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कन्टाई (Flacourtia Rawontchi) के फायदे एवं औषधीय गुण

कन्टाई (Flacourtia Rawontchi) के फायदे  एवं औषधीय गुण
कन्टाई (Flacourtia Rawontchi) के फायदे एवं औषधीय गुण

कन्टाई (Flacourtia Rawontchi)

नाम- कन्टाई, कंजु, काक

उपलब्ध स्थान- यह औषधि हिमालय में चार हजार फीट की ऊंचाई तक तथा दक्षिण में तीन हजार फीट की ऊंचाई तक तथा पश्चिमी घाट व गंगा के मैदान में उत्पन्न होती है।

परिचय – यह एक छोटी जाति का वृक्ष होता है। इसके तने और शाखाओं पर कांटे होते । शाखाएं फैली हुई और कांटेदार होती हैं। इसके तने की छाल हल्की धुंदली, कुछ काली और कुछ खुरदरी होती है। इसके पत्ते अंडाकार और तीखी नोंक वाले होते हैं, जो नीचे से रुएंदार व ऊपर से चिकने रहते हैं।

इनके फूल हरापन लिए हुए पीले रंग के होते हैं, फल आधा इंच लम्बा, लाल या गहरे बैंगनी रंग का होता हैं। उसमें 8 से लेकर 16 तक बीज दो तह में होते हैं। पौष और माघ में इसके पत्ते गिर जाते हैं और फागुन में नए पत्ते निकल आते हैं। छोटे पत्ते पहले लाल रंग के रहते हैं और पीछे से हरे रंग के होते हैं। यह वृक्ष फागुन में फूलता है और इसके फल बैशाख में पक जाते हैं।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण

आयुर्वेदिक मत से यह अधिक उष्ण, कसैली, दीपन, पाचन, पचने में हल्की और विपाक में मीठी होती है। इसका फल मृदु, अग्निदीपक और पाचक होता है। प्लीहा तथा तिल्ली के बढ़ने पर इसका खास उपयोग किया जाता है। प्लीहा, तिल्ली रोगों में इसके कच्चे फल को कुचल कर खाना चाहिए। दिन में दो बार सेवन करना चाहिए। पेट की जलन में पका फल चार-पांच बार खाने से फायदा होता है।

दक्षिण में प्रसूति के बाद इसके बीज हल्दी के साथ पीसकर प्रसूता के शरीर पर मालिश करते हैं, जिससे कि शरीर पर ठंडी हवा लगकर आमवात की पीड़ा उत्पन्न न हो। इसका गोंद विसूचिका रोग में दिया जाता है।

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