गुग्गुल (Indian Bedeuium Tree)
प्रचलित नाम– गुग्गुल /देवधूप। उपयोगी अंग- गोंद रूप, राल ।
परिचय – यह लघु कंटली वृक्ष होता है। इसकी शाखाओं का अग्र भाग नुकीला होता है। पत्ते चिकने तथा सपत्र, जिनमें 3-3 पत्रक होते हैं। इसके फल मांसल, लम्बे, गोल, छोटे बेर की तरह होते हैं।
स्वाद- तीखा ।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
ग्राही, कफ निःस्सारक, वाजीकरण, रक्तशोधक होने की वजह से गण्डमाल में ज्यादा प्रयोग किया जाता है। गुग्गुल के सेवन से रक्त कणों में भी सुधार होता है। इसका सेवन करने के बाद यह त्वचा द्वारा बाहर निकलता है। निरोगी व्यक्ति भी अगर इसका सेवन करे तो उसका रंग खिलता है। गुग्गुल गर्भाशय, वातानुलोमन, कीटाणु नाशक, रक्त शोधक है। इसके प्रयोग से चेहरे में कांति आती है। रंग निखरता है और काम-काज करने में स्फूर्ति बनी रहती है।
आर्तव जनन, संधिशोथ, कुष्ठरोग, नपुंसकता, यकृत विकारों, अर्धागघात, गलगण्ड, रक्त में प्रोटीन की मात्रा बढ़ाने में तथा वंध्यता में फायदेमंद हैं। इसकी गोंद (राल) का प्रयोग सुप्तव्रण एवं विस्तृत व्रणों में लाभदायक है। यह कफघ्न होने के कारण जीर्ण कफ रागों में तथा जब अति तथा चिकना कफ निकलता हो एवं उसमें काफी दुर्गंध आती हो, तब इसका प्रयोग अतिलाभकारी है। इसका प्रयोग कमजोर एवं मध्यम आयु वाले लोगों के लिए अति लाभकारी होता है। यह दीपन तथा सारक गुण वाला होने की वजह से कुपचन तथा विबंध जैसे रोगों में एवं आंत तथा उदर शिथिल हो, तब इसका प्रयोग किया जाता है। पुरुषों से ज्यादा महिलाओं को लाभकारी होता है। यह रक्त शोधक होने की वजह से गण्डमाल में अधिक प्रयोग किया जाता है। गुग्गुल के सेवन से रक्त में श्वेतकणों की मात्रा बढ़ती है तथा रक्त कणों में भी सुधार हो जाता है। गुग्गुल का सेवन करने के बाद यह त्वचा द्वारा बाहर निकलता है, इसलिए प्रत्येक प्रकार के त्वचा रोगों में इसका प्रयोग किया जाता है। किसी भी प्रकार के फोड़े, फुंसी, मुँहासे, एक्जिमा, गर्मी के दानों में इसके प्रयोग की वैद्यगण सलाह देते हैं। इसके प्रयोग से दाग-धब्बे मिटकर त्वचा निखर जाती है। निरोगी व्यक्ति को भी अगर इसका सेवन करता है, तो उसकी त्वचा का रंग खिलता है। गुग्गुल की गर्भाशय में अच्छी क्रिया होती है, यह गर्भाशय का संकोचन करता है, इसलिए युवा स्त्रियों के अनार्त्तव में इसका सेवन कराया जाता है। गुग्गुल को घी में कूटकर मलहम बनाकर लगाने से व्रणशुद्धि और व्रणरोपण होता है। यह फ्कने के बाद न भरे जाने वाले व्रणों में काफी उपयोगी है। गुल्स तथा शूल में, शुद्ध गुग्गुल को गोमूत्र में मिलाकर सेवन कराने से फायदा होता है। गुग्गुल में कीटाणुरोधक गुण होता है, इस वजह से यह त्वचा रोग को मिटाने तथा जख्म भरने में फायदेमंद है।
मात्रा – निर्यास 2-5 ग्राम ।
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