कचूर (Curcuma Zedoaria)
प्रचलित नाम- कचूर, काली हल्दी, नरकचूर ।
उपलब्ध स्थान – यह हल्दी के खेतों में पायी जाती है। एक वनीय वनस्पति है।
परिचय – यह क्षुप जाति की वनस्पति है। इसके पत्ते हल्दी की तरह होते हैं। इसकी जड़ों में आँवाहल्दी की तरह गाँठें होती हैं। ये गाँठें भीतर से हल्के पीले रंग की होती हैं। इसके चारों ओर तन्तु लिपटे होते हैं। इनमें कपूर-सी गन्ध आती है। इसके क्षुप के फूल पीले और गुच्छेदार रहते हैं। इसकी फली गोलाकार, फिसलनी और पतली रहती है। इसमें बीज भी रहते हैं। हल्दी के खेतों में कचूर स्वयं उत्पन्न होती है।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
आयुर्वेद- कचूर अग्नि को दीपन करने वाला, रुचि पैदा करने वाला, चरपरा, कड़वा तथा सुगन्धित होता है। इसकी जड़ें सांस की दुर्गन्ध को दूर करती हैं। यह धवल रोग, बवासीर, खांसी, सांस, वायु-नलियों के प्रदाह, अर्बुद, क्षयरोगजनित गले की ग्रन्थियाँ तथा तिल्ली की बीमारी में लाभकारी है। मिर्गी रोग में भी यह लाभदायक है।
यूनानी- यह हकीमी दृष्टि से भी गरम और खुश्क होती है। हथेली व पांवों के तन्तुओं की जलन को मिटा देता है। कंठमाला, कुष्ठ तथा बवासीर में लाभकारी है। सांस की तंगी और वायु के गोले को दूर कर देता है। हकीमों के मतानुसार यह सुड्डे को खोलने वाला, दिल-दिमाग और मेदे को शक्ति देने वाला, मूत्रल, ऋतुस्रावप्रवर्तक और बालकों की पेचिश को दूर करने वाला है। इसका लेप मुख की फुन्सियों को दूर करता है।
1. इसके चूर्ण की फंकी लेने से पेट का दर्द मिट जाता है।
2. इसको पीसकर लेप करने से चोट और मोच में फायदा होता है।
3. प्रसूतिजन्य कमजोरी मिटाने लिए या उस समय के उदर शूल को दूर करने के लिये कचूर को पाक में मिलाकर या वैसे ही देने से बड़ा फायदा होता है।
4. कचूर, पीपर और दालचीनी के क्वाथ में शहद मिलाकर लेने से जुकाम में फायदा होता है।
5. इसका लेप करने से शरीर में होने वाली बादी की पीड़ा मिट जाती है।
6. इसके छोटे-छोटे टुकड़ों को मुंह में रखकर चूसने से या इसके 3 माशे चूर्ण की फंकी लेने से खांसी में फायदा होता है तथा कंठ स्वर साफ होता है।
7. कालीमिर्च, मुलेठी और मिश्री के साथ कचूर को औटाकर पिलाने से श्वास नली के सभी रोग मिट जाते हैं।
8. इसको दाँतों में दबाकर रखने से दाँतों की पीड़ा मिट जाती है।
9. कचूर, पित्तपापड़ा, देवदार, सोंठ, चिरायता, धमासा, कुटकी, नागरमोथा-इन औषधियों का काढ़ा शहद तथा पीपल के चूर्ण के साथ लेने से सूतिका रोग, विषम ज्वर, जीर्ण स्वर, त्रिदोष इत्यादि में फायदा पहुँचता है।
10. इसकी ताजा जड़ ठण्डी और मूत्रल है। यह श्वेत प्रदर और सुजाक में बड़ी फायदेमंद है। यह खून साफ करने वाली भी है। इसके पत्तों का रस जलोदर रोग में दिया जाता है।
11. जड़ उत्तेजक, पौष्टिक तथा शोधक औषधि के रूप में दी जाती है। सिर के चक्कर में यह बड़ी लाभदायक समझी जाती है। अस्थिरता और सिर के चक्कर में इसका अर्क उपयोग में लिया जाता है। प्रसूति के पश्चात् करीब 6 सप्ताह तक दिन में तीन बार इसे प्रसूता को दिया जा सकता है।
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