कद्दू (Cucurbita Mascima)
प्रचलित नाम- कद्दू, लालपेठा।
उपलब्ध स्थान- यह पूरे भारतवर्ष में प्राप्त होता है।
परिचय- इसकी बेलें वर्षा ऋतु में पैदा होती हैं, जो जाड़े में फलती हैं। इसकी लता विशाल होती है। उसमें रोयेदार पत्ते होते हैं, जो रूखड़े होते हैं। इसके फूल पीले होते हैं और फल बड़े-बड़े गोल सिन्दूरी रंगत के होते हैं, जिन पर श्वेत रंग के छींटें होती हैं। यह औषधि के ही काम आता है।
उ०प्र० बिहार, बंगाल, आसाम, नेपाल आदि पूर्वी इलाकों में ‘कद्दू एक दूसरा ही फल है। यह लता भी कुम्हरे ही जैसी होती है, मगर रूखड़ी नहीं होती। इसमें भी बड़े-बड़े फल लगते हैं। इसका सब्जी में प्रयोग होता है। इसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली आदि में ‘घिया’ कहते हैं। इस पीले फल को पूर्वी उ०प्र० में कुम्हरा भी बोला जाता है। घिया, सजवन, लौकी आदि भी ‘कद्दू’ के नाम हैं। इसमें बड़ा भ्रम होता है। अतः इसके अन्तर को समझ लें।
गुण एवं परिचय- यह वातकारक, पित्त बढ़ाने वाला तथा कफ का नाश करने वाला, मूत्रल, पौष्टिक एवं क्षुधा को समाप्त करने वाला है। इसका बीज कृमिनाशक है।
यूनानी- यह कब्जियत को दूर करने वाला, मूत्रल, बवासीर में फायदेमंद, प्रमेह को दूर करने वाला और भूख को बढ़ाने वाला है। इसका अधपका फल कफ को दूर करने वाला, पित्त नाशक और फोड़े-फुन्सियों में फायदेमंद है। ये मेदा के लिए नुकसानदेह होता है।
कद्दू के बीज – कद्दू के बीज ठण्डे और तर हैं। ये गरमी से उत्पन्न हुए दोषों को दूर करते हैं। पेशाब की चिपक और मसाने की सूजन को मिटाकर ये पेशाब साफ कर देते हैं। दिल और दिमाग को शक्ति देते हैं। छाती की जलन और मुंह से खून आने की बीमारी में ये लाभदायक हैं। मूर्छा को दूर करते हैं। इनके मगज (बीज़ के भीतर का गूदा) को पीसकर फटे हुए होठों पर लेप करने से होंठ अच्छे हो जाते हैं। इसके प्रतिनिधि तुख्म खयरिन और तुख्म तरबूज हैं। इनके दर्प को नाश करने वाली सौंफ होती है। इनकी मात्रा 10 माशे की होती है।
कद्दू का तेल – कद्दू के बीजों का तेल मलने से बदन में तरो-ताजगी उत्पन्न होती है। मस्तिष्क की खुश्की दूर होती है। अनिद्रा रोग दूर हो जाता है। मौलीखोलिया (एक प्रकार का उन्माद), वहम, उदासी, पुट्ठों की ऐंठन, कान की सूजन, खांसी, क्षय इत्यादि रोगों में यह लाभकारी हैं।
- कद्दू का ऐसा छोटा फल जिसका फूल भी न गिरा हो, लेकर आटे में लपेट कर उनका भरता करके, उस भरते के रस को नेत्र में आंजने से पीलिया रोग में फायदा होता है।
- कट्टू शक्कर के साथ जोश देकर मल-छानकर पीने से मस्तिष्क की गरमी, सिरदर्द और पागलपन में फायदा पहुंचता है।
- इसका सूखा छिलका पीसकर खाने से आंतों तथा बवासीर से रक्त का आना रुक जाता है।
- इसके फल को भूनकर, उसका रस निकाल कर पीने से जिगर, मैदा, हृदय, फुफ्फुस तथा आमाशय की दाह दूर हो जाती है।
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