कंगुनी (Celastrus Parmicalta)
प्रचलित नाम – मालकांगुनी, कंगुनी ।
उपयोगी अंग – बीज, जड़
उपलब्ध स्थान – यह हिमाचल प्रदेश की पहाड़ियों, महाराष्ट्र की पहाड़ियों, मद्रास, लंका, गुजरात, दक्षिणी क्षेत्र मलाया द्वीप समूह में पायी जाती है।
परिचय – यह एक लता है। इसकी बेल बादामी रंग की होती है। पत्ते 2 से 5 इंच तक लंबे तथा 1 से 3 इंच तक चौड़े होते हैं। ये लम्बे गोलाई लिए कंगूरेदार होते हैं। पुष्प पीलापन लिए हरे रंग के होते हैं। हुए ये पुष्प बैशाख- जेठ में खिलते हैं। आषाढ़ में इसमें गुच्छेदार झब्बों में फल लगते हैं, जो पकने पर पीले हो जाते हैं।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
आयुर्वेद – मालकांगुनी चरपरी, कड़वी, रूखी, वात कफ नाशक, दाहजनक, अग्निदीप तथा मेधा तथा भूख खोलने वाली रहती है। इसके पत्ते ऋतुस्राव में लाभकारी होते हैं। इसके बीज गरम, कटु, चरपरे और शुष्क होते हैं। ये क्षुधावर्धक, विरेचक, वमनकारक, कामोद्दीपक, दिमाग को शक्ति देने वाले तथा वात और कफ को नष्ट करने वाले होते हैं। शरीर में ये कुछ जलन भी उत्पन्न करते हैं। इनका तेल रक्तवर्धक और उदर सम्बन्धी शिकायतों को दूर करने वाला होता है।
यूनानी – इसके बीज कड़वे और तीक्ष्ण स्वाद वाले होते हैं। ये कफ निस्सारक तथा दिमाग और यकृत को पुष्ट करने वाले होते हैं। जोड़ों के दर्द, पक्षाघात और दुर्बलता में भी ये लाभदायक होते हैं। बीजों के अतिरिक्त इसके तेल में भी खास गुण होते हैं। यह तेल पौष्टिक, अग्निवर्धक तथा कफं, श्वांस, कुष्ठ, सिरदर्द और वल रोग में लाभदायक होता है।
इसका तेल आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान में बेरी-बेरी नामक खतरनाक रोग में बड़ा उपयोगी तथा लाभदायक होता है। पिछले कुछ वर्षों में इस तेल ने इस रोग पर काफी सफलता हासिल की है।
1. मालकांगनी की जड़ को रविवार के दिन खोदकर लाना चाहिए। इस जड़ में से 4 अंगुल का एक टुकड़ा लेकर उसको काले वस्त्र में बांधकर जिस नारी को गर्भपात होता हो, उसकी कमर में बांध देने से गर्भपात का होना रुक जाता है।
2. चित्रा सर्प का जहर-सांप की चित्रा नामक एक जाति होती है। जिसको कहीं-कहीं चितावर और चगरोट भी कहा जाता हैं। इस सर्प के दंश करने से शरीर पर जख्म पड़ जाते हैं और दंश की जगह सड़कर. वहां का मांस गिरने लगता है। इस जहर को दूर करने के लिए मालकांगनी की जड़, अत्यम्लपर्णी की जड़ और काले सिरस की छाल समान भाग लेकर जल के साथ घिसकर, काटने के स्थान पर तथा जख्मों पर लेप करने से और एक दो तोला तक पानी में घोलकर पिलाने से आश्चर्यजनक फायदा होता है। पशुओं को दस्त होने की स्थिति में यह औषधि दस से लेकर पन्द्रह तोले तक पिलानी चाहिए। इस औषधि से फायदा पहुंचता है।
3. मालकांगुनी के बीज गठिया, छोटे जोड़ों की सूजन तथा पक्षाघात रोग में बड़ा फायदा पहुंचता है। इनके खाने की तरकीब यह है कि पहले दिन इसका एक बीज, दूसरे रोज दो बीज, इसी तरह प्रतिदिन एक-एक बीज बढ़ाते हुए पन्द्रहवें दिन पन्द्रह बीज खाने चहिए। इसके साथ इसके तेल की रोगग्रस्त अंगों पर मालिश करनी चाहिए।
4. इसके तेल दूध की लस्सी में डालकर पिलाने से मूत्र में वृद्धि होती है।
5. इसके तेल को लगाने से नासूर और लम्बे जख्म मिटते हैं।
6. इसके तेल की बूंदें नागरबेल के पान में लगाकर दिन में दो-तीन बार सेवन से नपुंसकता मिट जाती है। मगर उन दिनों में दूध और घी का अधिक सेवन करना चाहिए।
7. इसके तेल की दस से लेकर पच्चीस बूंद तक देने से पेशाब की बढ़ोत्तरी होकर जलोदर का नाश हो जाता है।
8. बेरी-बेरी रोग में भी इसका तेल दस से लेकर पच्चीस बूंद तक की मात्रा में दिया जा सकता है।
9. दो माशे मालकांगुनी तथा इलायची के दाने को निगलने से कफ युक्त श्वांस में फायदा होता है।
10. इसके बीजों को पीसकर लेप करने से खूनी बवासीर में फायदा होता है।
11. मालकांगुनी की 21 दिन तक गौमूत्र में भिगोकर उसका तेल निकालकर लगाने से सफेद कुष्ठ मिट जाता है।
12. इसके तेल की नेत्रों पर मालिश करने से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है।
13. इसके तेल को डेढ़ माशे की मात्रा में रोजाना लेने से स्मरण शक्ति की दुर्बलता मिटती है।
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