कटसरैया (Barleria Prioniatis )
प्रचलित नाम- कटसरैया, पीयावासा ।
उपयोगी अंग- फूल, पत्ते, जड़ ।
उपलब्ध स्थान- यह पूरे भारतवर्ष में पाया जाता है।
परिचय- कटसरैया फूल के रंग के मुताबिक कई जातियाँ होती हैं जैसे पीले फूल वाली जाति, लाल फूल वाली जाति, श्वेत पुष्प वाली जाति, बैंगनी पुष्प वाली जाति। इसके पौधे बरसात के दिनों में बहुत उत्पन्न होते है। कहीं-कहीं यह बारह माह पाये जाते हैं। इसकी ऊँचाई दो से पांच फुट तक होती है। इस पौधे पर काफी शाखाएं होती हैं। इसके पत्ते को मसलने से उसमें से पिसी हुई राई की तरह तेज गन्ध आती है। इसका फूल अपनी जाति के मुताबिक सफेद, पीले, लाल बैंगनी रंग के होते हैं। इसके फल कच्ची व्यवस्था में हरे रंग के और बाद में गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं। हर फल में दो बीज होते हैं।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
आयुर्वेद- सफेद पुष्प की कटसरैया कड़वी, मृदु, गरम दाँतों को हितकारी तथा कृमिनाशक होती है। खाज, खुजली इत्यादि, रुधिर विकार, कुष्ठरोग, दांत के दर्द इत्यादि रोगों में भी यह कारी है। पीले फूल की कटसरैया गरम, भूख बढ़ाने वाली, कड़वी, कसैली तथा चर्म और रक्त रोगों में फायदेमंद होती है। पुष्प की कटसरैया कड़वी, कान्तिकारक, गरम तथा रक्त विकार, अफारा, शूल, श्वास और खांसी को मिटा देती है। नीले फल की कटसरैया सूजन, व्रण, चर्मरोग और वात-कफ को दूर करने वाली है।
1. इसकी जड़ को पीसकर तीन रोज तक पुरुष और स्त्री को गाय के दूध के साथ पिलाने से औरत गर्भ धारण करती है। अगर गर्भधारण करने के बाद भी स्त्री इसका सेवन कुछ रोज तक और करती रहेगी तो गर्भस्थल पुष्ट होता है। गर्भपात का खतरा नहीं रहता।
2. कटसरैया के पत्ते तथा कालीमिर्च को जल के साथ पीसकर छानकर पिलाने से उपदंश मिटता है।
3. इसके पत्ते का क्वाथ शहद के साथ पिलाने से सूखी खांसी मिट जाती है।
4. इसके काढ़े पर सोंठ बुरककर पिलाने से बच्चों का अतिसार खत्म हो जाता है।
5. पीली कटसरैया का काढ़ा करके पूरी रात पड़ा रहने दें, इसे दूसरे दिन पिलाने से अथवा पीली कटसरैया की जड़ को चबाकर उसका रसपान करने से, सूतिका रोग के सभी प्रकार के उपद्रव ठीक होते हैं। इस काढ़े में अगर थोड़ा पीपर का चूर्ण मिला दिया जाये तो विशेष लाभकारी हो जाता है।
6. इसके पत्तों की राख करके घी में मिलाकर लगाने से, सड़े हुये घाव या नहीं पकने वाले फोड़े भी ठीक हो जाते हैं।
7. इसके पंचांग को पीसकर तेल में मिलाकर, मरहम की तरह लेप करने से दाद-खाज, खसरा तथा जख्म पर लगाने से लाभ होता है।
8. पत्तों का रस दो तोले की मात्रा में बड़े व्यक्तियों को देने से पसीना देकर ज्वर उतर जाता है। खांसी तथा सर्दी भी दूर होती है।
9. इसके पत्तों का रस निकाल कर जिस ओर बिच्छू ने काटा हो, उसके दूसरी ओर की नाक के छेद में टपकाने से वेदना शान्त हो जाती है। कुछ लोगों के मतानुसार इसका रस सूजन पर चुपड़ने से फायदा होता है।
10. दांत के रोग के ऊपर भी यह औषधि बड़ी प्रभावशाली सिद्ध हुई है। कटसरैया के पत्तों को उबालकर उससे कुल्ले करने से हिलते हुये दांत भी दृढ़ हो जाते हैं।
11. पीली कटसरैया के पत्ते तथा अलकतरे को पीसकर दाढ़ के नीचे रखने से दाढ़ का दर्द तुरन्त दूर जाता है। इसी प्रकार दाँतों से खून गिरना भी इससे बन्द हो जाता है। मसूढ़ों को दृढ़ता प्रदान करने तथा मसूड़ों के रोगों में भी यह उपयोगी समझी जाती है।
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