काला धतूरा (Thorneapple)
प्रचलित नाम- काला धतूरा ।
उपयोगी अंग- मूल, पत्र, बीज, फल तथा पुष्प ।
परिचय – यह 3-6 फुट ऊँचा लघु क्षुप है। इसकी दोनों सतहें चिकनी होती हैं। यह अकेले या युग्म (प्रायः एक छोटा एक बड़ा) में होते हैं। फूल सफेद लेकिन बाहर से लगभग बैंगनी रंग के होते हैं। फल की बाहरी सतह पर छोटे-छोटे कांटे, जो बैंगनी रंग के होते हैं। यह नशीला और कृमिनाशक पौधा होता है, जिसके कारण चर्मरोग, खाज-खुजली, बुखार और रक्त सम्बन्धी विकारों में अत्यंत गुणकारी है। मगर अधिक मात्रा में सेवन वर्जित है।
स्वाद- तीखा ।
रासायनिक संगठन- इसके बीज तथा फूलों में दतुराडियॉल, दतुरालोन, फेस्टुसिन, बीटा-सिटोस्टीरॉल, हयोसीन, हयोसायमीन, एंट्रोपिन (अल्प मात्रा में), फैस्टुडिन, फैस्टुसिनॉल ऑबटयूसीफोयोल, एलान्टैन, कौपेराईके रहते हैं। झड़ते केशों में इसके पत्रों का स्वरस सिर पर लगाना चाहिए। स्तन शोथ में इसके 20-24 पत्रों का कल्क बनाकर, इसमें थोड़ी पिसी हुई हल्दी मिलाकर, स्तन की वेदना पर लगाएं, वेदना शांत पड़ जाती है। अजीर्णता में गुरु आहार (गेहूँ, उर्द, मटर, मूँग, मोठ) के कारण हुए अजीर्ण में धतूरे के बीज का चूर्ण (एक रत्ती) सेवन से अजीर्ण समाप्त होता है। पैरों के तले फट गए हों तो प्रयोग लाभकारी है, क्योंकि इसमें बीटा-लिनोलिक, लिनोलिक अम्ल, ऑलिक, दतुरासेटाईन, विटामिन-सी क्लोरोजेनिक अम्ल तथा स्थिर तैल घटक पाए जाते हैं।
गुण – पूतिरोधक, ज्वरघ्न, निद्राकारक, शूलहर, कासहर, शोथहर।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
व्रण, अतिसार, चर्मरोग, कण्डुखज, ज्वर, उन्माद, उद्वेष्टनरोधी है। इसके सेवन से यह भ्रामक क्रिया उत्पन्न करता है। यह तमक श्वास में लाभकारी है। पत्रों के लेप से वेदना एवं शोथ कम होता है। शीतज्वर (पारी से आना वाला) में बीज का चूर्ण दही में मिलाकर बुखार आने से पहले दिया जाता है। पत्तों का क्याथ-आमवात, संधिशोथ, आध्मान, नाड़ीशूल में क्वाथ का सेंक लाभकारी पागल कुत्ते के विष में श्वेत पुनर्नवा का चूर्ण 1/2 तोला तथा धतूरा मूल चूर्ण एक रत्ती दोनों को मिलाकर ठण्डे पानी के साथ सेवन कराना चाहिए। कान से मवाद बहता हो तो 8 बूंद सरसों का तेल, एक चुटकी गंधक, एक चुटकी हरिद्रा और कुछ धतूरे के पत्रों का स्वरस मिलाकर, विधिपूर्वक तैल सिद्ध करके इस तेल की बूँदें कान में डालनी चाहिए। उपरोक्त औषधियां कानों के रोगों में विशेष लाभकारी हैं। बहता हुआ कान सही हो जाता है। मवाद का आना बंद कर घाव भरता है। कान के परदों की सूजन को फायदा पहुंचाता है।
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