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ऊनी तन्तु से धागा निर्माण की प्रक्रिया

ऊनी तन्तु से धागा निर्माण की प्रक्रिया
ऊनी तन्तु से धागा निर्माण की प्रक्रिया

ऊनी तन्तु से धागा निर्माण प्रक्रिया का सविस्तार वर्णन कीजिये।

ऊनी तन्तु से धागा निर्माण की प्रक्रिया

ऊनी तन्तु से धागा निर्माण की प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों से होकर गुजरती है-

(1) भेड़ों पर से ऊन उतारना- ऊन निर्माण में सर्वप्रथम क्रिया भेड़ों से ऊन उतारना है। ऊन उतारने का कार्य विभिन्न देशों में जलवायु के आधार पर भिन्न-भिन्न समय पर किया जाता है। भारत में यह कार्य बसन्त ऋतु में किया जाता है। भेड़ों के शरीर से ऊन काटने के पहले उनको कीटनाशकों के घोल से नहलाया जाता है। आज से कुछ वर्षों पहले ऊन काटने का कार्य हाथों से किया जाता था परन्तु अब यह कार्य मशीनों की सहायता से किया जा रहा है।

(2) क्रम विन्यास में छँटाई- भेड़ों के शरीर से ऊन काटने के बाद उसकी मजबूती, लचीलापन, रंग व लम्बाई के अनुसार अलग-अलग कर लिया जाता है। पाश्चात्य देशों में यह कार्य मशीनों से किया जाता है। एक ही भेड़ के शरीर पर 15-20 प्रकार की ऊन पायी जाती है जिसे मशीनों का कुशल कारीगरों की सहायता से गुणवत्ता के आधार पर अलग-अलग कर लिया जाता है।

( 3 ) धुलाई- ऊन पर से अशुद्धियाँ तथा बाहरी धूल आदि को हटाने के लिए इसको बड़े-बड़े हौजों में धाया जाता है जिसके लिए चार बड़े-बड़े हौजों की व्यवस्था की जाती है। पहले हौज में गरम पानी व साबुन तथा क्षार का घोल रहता है। ऊन को उसमें डालकर धोया जाता है। इतना करने के बाद भी यदि ऊन साफ नहीं होती है तो उसे तीसरे व चौथे हौज में डालकर साफ़ किया जाता है। साफ करने के बाद ऊन के तन्तुओं को गर्म हवा या भाप की सहायता से सुखा लिया जाता है। ऐसा करने से ऊन स्वच्छ, सफेद व नर्म हो जाती है।

(4) विशुद्धीकरण- ऊन की धुलाई करने के पश्चात् भी यदि उसमें कुछ वनस्पति सम्बन्धी गन्दगी रह जाती है तो ऊन को पुनः एलुमीनियम क्लोराइड के लवण या गन्धक के अम्ल अथवा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में डुबोया जाता है उससे ऊन में उपस्थित वनस्पति तत्व पूर्णतः नष्ट हो जाते हैं जब उनकी गन्दगी पूर्ण रूप से दूर हो जाती है तो ऊन हल्की हो जाती है।

(5) धुनना- जब ऊन पूर्ण रूप से स्वच्छ हो जाती है तब उसे धुना जाता है। इस पर भी सूती तन्तुओं की भाँति धुनाई की जाती है। आजकल धुनाई का काम मशीनों के द्वारा किया जाता है। इस मशीन में सहस्त्रों दाँतें लगे रहते हैं रौलों में से ऊन के तन्तुओं को सुलझाया जाता है। इस प्रक्रिया में धूल एवं अन्य अशुद्धियाँ स्वयं ही हट जाती हैं तथा तन्तु समान्तर अवस्था में आ जाते हैं तथा धागा कोमल बन जाता है। धुलाई के द्वारा ऊन को कोमल पट्टी के रूप में बना लिया जाता है उसके पश्चात् सूत को काता जाता है।

( 6 ) खींचना- धुनाई करने के पश्चात् ऊन को खींचा जाता है खींचने के लिए ऊन की पोनियाँ बनाई जाती हैं ऊन के सूत को खींचकर ऐठा जाता है तथा पौनियों धनां बनाया जाता है।

(7) ऐंठन डालना- ऊन की पोनियाँ धागे को ऐंठन के लिए बनायी जाती हैं। प्रारम्भ में धागे को ऐंठने का काम चर्खों से किया जाता था परन्तु आजकल यह काम मशीनों से किया जाता है। ऐंठन देने से पहले तन्तु एक दूसरे से जुड़ जाते हैं।

( 8 ) रंगाई तथा विरंजन- ऊन को साफ तथा सुन्दर बनाने के लिए रंगाई तथा विरंजन किया जाता है। ऊन के ऊपर पक्का रंग चढ़ाने के लिए अम्लीय रंगों का प्रयोग किया जाता है। अम्लीय रंगों का प्रयोग करने से ऊन के रंग में चमक आ जाती है। ऊन को साफ करने के पश्चात् ब्लीच किया जाता है। ऊन को ब्लीच करने से उसका पीलापन तथा अन्य गन्दगियाँ दूर हो जाती हैं।

(9) गिलिंग तथा कंघी करना- ऊन को कंघी करने से उसके तन्तु समान्तर स्थिति में आ जाते हैं। इस प्रक्रिया में 1 से 4 इंच तक तन्तुओं की लम्बाई को हटा दिया जाता है। और लम्बे तन्तुओं को समान्तर स्थिति में ला दिया जाता है। इससे तन्तुओं की शेश अशुद्धियाँ भी हटा दी जाती हैं।

ऊन के लम्बे तन्तु मजबूत होते हैं। तथा स्पर्श करने में मुलायम लगते हैं। ये तन्तु सुन्दर रंगों में उपलब्ध होते हैं। इस प्रकार के तन्तु बस्टेंडे कपड़े, सर्ज तथा गेवर्डीन बनाने के काम में लाये जाते हैं।

( 10 ) कताई तथा बुनाई ऊन के तन्तुओं की पेनियाँ बना कर उनके तन्तुओं को खींचकर ऐंठन दी जाती है। जिन वस्त्रों में हल्की ऐंठन दी जाती है। वे मुलायम वस्त्र बनाने के काम आता है। समान्तर तथा चिकना सूत बस्टेंड के वस्त्र बनाने के काम में लाया जाता है। ऊनी वस्त्र केवल म्यूला कताई मशीन पर ही काते जाते हैं। जबकि बस्टेंड सूत की कताई करने की दो विधियाँ हैं।

( 11 ) परिष्कृति- बस्टेंड वस्त्रों में परिष्कृति की आवश्यकता नहीं पड़ती। बुनने के पश्चात् ये वस्त्र परिष्कृत किये हुए लगते हैं जबकि ऊनी वस्त्रों में सुन्दरता चमक तथा आकर्षणता लाने के लिए परिष्कृत करना परमावश्यक है। ऊनी वस्त्रों को धोने के पश्चात् सुखाते समय उसको खींचकर समान चौड़ाई का कर देना चाहिए। इसके पश्चात् वस्त्र पर ब्रुश किया जाता जिससे वस्त्र की सतह पर रोये उठ जाते हैं इन रोयों को काट कर समान्तर किया जाता है इसके पश्चात् वस्त्र को प्रेस करके बाजारों में बेचा जाता है।

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