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कुकुरलता (Lulia Echinata) के फायदे एंव औषधीय गुण

कुकुरलता (Lulia Echinata) के फायदे एंव औषधीय गुण
कुकुरलता (Lulia Echinata) के फायदे एंव औषधीय गुण

कुकुरलता (Lulia Echinata)

प्रचलित नाम- वन्दाल, कुकुरलता ।

उपलब्ध स्थान- इसकी बेल गुजरात, सिन्ध, बंगाल, देहरादून, उत्तरी तथा बुन्देलखण्ड में विशेष रूप से उत्पन्न होती है।

परिचय- यह लता वर्षा ऋतु में उत्पन्न होती है, इसका तना बहुत कोमल होता है। इसके पत्ते 5 जिह्वा वाले तथा रुएंदार होते हैं। इसमें नर और मादा दो प्रकार के पुष्प लगते हैं। मादा पुष्प लंबे होते हैं। इसके फल गोल जायफल की तरह होते हैं। फलों को तोड़ने से अन्दर की जाली मिलती है। इसके बीज काले, चपटे और अंडाकृति होते हैं। इस वनस्पति की तीन जातियां होती हैं। परन्तु तीनों के गुण, दोष एकसमान होते हैं। इसका प्रयोग बच्चों के रोगों में विशेष उपयोगी है। बच्चों की खांसी, कृमी रोग तथा ठण्ड से होने वाली बीमारियों में फायदा होता है।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण

आयुर्वेद- यह वनस्पति कड़वी, दीपन, गरम, विषनाशक, वमनकारक, कृमिनाशक, मूत्रल, शिरो विरोचक, व्रणशोधक तथा व्रण रोपक होती है। यह प्रदाह, खांसी, पीलिया, गुदाद्वार सम्बन्धी रोग, बुखार, श्वांस, रक्त की कमी, क्षय, बवासीर, हिचकी तथा चूहे के विष में लाभदायक है। यह मुख की बदबू को दूर करती है। इसकी जड़ विरेचक, कृमिनाशक तथा वेदना को दूर करने वाली होती है। यह बात में लाभकारी है। इसकी केसर (फूल का पराग), प्रसूति के समय की वेदना को दूर करने के लिए और जल्दी प्रसूति होने के लिए दी जाती है।

यूनानी- इसकी जड़ गले की मज्जाओं को दृढ़ करती है। बालों को बढ़ाती है। इसके फल का स्वाद खराब होता है इसलिए फल रूप में इसे नहीं खाना चाहिए। यह पुरानी खांसी और फेफड़ों की पीड़ा को दूर करती है।

1. इसके एक रत्ती चूर्ण को नाक द्वारा सूंघने से छींक आ जाती है और नाक से पीले रंग का काफी पानी निकलकर शिरो विरेचन हो जाता है। यकृत वृद्धि की वजह से उत्पन्न हुए जलोदर रोग में यह औषचि कड़वी तोरई की तरह गुणकारी होती है। बवासीर रोग में इसके पंचांग के काढ़े से गुदा को धोने से दर्द और सूजन की कमी हो जाती है। ज्वर में इसके पंचांग के काढ़े से शरीर को धोने से शरीर की दुर्गन्ध कम होकर बुखार हल्का पड़ जाता है। पेटदर्द में इसके रस की कुछ बूंदों का प्रयोग ही तुरन्त दर्द की बेचैनी पर काबू पा लेता है।

2. कामला रोग में भी इस वनस्पति का ताजा रस या चूर्ण सुंधाने से बड़ा फायदा होता है।

3. कोंकण में इसके पंचांग का रस निकालकर उदर शूल तथा अतिसार में पीने को दिया जाता है।

4. यह औषधि जलोदर की बीमारी की एक तेज औषधि मानी जाती है। इसके गुण विरेचक होते हैं। यह पेट में जमे हुए मल को तोड़ती है। पेट साफ होता है, हल्के दस्त आ सकते हैं, इससे रोगी को परेशान नहीं होना चाहिए।

5. यह वनस्पति वमनकारक, कृमिनाशक और पीलिया तथा क्षय में लाभ पहुंचाती है। इसमें कटुतत्व पाए जाते हैं।

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