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कारी (Clerodendrum infortunatum) के फायदे एंव औषधीय गुण 

कारी (Clerodendrum infortunatum) के फायदे एंव औषधीय गुण 
कारी (Clerodendrum infortunatum) के फायदे एंव औषधीय गुण 

कारी (Clerodendrum infortunatum)

प्रचलित नाम- कारी, भाँट ।

उपलब्ध स्थान- यह पौधा पूरे भारतवर्ष में पाया जाता है।

परिचय- यह पौधा बड़े पत्तों का झाड़ीनुमा होता है, जो 3 से 4 फीट तक ऊँचा रहता है। इसके पत्ते गोलाकार, बालिश्त भर लम्बे, दोनों तरफ रुएँदार और कटे हुई किनारों के होते हैं। इसके फूल सफेद, लम्बे और सुगन्ध युक्त होते हैं। इनका पराग (केशर) कोमल होता है। इसके पत्ते दुर्गन्ध युक्त, स्वाद में कड़वे और कुछ कसैले होते हैं। औषधि में इसके पत्ते और जड़ें प्रयोग में आते हैं।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण 

आयुर्वेदिक मत से कारी वनस्पति कड़वी, तीक्ष्ण, सुगंध युक्त, पौष्टिक, काभोद्दीपक, ज्वरघ्न तथा कृमिनाशक होती है। पित्त कफ और त्रिदोष में तथा धवल रोग, प्यास, जलन, रक्तविकार और मुख की दुर्गन्ध में यह लाभकारी है।

यह एक कीमती और गुणकारी कटु पौष्टिक, उत्तम, आनुलोमिक, पित्तकारक, कृमिघ्न और ज्वरनाशक वनस्पति होती है। इसके सूखे हुए पत्तों के चूर्ण की मात्रा 2 से 5 रत्ती तक होती है। इसका गुण चिरायते की तरह होता है। तिजारी बुखार में यह काफी गुणकारी होती है। इसके पत्तों के रस की पिचकारी देने से बच्चों के गुदास्थान के कृमि समाप्त हो जाते हैं। विषाणु नाशक औषधि होने के कारण यह कृमियों को मारने की उत्तम औषधि होती है।

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