कमल (Sacred Lotus )
प्रचलित नाम – कमल, पद्म, रक्त कमल ।
उपयोगी अंग- पंचांग (मूल, बीज, एवं नरकेशर)
परिचय- यह एक बड़ा जलीय क्षुप होता है। इसका कांड भूपसारी एवं लम्बा, जिसकी संधि पर से मूल पैदा होते हैं। पत्ते पतले 1-2 फीट के घेरे में गोलाकार, बाहरी तल बहिंगोल, छत्राकार, अखण्ड, वृन्त कटिदार । फूल एकांकी श्वेत या गुलाबी फल व बीज भी होते हैं।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
इसकी पंखुड़ियाँ शीतल, दाह प्रशामक, हद, मूत्रक, ग्राही, हृदयसंरक्षक होती हैं। रक्तपित्त, बुखार, मूत्रकृच्छ्र, अतिसार, हृदयघात, रक्तप्रदर, रक्तार्श, रक्तातिसार में इसका प्रयोग लाभदायक है। इसके फांट में मिश्री मिलाकर सेवन करने से हृदय पर बुखार के कुप्रभाव को रोकने में सहायता होती है। यदि इसके साथ सफेद चन्दन, मुलैठी, नागरमोथा मिलाकर सेवन कराया जाता है तो यह औषधि हृदयघात में जिस तरह डीजीटैलिस का असर पड़ता है, उसी प्रकार यह प्रभावशाली होती है। इसके सेवन से हृदय को शक्ति मिलती है। गर्भावस्था में महिलाओं को इसका सेवन कराने से गर्भस्राव नहीं होता तथा गर्भाशय को बल मिलता है तथा गर्भ में शिशु का पोषण होता रहता है। (इस वनौषधि के पुष्पों के नरकेसरों को मक्खन में मिलाकर सेवन करना चाहिए।) तेज ज्वर या दाह में इसके बीजों को शीतल जल में पीसकर पिलाना चाहिए, बुखार धीरे-धीरे उतरकर लाभ होता है। इसके अतिरिक्त मानसिक तनाव, अनिद्रा रोग एवं मस्तिष्क की कमजोरी में भी इसका सेवन लाभकारी होता है। मूत्रकृच्छ्र में रक्तस्राव होता हो तो इसके लम्बे पत्रवृत को चबाने से फायदा होता है। ज्वरातिसार में कमल, अनार की छाल (फल की), कमल के नरकेशर-इन सब के चूर्ण को चावल के धोवन के साथ सेवन से फायदा होता है। नेत्ररोगों में बकरी के दूध में कमल एक पुष्प को उबालकर पीने से आंखों की लालांश, नेत्रपाक, वेदना इन सब में फायदा होता है। बाल काले करने लिये कमल के पुष्पों को दूध में डालकर इसको एक महीने तक जमीन में दबाकर रखने के बाद, सिर में लगाने से बाल काले हो जाते हैं। पित्तजन्य कास में इसके बीज के चूर्ण का शहद के साथ सेवन से पित्त के कास ठीक हो जाता है। कमल की जड़ तथा तिलों को गौमूत्र में पीसकर पिलाने से रुका हुआ मूत्र उतरता है।
मात्रा – पुष्पों का चूर्ण 3-6 माशा फांट 1-2 तोला। कमलककड़ी का चूर्ण 1/4-1/2 तोला। कमलकंद का चूर्ण 1/2-1 तोला। मूल स्वरस एक से दो तोला। नरकेशर 5-12 रत्ती बीज का चूर्ण 3-6 माशा।
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