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कपास के उत्पादन एवं इसके भौतिक एवं रासायनिक गुण

कपास के उत्पादन एवं इसके भौतिक एवं रासायनिक गुण
कपास के उत्पादन एवं इसके भौतिक एवं रासायनिक गुण

कपास के उत्पादन एवं इसके भौतिक एवं रासायनिक गुणों का वर्णन कपास तन्तु की भौतिक एवं रासायनिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

कपास का उत्पादन

कपास संसार के नम जलवायु वाले भागों में पाये जाने वाला पौधा है। यह संयुक्त राष्ट्र अमरीका, भारत, ब्राजील, पेरु, रूस, चीन, मिस्र आदि देशों में अधिक उत्पन्न होती है।

अमेरिका, ब्राजील और रूस कपास उत्पन्न करने वाले देशों में प्रथम श्रेणी में आते हैं। संसार में भारत वर्ष का कपास उत्पन्न करने वाले देशों में द्वितीय स्थान है, लेकिन भारत में उत्पन्न कपास के तन्तु (Fibre) उत्तम श्रेणी के नहीं माने जाते मिस्र में तीसरे दर्जे की कपास उत्पन्न होती हैं।

इसके तन्तु उत्तम प्रकार के होते हैं क्योंकि इसमें उत्तम और ऐंठनदार सूत तैयार किया जाता है।

कपास की विशेषताएँ

कपास का संगठन

रुई के रेशे का मुख्य भाग सेल्युलोज से निर्मित होता है। इसमें 90 प्रतिशत सेल्युलोज के अतिरिक्त 5-8 प्रतिशत तक जल का अंश रहता है तथा शेष प्राकृतिक अशुद्धियाँ पाई जाती हैं। इसमें ऊपरी सतह पर प्राकृतिक मोम की रक्षात्मक कोटिंग रहती है, जो इन्हें आपस में सटने में सहायता प्रदान करती है।

कपास की विशेषताओं को दो वर्गों में विभाजित किया गया है-

  • (अ) भौतिक विशेषताएँ,
  • (ब) रासायनिक विशेषताएँ।

रुई की अनेक विशेषताएँ होती हैं, जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं—

( 1 ) भौतिक विशेषताएँ

( 1 ) संघटन – यह तन्तु मुख्य रूप से उद्भिजीय होता है, जिसमें कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन 6, 10 व 5 के अनुपात में पाई जाती है। विरंजक सूती तन्तु पूर्ण रूप से शुद्ध उद्भिज होता है। सूत के तन्तु में 88% से 90% तक, उद्भिज 5% से 8% तक पानी व अन्य प्राकृतिक अशुद्धियाँ पाई जाती कच्ची रुई में 5% अशुद्धियाँ बिनौले के तेल की पेष्टिक एसिड, एलब्यूमेन और मोम की होती है। इसमें जो थोड़ा-सा मोम होता है, उससे इस तन्तु की पानी से रक्षा होती है।

(2) रचना – जब यह सूत कच्चा होता है तो सूक्ष्मदर्शी यंत्र से देखने पर एक रस भरी नली जैसा दिखता है। जब यह तन्तु पक जाता है तो रस (Sup) सूख जाता है और नली जैसी आकृति समाप्त हो जाती है। अब तन्तु चपटा, ऐंठा हुआ, फीते के समान दिखता सूखने पर तन्तु कमजोर हो जाता है। इसीलिए सूती तन्तु में कोई चमक व लचीलापन नहीं होता है। । रस के

( 3 ) सिकुड़न – यह तन्तु स्वयं नहीं सिकुड़ता है, परन्तु इससे बनाये हुए वस्त्र जब परिसज्जा के लिए खींचे जाते हैं तो गीले होने पर वे वस्त्र सिकुड़ जाते हैं।

(4) नमी व रगड़ का प्रभाव – नमी का सूत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, न घर्षण या रगड़ का कोई प्रभाव पड़ता है, बल्कि नमी में यह और मजबूत होता है। इसलिए इस पर धोने का या रगड़ने का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इसलिए धोते समय हाथ से रगड़ा जा सकता

(5) आर्द्रता चूषक – सूती तन्तु ऊन व रेशम के तन्तुओं की तरह अच्छी तरह नमी नहीं सोखता है, लेकिन फिर भी आर्द्रता अपेक्षाकृत अधिक टिकती है। इसलिए यदि इसको पहना जाता है तो पसीना सोख लेता है और जल्दी ही ठण्ड लगती है। शुद्ध व ब्लीच किये हुए सूती तन्तु में अपने भार से 15 से 20 गुनी नमी सोखने की शक्ति होनी चाहिए। यह जल्दी नमी सोखता है और पूरे कपड़े में फैल जाता है।

( 6 ) ताप संवाहनता – सूती तन्तु के लिए ताप हानिकारक नहीं होता है, जब तक वह कपड़े को न पकड़ ले। यह ऊन व रेशम की अपेक्षा ताप का सुचालक है लेकिन रेयन की तरह सुचालक नहीं है। सूती तन्तु को पानी में डालकर उबालने तक गर्म कर सकते हैं। तुरन्त इसका कुछ नुकसान नहीं होता है। इस पर 300° से 320° फा. के ताप पर लोहा किया जा सकता है।

( 7 ) शक्ति – रुई का रेशा बहुत मजबूत नहीं होता है। यह रेशम व लिनन की अपेक्षा कम मजबूत होता है, परन्तु ऊन से अधिक मजबूत होता है। अतः मजबूती में इसका स्थान बीच का है। सूती तन्तु सूखी दशा की अपेक्षा गीली अवस्था से अधिक मजबूत रहता है, जबकि रेशम व ऊन गीले होने पर कमजोर हो जाते हैं। कास्टिक सोडे से इसको और मजबूत किया जा सकता है।

(8) रंग – प्राकृतिक तन्तुओं में सूती तन्तु अधिक सफेद व स्वच्छ होता है, किन्तु कच्ची, रुई में नाइट्रोजन आदि तत्व होने के कारण रंग कुछ पीलापन व भूरापन ब्लीच करने से इसकी सफेदी फिर से वापिस आ जाती है। लिए हुए होता है।

( 9 ) ऐंठन– रुई की ऐंठन उसकी उत्पत्ति की गई स्थान पर निर्भर करती है इसलिए सभी देशों में रुई की ऐंठन भिन्न-भिन्न होती है। भारत की रुई तन्तु में 200 प्रति इंच की ऐंठन की क्षमता होती है। इसके विपरीत अमेरिका की रुई की ऐंठन क्षमता 200 से 250 प्रति इंच होती है। कपास की ऐंठन शक्ति पर ही उसकी मजबूती निर्भर करती है।

(10) स्वच्छता- कपास का तन्तु अन्य तन्तुओं की भाँति स्वच्छ नहीं होता जैसा कि रेशम तथा लिनन के तन्तु स्वच्छ होते हैं। परन्तु इसकी धुलाई करने की विधि रेशम तथा लिनन से सरल है इसी कारण इसका प्रयोग अधिक किया जाता है तथा अन्य तन्तुओं से अच्छा समझा जाता है। नियमित धुलाई करने से भी इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

(2) रासायनिक विशेषताएँ-

कपास की रासायनिक विशेषतायें निम्न हैं-

(1) तेजाब का प्रभाव- कपास में कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन पाया जाता है। कपास पर धातु के तेजाब के घोल की शीघ्र प्रतिक्रिया होती है। किन्तु कार्बनयुक्त तेजाब से प्रतिक्रिया उतनी अधिक नहीं होती है। कपास के रेशों में रासायनिक प्रक्रिया द्वारा नये तत्व समाविष्ट किये जा सकते हैं। गन्धक के तेजाब से वस्त्र कड़ा तथा पारदर्शी हो जाता है।

( 2 ) क्षार का प्रभाव – क्षार का कपास के रेशे पर कोई बुरा प्रभाव नहीं होता एवं धुलाई में इसका प्रयोग किया जा सकता है।

( 3 ) अम्ल का प्रभाव – कपास का रेशा सान्द्र अम्ल, जैसे— हाइड्रोक्लोरिक, सल्फ्यूरिक तथा नाइट्रिक से पूरी तरह नष्ट हो जाता है।

(4) जीवाणु का प्रभाव – सूती वस्त्रों में कीड़ा नहीं लगता, किन्तु फफूँदी अवश्य लग जाती है। फफूँदी के जीवाणु उसी समय क्रियाशील होते हैं, जब उनको पर्याप्त मात्रा में नमी, ताप तथा भोजन प्राप्त होता है। अतः यदि सूती कपड़ों का संग्रह करना हो, तो माड़ी नहीं लगानी चाहिए।

( 5 ) रंग का प्रभाव – सूती वस्त्रों पर रंग इतना शीघ्र नहीं चढ़ता, जितना ऊनी या रेशमी पर। पक्का रंग चढ़ाने के लिए इनमें नमक या फिटकरी मिलाते हैं। धोने में सूत का रंग  प्रायः निकल जाता है। तीखे और मुख्य रंग कपास को रँगने के लिए प्रयोग में लेने चाहिए।

( 6 ) ब्लीच का प्रभाव – श्वेत सूती वस्त्रों को ब्लीच करने के लिए किसी भी ब्लीच का प्रयोग किया जा सकता है। सोडियम हाइड्रोक्लोराइड घरेलू ब्लीच के लिए सर्वोत्तम है।

( 7 ) पसीने का प्रभाव – सूती वस्त्र बार-बार पसीने के सम्पर्क में आकर कमजोर हो जाते हैं। अगर पसीनेयुक्त वस्त्रों को बिना धोये ही संग्रह करके रखते हैं तो इसका प्रभाव स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है, वहाँ से वस्त्र कड़े हो जाते हैं और रगड़ने के पश्चात् जल्दी ही फट जाते हैं। इसलिए वस्त्र संग्रह करने से पूर्व इन्हें अच्छी प्रकार से रगड़कर धो लेना चाहिए।

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