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केला (Banana) के फायदे एंव औषधीय गुण

केला (Banana) के फायदे एंव औषधीय गुण
केला (Banana) के फायदे एंव औषधीय गुण

केला (Banana)

प्रचलित नाम- केला।

उपयोगी अंग- पंचांग, मूल, फूल तथा कच्चे फल।

परिचय- यह एक विशाल वृक्ष की तरह क्षुप होता है। अंतर्भूमिशायी कंद से अंकुर निकल कर परिवेष्टक पर्ण तलों के आपस में लिपटने की वजह से कूट-काण्ड बनता है। इसके पत्ते बड़े और मुलायम होते हैं। इसके फल पकने पर खाये जाते हैं। केले के वृक्ष भारत में सर्वत्र होते हैं। इसमें डालियां नहीं रहतीं। इसकी ऊंचाई 20 फीट तक की होती है। इसके मध्य भाग से पत्ते निकलकर फैलते जाते हैं।

स्वाद- मीठा, कषाय ।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण

ग्राही, मृदुरेचक, कृमिघ्न, ठण्डा, शोथहर, तृषाशामक, रक्तशोधक, रुचिकर (पके फल) । कान दर्द, प्रवाहिका, व्रण शूल में मधुमेह, रक्तभाराधिक्य में वृक्क, शोथ, वातरोग में लाभदायक। पुष्पों का सत्-रक्त में शर्करा प्रमाण कम करता है। योनिदोष, रक्तदोष तथा अश्मरी में लाभदायक । श्वास रोग में फल के मध्य भाग को पोला कर उसमें कालीमिर्च का चूर्ण भरकर रातभर रखा रहने के पश्चात्, सुबह इसको घी में सेंककर सेवन से अतिलाभ होता है। मूत्रघात में केले का प्रवाही (4-5 तोला) में दो तोला प्रवाही शुद्ध घी मिलाकर सेवन करने से अधिक लाभ होता है, इसके सेवन करने से जल्दी ही मूत्र मार्ग से मूत्र बाहर निकलता है। इसका अधिक लाभ नारियों के मूत्रघात में होता है। अत्यार्त्तव में इसके फूलों का रस दही के साथ सेवन से फायदा होता है। अपस्मार में कांड का रस अति लाभकारी है। कच्चे फल का प्रयोग मधुमेह में फायदेमंद होता है। व्रण में इसके पके पीले पत्ते साफ कर व्रण पर बांधकर उस पर पट्टी बांधने से मवाद एवं दुर्गन्ध दूर हो जाती है। पीड़ा प्रसव में इसके कंद को कमर में बांधने से शीघ्र प्रसव होता है। प्रसव बाद कंद को खोल देना चाहिए। कामला में मंदाग्नि न हो, ऐसे रोगी को पूरा पका हुआ एक-एक केला प्रातः एवं सायं देने से लाभ होता है। प्रवाहिका में इसके फूलों का रस दही के साथ मिलाकर सेवन से लाभ होता है। रक्त प्रदर में पके हुए केले को शुद्ध घी में मसलकर सेवन करने से स्त्रियों का रक्त प्रदर समाप्त हो जाता है। सोमरोग में परिपक्व केले, आंवला का रस, शहद एवं मिश्री– इन सबको मिलाकर पिलाना या खिलाना चाहिए। इससे सोमरोग से होने वाला कष्ट समाप्त हो जाता है। उदर रोग में कदली का क्षार या भस्म और इसके पौधे के मूल में से जल निकालकर उस जल में विलेप बना लें, इस विलेप का सेवन सिर्फ तीन दिन तक करने से उदर रोग समाप्त हो जाता है।

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