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कोष्ट (Corchorus Olitorius) के फायदे

कोष्ट (Corchorus Olitorius) के फायदे
कोष्ट (Corchorus Olitorius) के फायदे

कोष्ट (Corchorus Olitorius)

प्रचलित नाम- कोष्ट, पात, वनपाता।

उपलब्ध स्थान- इसकी खेती की जाती है।

परिचय- यह झाड़ की शक्ल में उगने वाली एक वनस्पति होती है। इसके झाड़ तरकारी के लिए लगाए जाते हैं। इसके पत्ते 6.3 से 10 सेन्टीमीटर तक लम्बे तथा 3.5 से 5 सेन्टीमीटर तक चौड़े होते हैं। इसके फूल पीले रंग के एवं इसकी फलियां 3 से लेकर 6.3 सेण्टीमीटर तक लम्बी तथा इसके बीज काले रंग के होते हैं। इसके सूखे हुए पत्ते ‘नलित’ अथवा ‘नालित’ के नाम से बिकते हैं।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण

इसके पत्ते तीखे, उष्ण और कसैले होते हैं। ये दाह नष्ट करने वाले, संकोचक, निस्सारक, बलदायक, मृदु स्वभावी, ज्वरनाशक तथा धातुपरिवर्तक होते हैं। इसके अलावा ये अर्बुद, शूल, जलोदर, बवासीर और पेट के उपद्रवों को भी दूर करते हैं। बुखार की वजह या अन्य किसी वजह से बदन में होने वाले दर्द में इसके पत्तों का काढ़ा उपयोगी सिद्ध होता है।

1. बुखार में इस वनस्पति (कोष्ट) के पत्तों की फांट बनाकर दी जाती है। अतिसार में इसके पत्ते 1 रत्ती की मात्रा में सोंठ तथा शहद के साथ दिए जाते हैं। इसके पंचांग की राख मधु में मिलाकर गुल्म रोग (वायु गोला) को समाप्त करने के लिए दी जाती है। मूत्रकृच्छ्र तथा जीर्ण वस्तिशोथ में इसके पत्तों की फांट लाभकारी होती है। इसके पत्तों के कच्चे रूप में सेवन से भूख बढ़ जाती है और पाचन शक्ति ठीक होती है।

2. इसके सूखे पत्ते बाजार में बेचे जाते हैं। इनको शीत प्रभाव को दूर करने वाली औषधि के रूप में प्रयोग में लिया जाता है। इसमें उत्तेजक गुण नहीं रहते हैं। जो बीमार तेज पेचिश रोग से मुक्त हो जाते हैं, उन्हें यह औषधि भूख और शक्ति बढ़ाने के लिए दी जाती है। इसके बीज विरेचक हैं।

3. इसके डंठल का छिलका मलेरिया की बीमारी में शीत निर्यात के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। कुछ वैद्यगण इसके मूल को सर्पदंश में उपयोगी बताते हैं, मगर कुछ वैद्यों के मतानुसार यह सर्पविष नाशक नहीं होती है।

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