ककरोंदा (Blumea Lacera)
प्रचलित नाम- ककरोंदा, जंगली मूली।
उपलब्ध स्थान- हिमालय में नेपाल से सिक्किम तक, दक्षिणी पठार के पश्चिमी भागों में 1800 से 3000 फीट की ऊँचाई तक यह प्राप्त होता है।
परिचय- इसका पौधा तीन फीट की ऊँचाई का रहता है। यह एक झाड़ी है, जिससे कपूर की तरह गंध आती है। इसके पत्ते मोटे, रोयेंदार, पुष्प पीले, बीज छोटे तथा नोंकदार होते हैं।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
आयुर्वेद – य चरपरी, कड़वी, ज्वरनाशक, गरम, रुधिर विकार नाशक, वायुनलियों के प्रदाह और कफदाह को दूर करने वाली है। इसकी जड़ में मुखरोग को दूर करने की ताकत होती है।
यूनानी- औषधि रूप में करोंदा गरम तथा शुष्क, जलोदर रोग में फायदा पहुँचाने वाला एवं को मिटाने वाला होता है। कालीमिर्च के साथ बवासीर में फायदा पहुँचाने वाला होता है।
1. ककरोंदा की कच्ची जड़ के रस को नेत्र में डालने से नेत्ररोग में फायदा होता है। मुंह में रखने से मुखरोग दूर होते हैं। इसके पत्तों का रस कृमिनाशक है। जड़ का रस कालीमिर्च के साथ खूनी बवासीर में लाभकारी है।
2. आहू नामक बीमारी में ककरोंदे की जड़ का रस नाक में टपकाने से लाभ होता है।
3. ककरोंदे की जड़ को एक तोला लेकर पीसकर दूध के साथ पिलाने से पागल कुत्ते का विष उल्टी के रास्ते बाहर निकल जाता है।
4. ककरोंदे की जड़ का रस कान में टपकाने से जूड़ी बुखार तुरन्त उतर जाता है।
5. ककरोंदे के पत्ते के स्वरस को पिलाने से बालकों के पेट के कीड़े मर जाते हैं। मिश्री के साथ घोंटकर पिलाने से खूनी बवासीर में फायदा होता है तथा इसके पत्तों पर घी चुपड़ कर गाँठ पर बाँधने से गाँठ पककर सही हो जाती है।
6. इस औषधि में रक्त को स्तम्भन करने का तथा जलन को दूर करने का आश्चर्यजनक गुण होता है, इसलिए जिसको रक्तातिसार, बवासीर, रक्तप्रदर या रक्तपित्त के कारण मुँह, नाक, गुदा अथवा योनि के द्वारा कर रक्तस्राव होता हो, उसको रोजाना सवेरे-शाम 1 तोला ककरोंदे का रस पिलाने से 2-4 दिन में धाराप्रवाही रक्तस्राव भी बन्द हो जाता है और रोगी की क्षीण शक्ति फिर से जागृत होने लगती है। यह शक्तिशाली तथा बलवर्धक गुण के कारण पेट की गर्मी को बाहर कर पाचन क्रिया दुरुस्त कर देता है।
7. रसाँजन (रसौत) 8 तोला, हरड़ 4 तोला, सोनागेरू 2 तोला तथा काली मिर्च 1 तोला- इन सब औषधियों के चूर्ण को पीले फूल वाले ककरोंदे के रस में 14 रोज़ तक खरल करना चाहिए। फिर उसकी 2-2 रत्ती की गोलियाँ बनाकर रोजाना सवेरे-शाम और दोपहर को एक-एक गोली जल के साथ पीसकर पीना चाहिए। पथ्य में सिर्फ मूंग का सूप, गेहूँ की रोटी और घी का सेवन करना चाहिए। इस औषधि से सब प्रकार की अर्श बवासीर नष्ट होती है।
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