यह बवासीर, मिर्गी, अर्बुद, क्षुधा समाप्त होने की बीमारी, तिल्ली, हड्डी का टूटना तथा जलोदर में फायदा पहुंचाती है।

1. अस्थिसंहार की लकड़ी के एक टुकड़े की छाल को छीलकर उसका चूर्ण बना लें और उस चूर्ण में भीगी हुई उड़द की छिलके रहित दाल चूर्ण से आधी मिलाएं, फिर दोनों को सिल पर बारीक पीसकर तिल के तेल में पकौड़ी बना लें। इस पकौड़ी को खाने से वात का नाश हो जाता है।

2. इसके पत्ते और कोयलों के चूर्ण की फंकी देने से अतिसार में फायदा होता है।

3. कर्णपीड़ा में इसकी शाखा का रस कान में डालने से आराम मिलता है।

4. मसूढ़ों की सूजन तथा असमय मासिक धर्म होने के रोग में भी यह वनस्पति काफी लाभदायक होती है। अनियमित मासिक धर्म में एक तोला शक्कर मिलाकर रोगी को चटा देना चाहिए। औरतों की मासिक धर्म की गड़बड़ी में यह अधिक लाभकारी औषधि है।

5. पेट की पीड़ा में इस वनस्पति की शाखा को चूने के जल में उबालकर पिलाने से पेट की पीड़ा मिट जाती है।

6. इसकी फंकी लेने से शक्ति में वृद्धि होती है।

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