कामरूप (Ficus Retusa)
प्रचलित नाम – कामरूप, पिनबल, जिर।
उपलब्ध स्थान – यह वृक्ष हिमालय के पूर्वी भाग में कुमायूँ से बंगाल तक, आसाम, दक्षिणी भारत तथा दक्षिणी प्रायद्वीपों में पाया जाता है।
परिचय – इसके पेड़ बड़े होते हैं। इस वृक्ष के पत्ते पीपल के पत्तों के समान, लेकिन उनसे कुछ छोटे होते हैं। इस झाड़ की छाया काफी सघन होती है।
उपयोगिता तथा औषधीय गुण
1. आयुर्वेदिक मत यह औषधि तीक्ष्ण, कड़वी, पौष्टिक, ठण्डी, लघु, कामोद्दीपक, ग्राही, त्रिदोष नाशक तथा व्रण, कुष्ठ, रक्त-पित्त, श्वेतकुष्ठ, मस्तक पीड़ा, रस विकार व जलन में लाभकारी होती है।
2. कामरूप की जड़ के छिलके तथा पत्तों को तेल में उबालकर उस तेल को जख्म और रगड़ पर लगाने से बहुत लाभ होता है। आमवात जनित सिरदर्द में इसके पत्ते और छाल दोनों की पुल्टिस बनाकर प्रयोग में ली जाती है। शरीर के जोड़ों पर होने वाली सूजन और दर्द में इसके पत्तों को पीसकर लगाएं तथा यही बांधें। दिन में तीन बार पट्टी बदलें। एक सप्ताह तक ऐसा करने पर सूजन और दर्द दोनों में आराम मिल जाएगा।
3. इसकी जड़ अथवा जड़ की छाल या पत्ते तेल में औटाकर लगाने से जख्म भरते हैं। इस तेल से चोट का दर्द मिट जाता है। इसके तेल की मालिश करने से नाभि का दर्द दूर हो जाता है।
4. इसके पत्ते और छाल की पुल्टिस निरन्तर बाँधने से बादी का सिरदर्द नहीं होता है।
5. कायरूप तथा तुलसी के पत्तों का रस बनाकर उसमें आधा घी मिलाकर पिलाने से बादी से होने वाला पेट के दर्द में आराम हो जाता है। गरम ईट पर इसके रस को छिड़क कर भपारा देने अथवा सेंक करने से बादी का पेट दर्द समाप्त हो जाता है।
6. कामरूप की छाल और लोघ्र दोनों को कूटकर, उनको जल में पकाकर, लेप करने से योनिदर्द में फायदा होता है।
7. अण्डवृद्धि में कामरूप के पत्तों का रस तथा काली तुलसी के पत्तों का रस निकालकर, दोनों को पाँच-पाँच तोला लेकर, उनमें 5 तोला घी डालकर, अग्नि पर हल्की आँच से पकाना चाहिए। जब रस जलकर घी मात्र बाकी रह जाये, तब उसको उतार लेना चाहिए। इस तरह 12 बार इन दोनों वनस्पतियों के रस में उस घी को सिद्ध करना चाहिए। इस घी को दिन में चार-पाँच बार अंडकोष पर मालिश करके गरम ईंट से सेंकना चाहिए। फायदा होता है।
8. यकृत के रोगों को दूर करने में इस औषधि की बड़ी प्रशंसा है। इसकी छाल के 1 तोला ताजा रस को दूध के साथ सेवन करने से तथा उपरोक्त घी की पेट पर मालिश करके गर्म ईंट से सेंक करने से, कुछ ही दिनों में यकृत के रोग मिट जाते हैं।
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