कड़वी नई (Corallocarpus Epigeous)
नाम- कड़वी नई, आकाशगदा।
उपलब्ध स्थान – कड़वी नई की बेलें बरसात के दिनों में सभी जगह पर बहुतायत से उत्पन्न होती हैं।
परिचय- इसकी बेल की डंडी हरी, चिकनी और चमकती हुई होती है। इसके पत्ते तिकोने तथा पचकोने होते हैं। इसमें नर और मादा दोनों जाति के पुष्प कुछ हरी झांई लिए हुए कुछ पीले रंग के निकलते हैं। इसके फल अणीदार, सिन्दूरी तथा नीचे-ऊपर हरे रंग के होते हैं। इसकी बेलों के नीचे एक तरह का कन्द निकलता है। यह बाहर से भूरा और अंदर से सफेद रहता है। इसका स्वाद कटु, चिकना और खटास लिए हुए होता है।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
आयुर्वेदिक मतानुसार इसका फल सूजन को समाप्त करने वाला, विषनाशक, क्रमिघ्न, रेचक, रक्तशोधक तथा वामक रहता है।
जिनके शरीर में विस्फोटक खुजली, गरमी व खून-विकार के रोग फूटकर निकलते हों, उसको कड़वी नई के ताजा कन्द को 6 माशा की मात्रा में जल में घोटकर सवेरे पिलाने से दो-चार उलटी और एक या दो दस्त आते हैं और दिन-भर खराब स्वाद की डकारें आती रहती हैं, हालांकि इससे रोगी को घबराहट होती है, फिर भी हिम्मत और यकीन के साथ इसका सेवन करने से और पथ्य में केवल चावल, घी और शक्कर लेने से थोड़े ही समय में अधिक लाभ होता है। जंगल की जड़ी-बूटी के एक अनुभवी विशेषज्ञ के मुताबिक एक ऐसे रोगी को जिसके हाथ और पैरों से कोढ़ चूना शुरू हो गया था और जो दर्द के मारे आत्महत्या करने की सोच रहा था; उसको सात रोज तक कड़वी नई औषधि देने से उसके सब घाव सूख गए ।
कारबंकल तथा अन्य प्रमेह पीड़ाओं पर भी, जो कि अत्यन्त दुष्ट और त्रासदायक होती है, यह औषधि बड़ा चमत्कारिक गुण वाली सिद्ध होती है। इन बीमारियों में कटु नई के कंद का चूर्ण 6 रत्ती से डेढ़ माशे तक की मात्रा में लेकर, गुड़ में उसकी गोली बनाकर, अथवा हरे कंद को 6 माशे की मात्रा में जल के साथ पीसकर, उसमें थोड़ा गुड़ मिलाकर पिलाने से आधा घण्टे में रोगी को दस्त और उल्टी आरम्भ हो जाती है। इस प्रकार तीन दिन तक प्रयोग करने से कारबकल की भयंकर गांठें भी पिघल जाती हैं। जिस वक्त इस औषधि का सेवन चालू रहे, उस समय बाह्य उपचार के रूप में इस कंद को पानी में घिसकर, उसमें थोड़ा नमक मिलाकर, दर्द की जगह पर लगाना चाहिए और भोजन में सिर्फ गेहूं की सूखी रोटी, गुड़ और मूंग का पानी देना चाहिए। तेल, मिर्च, हींग बिल्कुल नहीं देना चाहिए। यहां तक कि जिस घर में रोगी सोया हो, उसके निकट तेल, मिर्च, हींग का छींक भी नहीं देना चाहिए।
सूजन के दाह में भी यह औषधि अच्छा प्रभाव दिखलाती है। इस रोग में रोगी की पहले गुड़ के जल के साथ 3-4 माशे निशोध काच चूर्ण देना चाहिए। उसके पश्चात् कुछ दिनों तक प्रतिदिन सवेरे-शाम नौ-नौ रत्ती कड़वी नई का चूर्ण देना चाहिए। उसके पश्चात् इसकी मात्रा बढ़ाकर डेढ़-डेढ़ माशा कर देनी चाहिए। इसके साथ इसके कंद को जल में पीसकर सूजन के ऊपर लगाना चाहिए। इससे सूजन के दाह में अधिक लाभ होता है।
जीर्ण ज्वर अर्थात् प्राचीन बुखार आने में भी यह औषधि काम करती है। जब शरीर में हमेशा बुखार बना रहता हो और वह किस वजह से रहता है, यह समझ में न आता हो, तो इस हालत में इसके कंद का चूर्ण तीन रत्ती की मात्रा में लेकर उसमें उतनी ही लींडी पीपर का चूर्ण मिलाकर, दिन में दो बार देने से कुछ दिनों में अच्छा फायदा होता है।
सांप के विष और अफीम के जहर पर भी यह लाभदायक मानी जाती है। इस तरह के जहरों में इसके कंद को जल में घिसकर पिलाने से दरत और उल्टी होकर विष का नाश हो जाता है।
यह औषधि पुराने अतिसार के लिए लाभदायक समझी जाती है। यह इसके कंद के चूर्ण के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह चौबीस घंटे के भीतर सवा-सवा माशे की मात्रा में दी जाती है। इसे 8-10 दिन तक निरन्तर देना चाहिए। ऊपर लिखी हुई मात्रा में इसे देने से एक-दो पतले दस्त आयेंगे, मगर इससे परेशान न होना चाहिए। यह कृमिनाशक भी समझी जाती है। गठिया की बीमारी में इसे बाहरी प्रयोग में लाते हैं। इसको जीरा, प्याज और अरंडी के तेल के साथ मिलाकर तैयार कर लेते हैं। इस मलहम को पुराने आमवात रोग पर लगाने से फायदा होता है। इसकी जड़ को सांप के विष को दूर करने के लिए भी प्रयुक्त किया जाता है। इसे पिलाते भी हैं और काटे हुए अंग पर लगाते भी हैं।
1. कड़वी नई लता की जड़ धातु परिवर्तक तथा मृदु विरेचक है। यह प्रायः पुरानी पेचिश में और उपदंशीय संन्धिवात में उपयोगी रहती है। इसकी जड़ को पीसकर और उसका काढ़ा बनाकर, जीर्ण आंतरिक प्रवाह में व पेचिश में देते हैं। श्लेष्मिक तथा आंतरिक प्रदाह के रोगियों को इससे काफी लाभ होता है, किन्तु इस काढ़े से तीव्र रक्तातिसार रोग से पीड़ित रोगियों को कुछ भी फायदा नहीं होता। उन्हें नहीं देना चाहिए।
2. रुधिर को शुद्ध करके उपदंश के विकार को मिटाने के लिए इसका उपयोग काफी अच्छा है। इसकी चार माशे चूर्ण की फंकी दिन में एक बार देनी चाहिए। उपदंश की पिछली स्थिति में इसकी चार माशे फंकी को दिन में एक बार 8-10 दिन तक देने से रोजाना एक-दो ढीले दस्त होकर उपदंश की तकलीफ मिट जाती है।
3. जीरा, प्याज और कड़वी नई की कंद को अरंडी के तेल में पीसकर लेप करने से प्राचीन गठिया मिटती है।
4. इसकी जड़ के चूर्ण की फंकी लेने से तथा उसको घिसकर दंश पर लगाने से सांप के विष में लाभ होता है।
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