करंज (Indian Beech)
प्रचलित नाम- कंजा वृक्ष, करंज।
उपयोगी अंग- बीज, छाल, पत्र तथा तेल ।
परिचय- यह एक मध्यम कद का सदा हरित वृक्ष होता है। इसकी शाखाएँ नीचे की ओर लटकी हुई। होती हैं। पत्ते पक्षवत संयुक्त, पत्रवृंत आधार पर फूला हुआ, पत्रक चमकीले, चिकने, नुकीले, तादाद में 5-7 होते हैं। पुष्प अंशतः गुलाबी और श्वेत रंग के गुच्छों में होते हैं। फलियाँ चिकनी सख्त एवं बीजयुक्त होती हैं।
स्वाद- तीखा।
कुष्ठघ्न, आमवातघ्न, कृमिघ्न, व्रणरोपण अर्श, श्वित्र रोग, दद्रु में (बाह्य प्रयोग ) इसके तेल का प्रयोग व्रणरोपण, कीटाणुघ्न, खुजली, परिसर्प, आमवात, संधिवात में लाभदायक पुष्पों को फांट, मधुमेह में पत्तों का प्रयोग आध्मान, अतिसार तथा कुपचन में लाभदायक। रक्तार्श में इसके मूल को गोमूत्र में पीसकर पिलाते हैं। व्रण शोध में इसके पत्रों को निर्गुण्डी के पत्तों के साथ पीसकर बाँधने से सूजन कम होती है। मधुमेह में इसके पुष्पों का फांट पिलाने से फायदा होता है। कुष्ठ रोग में इसके बीज सुबह एवं सायं नित्य चबाकर खाने से तथा इसके काढ़े से स्नान करने से तथा इसके तेल से मालिश करने से फायदा होता है। विस्फोट में इसके बीज को जल में घिस कर लेप करने से फायदा होता है। शिरःशूल में इसके बीज को घिसकर इसमें गुड़ मिलाकर, गरम कर नासिका में 2 से 6 बूंद डालने से फायदा होता है। अर्श में इसमें मूल की छाल का चूर्ण, जल के साथ तीन रोज तक पीने से तथा केवल छाछ का ही सेवन करने से लाभ होता है। रक्तपिक्त में इसके बीज का दो ग्राम चूर्ण, शहद में मिलाकर तीन दिन तक नित्य, तीन से चार-बार चाटने से फायदा होता है। दंत रोग में (पायरिया) इसकी टहनी का दातुन करने से एवं इसके तेल को दाँतों पर घिसने से लाभ होता है। इसके बीज को सेंककर इसके छोटे-छोटे टुकड़े कर बार-बार सेवन करते रहने से वमन का नाश होता है । कुकुर खाँसी में इसके बीज पानी में घिसकर या कूटकर, जल में उबाल कर पानी को पिलाने से फायदा होता है।
मात्रा-मूल – स्वरस 3 माशा। छाल-1-3 माशा। पत्र- 1/4 से 1/2 तोला। बीज-1 माशा (प्रौढ व्यक्ति) । तेल 10 बूंद कैप्सूल में ।
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