ककड़ी (Cacumis Utilissimus)
प्रचलित नाम- ककड़ी।
उपलब्ध स्थान – यह सम्पूर्ण भारतवर्ष में पाई जाती है।
परिचय- ककड़ी की लताएँ लम्बी होती हैं। इसके पुष्प पीले होते हैं। इसके फल लम्बे, कोमल तथा सफेद-हरे रंग के होते हैं। जब यह छोटी रहती है; तब काफी कोमल और रुएँदार होती है और जब पूरी बढ़ जाती है तो दो से ढाई फीट लम्बी होती हैं।
ककड़ी की कई जातियाँ होती हैं। ग्रीष्मऋतु में उत्पन्न होने वाली ककड़ी वर्षाऋतु में उत्पन्न होने वाली ककड़ी, बालम ककड़ी, पनवाड़ी में उत्पन्न होने वाली ककड़ी, अरण्य ककड़ी, चीना ककड़ी इत्यादि, इसकी कई तरह की जातियाँ होती हैं।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
आयुर्वेद – ककड़ी मीठी, रुचिकारक, तृप्तिकारक, मूत्रल, मलरोधक, वातकारक और पित्तनाशक रहती है। कच्ची ककड़ी शीतल, रूखी, मलरोधक, मीठी, भारी, रुचिकारक और पित्त को दूर करने वाली होती है। पकी हुई ककड़ी गर्म, अग्निवर्द्धक और पित्तकारक होती है।
यूनानी- यह सर्द तथा तर है। यह प्यास को बुझाने वाली, पित्त की हरारत और व्याकुलता को मिटाने वाली तथा जिगर को शांति देने वाली है। गुर्दे और मसाने की पथरी को यह तोड़कर निकाल देती है। यह पेशाब की रुकावट को खोल देती है। गरमी के मौसम में ककड़ी को आमतौर से लू से बचने के लिए खाया जाता है। इसमें पानी की मात्रा ज्यादा होने के कारण यह मौसम की गरमी से रक्षा कर प्यास बुझाती है। इसका फल बढ़ाने वाला, मूत्रल, विरेचक तथा ज्वर-निवारक होता है। इसके बीज ठंडे, मूत्रल, विरेचक, और ज्वर- निवारक होते हैं। बीज रक्तवर्द्धक, प्यास बुझाने वाला तथा सौन्दर्यवर्द्धक होते हैं। बीज पीसकर चेहरे पर मलने से चेहरे की रंगत निखर जाती है।
जिसके पेशाब का बनना बंद हो गया है, उसे 7.5 माशा बीजों को जल में पीसकर और छानकर पिलाने से अधिक पेशाब आता है।
1. जिगर और मेदे की सूजन तथा हरारत भी इसके प्रयोग से दूर हो जाती है। मधुमेह में जवाखार के इसका साथ इसके बीजों को पीस छानकर पीने से पेशाब स्वच्छ होता है और शक्कर का आना मिट जाता है। पथरी वालों को भी इनका उपयोग लाभकारी है। मूत्रकृच्छ्र अथवा बार-बार मूत्र आने की बीमारी में प्रयोग लाभकारी होता है।
2. इसके सूखे हुए बीजों का चूर्ण मूत्रल होता है। ये मूत्र मार्ग से पथरी को हटा देने में भी गुणकारी हैं।
3. जिसके पेशाब का बनना बंद हो गया हो, उसे ककड़ी के 7.5 माशे बीजों को जल में पीस-छानकर पिलाने से मूत्र ज्यादा आने लगता है।
4. इसके बीजों को जल में घोटकर यवक्षार के साथ पिलाने से मूत्र की जलन मिट जाती है।
5. इसके बीजों को मिश्री के साथ पिलाने से पथरी में फायदा होता है।
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