ओखराढ्य (Molluga Hirta)
प्रचलित नाम- ओखराढ्य, गन्धिबुद्धि ।
उपयोगी अंग – पंचांग ।
उपलब्ध स्थान – यह औषधि प्रायः सारे भारत, श्रीलंका और संसार के अन्य भागों में पैदा होती है।
विवरण – यह एकवर्षजीवी वनस्पति है।
परिचय- इसका वृक्ष एक से तीन फुट तक ऊंचा होता है। इसके पुष्प हल्के गुलाबी रंग के होते हैं। इसकी फलियां लम्बी और गोलाई लिये होती हैं। इसमें काफी बीज होते हैं। उनका रंग काला होता है।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
“यह औषधि रूप में पेशाब रुकने पर और सुजाक की बीमारी में काफी हितकारी होती है। इसको पीसकर सिर पर लगाने से व्रण, खुजली, दाद और सूजन समाप्त हो जाती है। अतिसार रोग और उदर रोग में विरेचक, लाभदायक औषधि है। यह औषधि फोड़े, जख्म और पित्तजन्य पीड़ाओं तथा खुजली और चर्मरोगों में लगाने के भी काम में ली जाती है।
चर्मरोगों पर ओखराढ्य का प्रयोग यह है कि इसके पत्तों को बारीक पीसकर दाद, खाज, खुजली आदि पर लेप करें।
1. बालकों के कफ रोग में इसकी जड़ की भस्म देने से फायदा होता है।
2. इसके सूखे पत्तों के पंचांग का क्वाथ कर, उस पर थोड़ी राई भुरभुराकर पिलाने से खून साफ होता है।
3. इसके पंचांग की भस्म तथा काली मिर्च को तेल में मिलाकर लगाने से पुराने व्रण अच्छे होते हैं।
4. इसके पंचांग और कालीमिर्च को ठण्डाई की तरह घोट, छानकर पिलाने से पेशाब की रुकावट शीघ्र दूर हो जाती है।
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