कूड़ा (Tellicherry Bark)
प्रचलित नाम- कूड़ा, कुटज
उपयोगी अंग- मूल, कांड की छाल तथा बीज।
परिचय- यह 30-40 फीट ऊँचा मध्यम कद का पेड़ होता है। छाल खुरदरी। इसके पत्ते चौड़े, नुकीले, चिकने अथवा मृदुरोमश होते हैं। प्रधान शिराएँ 10-14 युग्म में होती । हैं। फूल सफेद रंग के, फलियाँ दो-दो एक साथ लेकिन एक-दूसरे से मुक्त होती हैं।
स्वाद- तीखा।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
ग्राही, वातानुलोमन, पित्तशामक, पाचन। अतिसार, प्रवाहिका, रक्तार्श, आमवात, संधिशोध, चर्मरोग, व्रणरोपण के लिये, रक्त शोधन में लाभदायक है। यह जीर्ण ज्वर, अर्श, पाचन संस्थान के विकारों और श्वासरोग में लाभदायक । जीर्ण ज्वर में इसके कांड की छाल रातभर पानी में भिगोकर प्रातः छानकर सेवन करने से फायदा होता है। अतिसार में कांड की छाल का रस मधु के साथ मिलाकर सेवन से फायदा होता है। अश्मरी में मूल की छाल को दही में घिसकर मिलाकर सेवन से लाभ होता है। यक्ष्मा वाले को अतिसार हुआ हो तो कुटज की छाल तथा सोंठ का चूर्ण चावल की मांड में मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है। कुष्ठ रोग में इसकी छाल को पानी में पीसकर लेप करने से फायदा होता है। रक्तपित्त में इसकी छाल के कल्क से सिद्ध किया हुआ घी का सेवन लाभदायक है। पित्तात्तिसार में इसके बीज चार तोला जल में उबाल कर, इस उबले हुए जल में शहद मिलाकर पिलाने से लाभ होता है। रक्तातिसार में इसकी छाल से सिद्ध किया हुआ घी का सेवन लाभदायक, व्रण रोपण में इसकी छाल का क्वाथ अति लाभदायक है।
प्रमेह में इसके फूलों का शाक या चूर्ण का सेवन लाभकारी है। विस्फोट में इसकी छाल को चावल के जल में पीसकर लेप करने से लाभ होता है। इसकी ताजी छाल का प्रयोग अधिक लाभदायक, रक्त प्रवाहिका में इसकी छाल विशेष गुणकारी होती है। इसलिए ताजी छाल को छाछ में पीसकर सेवन करने से रक्त प्रवाहिका में फौरन फायदा होता है। इसकी ताजी छाल का रस कूटकर, छानकर, उसका अर्क निकालकर छाछ के साथ सेवन करने से सभी प्रकार के राक्तविकार में लाभ होता है। इसके साथ-साथ ज्वर में लाभदायक है। छाल की मात्रा प्रौढ़ों के लिए एक से दो तोला, बच्चों के लिए-1/4 से 1/2 तोला (क्वाथ बनाकर सेवन करना चाहिए)। कुटजपुट पाक इसकी ताजी छाल को चावल के मांड में चटनी की तरह पीसकर, इसका गोला बनाकर इस पर जामुन के पत्ते लपेटकर, तथा एक अंगुली मोटा मिट्टी का स्तर करने के बाद मिट्टी सूख जाये, तब गोबर के कंडों के बीच रख जला देना चाहिए। जब गोले की मिट्टी अच्छी तरह लाल हो जाए, तब गोले को बाहर निकालकर पत्र तथा मिट्टी हटाकर खादी के वस्त्र के टुकड़े में गोला रखकर, जोर से दबाकर रस निकाल लेना चाहिए। इस रस में शहद मिलाकर सेवन से रक्त प्रवाहिका, अर्श (बवासीर), संग्रहणी वगैरह में फायदा होगा। आंत्र यक्ष्मा में अत्यंत लाभकारी है। इस वृक्ष को हर गांव व बस्ती में लगाना चाहिए। यह श्रेष्ठ औषधि सम्पत्ति है।
मात्रा- छाल का चूर्ण-एक से चार माशा, छाल का क्याथ-1-4 तोला।
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