कारवेलक (Bitter Gourd)
प्रचलित नाम- करेला। उपयोगी अंग- मूल, पत्र, फल एवं बीज।
परिचय – कमजोर कांड की सूत्रारोही लता जो मूदरोमश, पत्र पंजाकार ढंग से विभाजित होते हैं। फूल चमकीले पीतवर्णी होते हैं। फल हरे रंग, त्रिकोणाकार, दोनों ओर नुकीले एवं बीच में मोटे होते हैं। बाहर की सतह ऊबड़-खाबड़ रहती है।
स्वाद- तीखा।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
अतिरेचक, वामक, उद्वेष्टननिरोधी, ग्राही, दीपन, मूत्रल, वातानुलोमक, कृमिघ्न।
मधुमेह, अर्श, श्वासरोग, कास, संधिवात, मूत्रसंस्थान में अश्मरी, दाह, बुखार, यकृत तथा प्लीहा रोग, कुष्ठरोग, चमरोग, मसूरिका में इसके पन्नों के स्वरस में हल्दी का चूर्ण मिलाकर पिला देना चाहिए। मधुमेह, बवासीर में इसके स्वरस की उपयोगिता वैद्य तथा हकीम स्वीकार करते हैं। इसके प्रतिदिन सेवन से मधुमेह नियंत्रित हो जाता है।
विषूचिका (कोलरा) में इसके पत्रों के स्वरस में तिल का तेल मिलाकर सेवन से विसूचिका का खात्मा होता है।
मधुमेह में इसके फल का असर विशेष नहीं होता है। इसके रस का सेवन ही उपयोगी होता है। रस के लिए करेले को चीरकर बीज निकाल दें। फिर कारवेलक को कुचलकर उसे बारीक सूती वस्त्र में रखकर निचोड़ लें। इस रस को दो-दो चम्मच सुबह, दोपहर, शाम भोजन से पहले लें। इससे मधुमेह में फायदा होता है, उसमें तीखा रस अधिक लाभकारी हो सकता है, इसलिए करेला का शाक तिकता दूर किए बिना लाभदायक है।
इसके फल आमवात, वातारक्त, यकृत, प्लीहा रोगों में उपयोगी तथा पाचक एवं बल्य तथा कृमिघ्न हैं। गंजापन दूर करने के लिए पत्ते के पाण्डुरोग, आध्मान, प्रमेह में लाभदायक हैं। आमवात, यकृत-प्लीहा वृद्धि, जीर्ण त्वचा रोगों में इसके फल का साग बिना कड़वापन दूर किये पका कर खाने से रोगी को फायदा होता है।
यकृत-प्लीहा बढ़ोत्तरी तथा विषम ज्वर में इसके पत्रों का रस पीने से फायदा होता है। पुराने त्वचा रोगों में पत्तों का पीसकर इसका लेप करना लाभदायक है।
वातरक्त में करेले के क्वाथ से सिद्ध किए हुए तेल के प्रयोग से वातरक्त समाप्त होता है। नेत्रों की नीली रोग में इसके मूल को अश्वमूत्र में घिसकर प्रवाही नेत्रों में डालने से फायदा होता है। योनि बाहर निकल आयी हो, तो इसके मूल को पीसकर इसके कल्क को योनि के भीतर रखने से योनि यथा स्थान अंदर प्रविष्ट हो जाती है।
जोड़ों के दर्द में कारवेलक के स्वरस का लेप लाभदायक है। करेला के स्वरस का उपयोग बालकों के कृमिरोग में करें यह रेचक है। करेले जब तक हरे एवं ताजे होते हैं, तब तक एस्कोर्बिक ऐसिड का अंश सुरक्षित हो जाता है, जबकि पकने पर इसमें से ज्यादातर औषधीय गुण नष्ट हो जाते हैं। जबकि शाक पकाते समय इसका 40 प्रतिशत भाग समाप्त हो जाता है। इसलिए इसके हरे फल को कच्चे सूप में ही प्रयोग करें। सूर्य की गर्मी में सूखने से 80 प्रतिशत एस्कोर्बिक एसिड समाप्त जाते हैं, इसलिए मधुमेह में औषधि के प्रयोग हेतु कच्चे करेला का स्वरस लाभदायक है।
मात्रा- फल तथा पत्तों का रस 6-6 चम्मच दिन में तीन बार फल तथा पत्रों का चूर्ण 2-2 छोटे चम्मच दिन में तीन बार चूर्ण को बालकों को उदर रोगों में दें। इससे अपच व कृमिरोग समाप्त होता है।
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