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काकतुंडी (ASCLEPIAS CURSSAVIEA) के फायदे एंव औषधीय गुण

काकतुंडी (ASCLEPIAS CURSSAVIEA) के फायदे एंव औषधीय गुण
काकतुंडी (ASCLEPIAS CURSSAVIEA) के फायदे एंव औषधीय गुण

काकतुंडी (ASCLEPIAS CURSSAVIEA)

प्रचलित नाम- रक्तपुष्पा, काकतुंडी, कौवाडोरी, कुर्की ।

उपलब्ध स्थान— यह पौधा भारतवर्ष में सर्वत्र जंगलों में पाया जाता है।

परिचय- यह एक छोटी जाति की दीर्घजीवी वनस्पति होती है। इसके पत्ते कनेर के पत्तों की भांति होते हैं। इसके फूल नारंगी बीज गोल तथा गहरे बादामी होते हैं। जड़ें बारीक तथा गुच्छेदार होती हैं। औषधि में इसकी जड़ तथा फूल काम में आते हैं।

गुण एवं मात्रा- काकतुंडी औषधि की क्रिया शरीर के भीतर इपिकेकोना नामक औषधि (इमेटिन) की तरह होती है। काकतुण्डी की जड़ की क्रिया वमन कारक और रक्तस्राव रोकने वाली है। इसके पत्ते, फूल व जड़ में औषधीय गुण होते हैं। इसे पेट सम्बन्धित किसी भी रोग में प्रयोग कर सकते हैं।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण

1. काकतुंडी के फूल की एक छोटी मात्रा आमाशय और यकृत को उत्तेजना देने वाली, पित्तस्रावक, स्वेदजनक, कफघ्न तथा बड़ी मात्रा में वमनकारक, कृमिघ्न और आनुलोमिक होती है। इसकी जड़ का चूर्ण पाव रत्ती से 1 रत्ती तक कफ निकालने के लिए तथा 7 रत्ती से 15 रत्ती तक उल्टी होने के लिए दिया जाता है।

2. सांस की नली की नयी अथवा पुरानी सूजन में इसकी जड़ का रस देने से कफ पतला होकर निकल है जाता है तथा सूजन कम हो जाती है।

3. इसकी जड़ का रस वमन कारक और विरेचक माना जाता है। कुछ वैद्य धवल रोग में इंजेक्शन द्वारा इसको प्रयोग करने की सलाह देते हैं।

4. इसके पत्ते और पुष्प को पीसकर लेप रूप में जख्मों के इलाज में काम में लाते हैं। यह वनस्पति (पत्तों और फूलों कर रस) क्षय रोग में भी सर्वोत्तम मानी गई है। बवासीर और सुजाक में भी यह लाभदायक समझी गई है।

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