कपीला (Malltus Philippinesuis)
प्रचलित नाम – कम्बिला, कपीला।
उपलब्ध स्थान- इसके पेड़ सम्पूर्ण भारतवर्ष में पाये जाते हैं।
परिचय – इसका पेड़ 20-30 फुट तक ऊंचा होता है। इसके पिण्ड की गोलाई तीन से चार फुट तक होती है। इसकी शाखाएं अक्सर जड़ से ही निकलती हैं। इसके पत्ते गूलर के पत्तों की तरह मगर उनसे कुछ छोटे होते हैं। इसकी छाल चौथाई इंच मोटी होती है। इसके फूल सफेद और पीले होते हैं। इसके फल मकोय के दाने की भांति लगते हैं। इसके पके फलों की औषधीय उपयोगिता है। इसके प्रयोग से कृमि और उदर रोगों में फायदा होता है। यह फल गर्मी में पकते हैं। जब वे पककर लाल पड़ जाते हैं, तब पहाड़ी लोग इनको वृक्ष पर से तोड़कर गड्ढे में डालकर कूटते हैं। कूटने से जो चूर्ण बनता है, उसको छलनी में जानकर साफ कर लिया जाता है। इसी को कपीला कहा जाता है।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
आयुर्वेद – आयुर्वेदिक मत से कपीला दस्तावर, चरपरा, गरम, व्रणनाशक, कफ, खांसी तथा कृमियों की दूर करने वाला और गुल्म, उदर रोग, अफारा और पथरी को समाप्त करने वाला होता है। इसके पत्ते ठण्डे और कड़वे होते हैं। यह भूख बढ़ाने वाला है। इसके फल से तैयार किया हुआ चूर्ण कृमिनाशक, घाबपूरक और विरेचक समझा जाता है।
यूनानी- यह गरम तथा खुश्क है। कुछ हकीमों के मत से सर्द तथा खुश्क है। इनके फल के ऊपर की है ग्रन्थियां और रुआं कृमिनाशक तथा रक्तस्राव रोधक हैं। यह आंतों की पीड़ा को कम करता है तथा दाद, खाज और चर्म रोगों में लाभदायक है। इसके फल को कच्ची अवस्था में तोड़कर उसे कूट लें। कूटने के बाद उसका सत्व छानकर दाद, खाज खुजली में लगाएं। यह त्वचा रोगों के लिए अधिक लाभदायक है।
1. हलीला काबुली, बहेड़ा, आंवला, सोंठ, निसोद तथा कपीला—यह छः वस्तुएं समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर तीसरे हिस्से शक्कर की चाशनी में मिलाकर माजून बनाना चाहिए। इस माजून को छः सात माशे की मात्रा में रोजाना लेने से यह नाभि के आसपास होने वाला दर्द रोक देती है। बीस रोज तक इस औषधि को निरन्तर लेने से इस बीमारी का नाश हो जाता है।
2. आधा सेर तिल का तेल गरम करके उसमें एक छटांक कपीला अच्छी प्रकार मिलाकर जख्म पर लगाने से जख्म सूख जाता है। जख्म के सूख जाने के बाद भी प्रयोग करते रहने से जख्म का निशान भी जाता रहता है।
3. रोगन गुल के साथ कपीला को लगाने से दाद, खाज तथा फुन्सियों को बहुत लाभ होता है।
4. घोए हुए घी के साथ कपीला को लगाने से सिर की गंज में काफी फायदा होता है।
5. आठ माशे की खुराक में इसको मधु के साथ चढ़ाने से तमाम कृमि नष्ट हो जाते हैं। शहद के साथ कपीला का सत्व मिलाएं, जो ताजे फल अथवा पत्तियों से प्राप्त होता है।
6. आठ माशे कपीला और एक माशे हींग को जल में पीसकर और चने के समान गोलियां बनाकर, उसमें से एक-दो गोली गरम जल के साथ लेने से पसली का दर्द तथा पेट के कीड़े दूर होते हैं।
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