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कपास के वस्त्र निर्माण प्रक्रिया के विभिन्न चरण

कपास के वस्त्र निर्माण प्रक्रिया के विभिन्न चरण
कपास के वस्त्र निर्माण प्रक्रिया के विभिन्न चरण

कपास के वस्त्र निर्माण प्रक्रिया के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए। अथवा काटन (सूत) का संक्षिप्त परिचय देते हुये, सूती वस्त्र निर्माण की प्रक्रिया को समझाइये।

कपास के वस्त्र निर्माण प्रक्रिया के विभिन्न चरण – भारत सूती वस्त्रों का जन्मदाता है इसलिए यहाँ पर कपास का उत्पादन सर्वाधिक होता है तथा कपास का उपयोग भी अन्य तन्तुओं की अपेक्षा अधिक होती है। आधुनिक युग में सूती वस्त्रों का निर्माण अधिकतर रुई तन्तुओं से किया जाता है, जो कि कपास के पौधे से प्राप्त होते हैं। प्राचीन काल में समस्त पूर्वी देश रुई तन्तुओं से वस्त्र निर्माण करते थे परन्तु पन्द्रहवीं शताब्दी के मध्य यूरोपियन देशों में रुई तन्तुओं से वस्त्र बनाये जाने लगे। धीरे-धीरे संसार के कई देशों में इस उद्योग की उन्नति होती गई जिनमें अमेरिका तथा भारत रुई की खेती के लिए विख्यात हैं। आजकल भारत, अमेरिका, चीन, मिस्र, ब्राजील आदि देश कपास की उपज के लिए प्रसिद्ध हैं।

सूती वस्त्रों की निर्माण प्रक्रिया

कपास के रेशों से पहले सूत (Threads) तैयार किये जाते हैं तत्पश्चात् इन्हें (सूत) बुनकर वस्त्र तैयार किये जाते हैं। परन्तु वस्त्र तैयार करने के लिए कपास के रेशों में निम्न प्रक्रियाएँ अपनाना पड़ती हैं-

(1) कपास के कार्यों को एकत्र करना – जब पौधों में कपास के कोये पकने के बाद फटने लगते हैं, तो उन्हें तोड़कर एकत्र कर लिया जाता है। यदि ऐसे कोयो को पेड़ पर ही छोड़ दिया जाये, तो मौसम एवं सूर्य की धूप के प्रभाव से रुई बदरंगी एवं गन्दी हो जाती है।

(2) बिनौला निकालना अथवा ओटना – इस विधि के द्वारा बिनौले अलग कर दिया जाता है। आजकल यह कार्य मशीनों के माध्यम से किया जाता है। बिनौले से कपास से निकले हुए इन रेशों को ही रुई अथवा कपास कहते हैं भारत में बिनौले निकालने का कार्य घरों में चर्खा तथा के द्वारा किया जाता है।

(3) कपास की गन्दगी दूर करना – यह रेशे लकड़ी, पत्ते, धूल आदि के कारण अशुद्धियों से भरे रहते हैं। इन अशुद्धियों को रेशों से पृथक कर दिया जाता है। यह कार्य मशीनों द्वारा भी किया जाता है।

(4) गाँध बाँधना – इसके उपरान्त कपास को दबाकर गाँठ की शक्ल में बाँध दिया जाता है। फिर इसको टाट से लपेटकर लोहे की पत्तियों में कसा जाता है। अब रुई इस स्थिति में होती है कि मिलों को प्रदान की जा सके।

(5) गाँठों को खोलना तथा आपस में मिलाना – रुई की गाँठे मिल में पहुँचने पर खोल दी जाती हैं और रुई को ढीला करके फैला दिया जाता है। सटे हुए रेशों को अलग-अलग छितरा दिया जाता है। यहाँ पर यन्त्रों की सहायता से सुलझाने का काम किया जाता है। यह यन्त्र रुई को साफ करके उसकी चादरें बना देते हैं।

(6) रुई धुनना – इस समय तक चादरों में कुछ न कुछ अशुद्धियाँ रह ही जाती हैं। इन अशुद्धियों को निकालना रेशों को सुलझाना, इन्हें समानान्तर करना आदि आवश्यक काम चुनाई (Carding) की प्रक्रिया द्वारा किये जाते हैं। रुई का धुनने की मशीन के माध्यम से निकाला जाता है। इस यन्त्र के माध्यम से रुई पूर्ण रूप से स्वच्छ हो जाती है। गन्दगी, धूल एवं अन्य पदार्थ बाहर निकल जाते हैं तथा रुई के रेशे सीधे हो जाते हैं।

(7) कपास की कंघी करना – कपास की धुनाई के पश्चात उसकी कंधी की जाती है। कपास की कंघी करने से छोटे-छोटे रेश अलग निकल आते हैं तथा लम्बे रश समानान्तर स्थिति में आ जाते हैं तथा वे लम्बी तथा सीधी स्थिति में हो जाते हैं। लम्बे तन्तुओं में बढ़िया वस्त्र बनाये जाते हैं तथा छोटे तन्तुओं से सस्ते वस्त्र बनाये जाते हैं।

(8) पोनी बनाना – कपास की कभी करने के पश्चात् उसका पोनियों के रूप में परिवर्तित किया जाता है। रुई से सूत बनाने के लिए उसकी पौनी बनाना अत्यन्त आवश्यक है। क्योंकि बिना पौनी के सूत काता नहीं जा सकता। इसके अतिरिक्त यदि पौनी नहीं बनाई जायेगी तो रुई के खराब होने तथा तन्तुओं के आपस में उलझने का भय रहता है। धुनाई के पश्चात् लगभग 6½ से 7 इंच लम्बी तथा 1 इंच व्यास की पोनिया बनाई जाती हैं।

(9) कताई करना – कंधी की हुई कपास की पानी बनाने के पश्चात् उसको चिकना किया जाता है तथा उसे चरखे तथा मशीनों की सहायता से खींच कर सूत के रूप में लाया जाता है। भारत में यह कार्य घरों में तकली से भी किया जाता है। मशीन द्वारा इस प्रक्रिया को करते समय कपास को रौलरों के मध्य से निकाला जाता है तो सूत में ऐंठन भी दी जाती है। इसके पश्चात् सूत को फिरकियों अथवा चरखियों पर लपेटा जाता है।

(10) बुनना- कपास को सूत के रूप में परिवर्तित करने के पश्चात् बुनाई की जाती है। बुनाई करने की अनंको विधियाँ हैं अतः बुनकर अपनी इच्छानुसार कोई भी बुनाई कर सकता है। बुनाई करते समय ताने के धागे को बाने के धागे की अपेक्षा अधिक ऐंठन देनी चाहिए क्योंकि परिसज्जा तथा बुनाई करते समय ताने के धागे पर अधिक दबाव पड़ता है।

(11) परिसज्जा – वस्त्र की बुनाई करने के पश्चात उसको आकर्षक व सुन्दर बनाने के लिए परिसज्जा की जाती है। माड़ी लगाना, धुलाई करना सेन्फराइजिंग तथा मर्सराइजिंग करना ही वस्त्र की परिसज्जा कहलाती है। किस वस्त्र पर किस प्रकार की परिसज्जा की जायेगी यह वस्त्र की किस्म पर ही निर्भर करता है। परिष्कृत अथवा परिसज्जा करने का कोई निश्चित समय नहीं होता है यह धागे पर भी की जा सकती है तथा घटिया वखों पर भी की जाती है घटिया बलों पर माड़ी लगाई जाती है। इसके अतिरिक्त वस्त्र को रैंगने से पहले भी उस पर परिसज्जा की जा सकती है। परिसज्जाएँ दो प्रकार की होती हैं स्थायी और अस्थायी।

(12) रँगाई व छपाई – तैयार सूत को अथवा वस्त्र बनाने के पश्चात् उन्हें विभिन्न रंगों एवं डिजाइनों में रँगकर सुन्दर व आकर्षक बनाया जाता है। वस्त्र की उपयोगिता के अनुरूप इन्हें विभिन्न रंगों व डिजाइनों में रँगा जाता है। छपाई के लिए डिस्चार्ज रोलर, अवरुद्ध, ब्लॉक प्रिन्ट, स्क्रीन प्रिन्ट आदि का उपयोग किया जाता है।

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